Paddy Variety Kokila-33: खरीफ सीजन में धान की खेती भारतीय किसानों की आजीविका और देश की खाद्य सुरक्षा का आधार है. लेकिन बदलते मौसम, बढ़ती लागत और घटती उपज ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इसको ध्यान में रखते हुए किसान एक ऐसी धान की किस्म की तलाश में रहते हैं, जो कम समय में, कम लागत पर ज्यादा उपज दे सके और रोगों से भी सुरक्षित हो. ऐसे में, शक्तिवर्धक हाइब्रिड सीड्स कंपनी द्वारा विकसित धान की बासमती किस्म 'कोकिला-33' एक क्रांतिकारी समाधान बनकर उभरी है.
यह किस्म न केवल कम समय में तैयार होती है, बल्कि कम लागत में अधिक उत्पादन देकर किसानों के सपनों को पंख लगा रही है. पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक, कोकिला-33 ने अपनी बेमिसाल गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता से किसानों का विश्वास जीता है. यह किस्म पिछले वर्ष भी अपनी विशेषताओं के कारण सबसे अधिक मांग में रही थी. ऐसे में आइए, जानते हैं कैसे यह किस्म किसानों के लिए "सुनहरे भविष्य" का पर्याय बन गई है.
कोकिला-33 की विशेषताएं: कम समय, अधिक उत्पादन
कोकिला-33 की सबसे बड़ी खासियत इसकी कम अवधि (105-110 दिन) में तैयार होने की क्षमता है. जहां पारंपरिक किस्मों को पकने में 120-130 दिन लगते हैं, वहीं कोकिला-33 की 50% पुष्पन अवधि मात्र 88 दिन है. इसके पौधे की ऊंचाई 92-96 सेमी और मजबूत तना होता है, जिससे फसल गिरने का जोखिम नहीं रहता. दाने लंबे, पतले, और चमकदार होते हैं, जिससे बाजार में इसकी कीमत अधिक मिलती है. अमेरिकन सूक्ष्म कवच तकनीक से उपचारित यह बीज रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है.
कोकिला-33 किस्म पी.बी.-1692 और पी.बी.-1509 सेगमेंट की है, लेकिन किसानों द्वारा इसे इन दोनों किस्मों की तुलना में अधिक सराहा जाता है. प्रति एकड़ 30-32 क्विंटल तक की उपज और कम सिंचाई की आवश्यकता के कारण यह किसानों की पहली पसंद बन चुकी है.
किसानों के अनुभव: कोकिला-33 बनी भरोसे की फसल
पंजाब के लुधियाना जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान गुरनाम सिंह एक अनुभवी किसान हैं, जो पहले वर्षों से हाईब्रिड धान की खेती कर रहे थे. उन्होंने 2024 के खरीफ सीजन में पहली बार शक्तिवर्धक कंपनी की कोकिला-33 किस्म को 2 एकड़ खेत में बोया. उन्होंने बताया,"मैंने अब तक जितनी किस्में बोई हैं, उनमें से कोकिला-33 सबसे बेहतरीन रही. फसल की बढ़वार शुरू से ही मजबूत थी और पौधे अंतिम चरण तक एकदम स्वस्थ रहे. मुझे प्रति एकड़ 30 क्विंटल से अधिक उत्पादन मिला, जो मेरी अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा था. सबसे खास बात यह रही कि इस किस्म में कीटनाशकों और खाद की जरूरत कम पड़ी, जिससे मेरी लागत भी घट गई और मुनाफा बढ़ गया. अब मैं हर साल इस किस्म को ही प्राथमिकता दूंगा."
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान अनुज यादव एक प्रगतिशील किसान हैं जो खेती में नए प्रयोग करने में विश्वास रखते हैं. उन्होंने कोकिला-33 को पहली बार 2023 में आज़माया. उनका अनुभव बहुत सकारात्मक रहा. उन्होंने बताया,"इस किस्म के दानों में अद्भुत चमक होती है और पूरा खेत एक समान बालियों से भरा हुआ नजर आता है. मुझे फसल में किसी भी तरह का रोग या कीट प्रकोप देखने को नहीं मिलता. सिंचाई की जरूरत भी कम पड़ती है और फसल पर मेरा कुल खर्च पहले की तुलना में कम आता है. यही वजह है कि इस साल भी मैंने कोकिला-33 को बोने का फैसला किया है. यह किस्म मेरे जैसे छोटे किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है."
20 बीघा खेत में कोकिला-33 की खेती करने वाले उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान रमाकांत त्रिवेदी ने बताया कि कोकिला-33 ने उनकी खेती की दिशा बदल दी. "इस किस्म की नर्सरी केवल 25 दिनों में तैयार हो गई, और पौधों की ऊंचाई मध्यम होने से फसल कभी गिरी नहीं. दुकानदार ने मुझे बताया था कि यह 105-110 दिनों की किस्म है और सच में फसल 105 दिन में पूरी तरह तैयार हो गई. बालियों का आकार और दानों की गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि खरीददार भी खुश हो गए. मैं आने वाले वर्षों में भी सिर्फ इसी किस्म पर भरोसा करूंगा."
पंजाब के संगरूर जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान तरसेम सिंह, जो वर्षों से धान की खेती करते आ रहे हैं, कोकिला-33 को लेकर खासे उत्साहित हैं. उन्होंने बताया,"यह किस्म कम पानी में भी शानदार उपज देती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि फसल गिरती नहीं और पूरे सीजन में कोई भी रोग नजर नहीं आता. क्वालिटी इतनी अच्छी है कि मंडी में मेरे धान को ऊंची कीमत मिलती है. मैं अब अन्य किसानों को भी सलाह देता हूं कि वे कम से कम एक बार इस किस्म को जरूर आज़माएं."
पंजाब के पटियाला जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान सुखचैन सिंह ने कोकिला-33 को पहली बार 2023 में बोया और अब वे इसे अपनी नियमित किस्म बना चुके हैं. उन्होंने बताया,"फसल की तना बहुत मजबूत होता है, जिससे तेज हवा या बारिश में भी फसल गिरती नहीं. दाने एकदम चमकदार और बिना दाग-धब्बे के होते हैं. इससे बाजार में बेहतर दाम मिलते हैं. इस किस्म में मुझे कोई भी रोग नहीं देखने को मिला, जिससे कीटनाशकों की स्प्रे पर खर्च भी बचा. इससे पहले मैं कई कंपनियों के बीज आज़मा चुका था, लेकिन कोकिला-33 की बात ही अलग है."
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान राजेन्द्र कुमार ने वर्ष 2024 में पहली बार कोकिला-33 की खेती की और वह उनके लिए यादगार बन गई. उन्होंने बताया,"मैंने कई किस्में बोई हैं, लेकिन कोकिला-33 से मुझे 26 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज मिली, जो अब तक की मेरी सबसे अधिक उपज है. कटाई तक फसल एकदम हरी-भरी रही और किसी भी कीट या बीमारी का कोई असर नहीं हुआ. अब मैं इस किस्म को ही अपनी स्थायी किस्म बनाने की योजना बना रहा हूं."
कई दशकों से धान की खेती कर रहे उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रहने वाले धर्मेन्द्र राजपूत को कोकिला-33 से जबरदस्त फायदा हुआ है. उन्होंने बताया,"इस किस्म की खासियत है कि यह बहुत जल्दी तैयार होती है और दाने बहुत साफ-सुथरे होते हैं. इसमें कोई रोग नहीं लगता, जिससे उत्पादन बढ़ता है और बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है. अब तक जितनी किस्मों की खेती मैंने की है, उनमें कोकिला-33 ने मुझे सबसे ज्यादा संतुष्ट किया है. मैं सभी किसानों को सलाह देता हूं कि वे इसे जरूर आजमाएं."
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान भूपेन्द्र साहू का क्षेत्र भारी बारिश और तूफानों के लिए जाना जाता है. इसके बावजूद कोकिला-33 ने उन्हें निराश नहीं किया. उन्होंने बताया, "तेज आंधी और तूफान में जहां दूसरी फसलें गिर गईं, वहीं मेरी कोकिला-33 की फसल मजबूती से खड़ी रही. इससे मेरी उम्मीदें बढ़ीं और जब कटाई का समय आया तो पैदावार भी पहले से ज्यादा हुई. यह सब संभव हो पाया इस बीज की गुणवत्ता और मजबूती के कारण. अब मैं इस किस्म को हर मौसम में बोने की सोच रहा हूं."
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि कोकिला-33 ने साबित किया है कि कम अवधि, उच्च उत्पादन, कम लागत, और बाजार में बेहतर दाम इसके मुख्य आकर्षण हैं. जलवायु परिवर्तन और कीटों के बढ़ते खतरे के इस दौर में, कोकिला-33 किसानों के लिए एक सुरक्षित और लाभदायक विकल्प है.