आमतौर पर जब हम कोई पौधा अपने घर के बगीचे में लगाते हैं तो उसकी लगातार देखभाल करते हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जो फल और फूल देने वाले पौधे और पेड़ जंगलों में उगते हैं, उनकी देखभाल कौन करता है? यह प्राकृतिक रूप से कैसे विकसित हो जाते हैं और कैसे फलों और फूलों से लद जाते हैं. यह जंगल के पशु पक्षियों के लिए भोजन का माध्यम बनते हैं.
क्या है प्राकृतिक खेती (Natural Farming)
दोस्तों ! यह प्राकृतिक खेती का एक रूप है जो स्वतः विकसित होती है. ये बिना किसी खास देखभाल के प्रकृति से ही अपना पोषण प्राप्त करती है और प्रकृति से ही संवर्धन.
अक्सर मन में प्रश्न उठता है कि इनकी देखभाल कौन करता है और किस तरह से पेड़-पौधों की सिंचाई होती है ? इन्हें संक्रमण और विभिन्न प्रकार के रोगों से कौन बचाता है तो दोस्तों यह प्राकृतिक खेती है इसमें कृषि को स्वयं प्रकृति और उसके नियम निर्देशित करते हैं.
जैव विविधता है सहायक
जैव विविधता प्राकृतिक खेती में बहुत बड़ा माध्यम बनती है जिससे यह पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित बना रहता है. प्राकृतिक खेती की अवधारणा अनादि काल से सृष्टि में व्याप्त है. हम यह कह सकते हैं कि प्राकृतिक खेती में प्राकृतिक तरीके को अपनाया जाता है.
प्राकृतिक व जैविक खेती में अंतर (differences between natural and organic farming) और समानताएं ( similarities between organic and natural farming)
यह जैविक खेती से काफी अलग है क्योंकि जैविक खेती में मिट्टी को जैविक खाद से समृद्ध किया जाता है. पशुधन और लोग मैनेज किए जाते हैं ताकि वह टिकाऊ और पर्यावरण के लिए अनुकूल बने. उसमें अतिरिक्त प्रयास किए जाते हैं. वह स्वाभाविक तौर पर नहीं पनपती जबकि प्राकृतिक खेती स्वभाविक तौर पर पनपती नजर आती है.
एक जापानी किसान मसानोबु फुकुओका को अपनी किताब द वन-स्ट्रॉ रेवोल्यूशन(1975) में प्राकृतिक खेती का परिचय करवाने के लिए जाना जाता है.
दोनों ही तरह के खेतियां विभिन्न प्रकार के हानिकारक रसायनों से मुक्त होती हैं. दोनों ही प्रणालियों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर रोक होती है.
दोनों ही प्रकार की खेतीयों में किसानों को सब्जियों और अनाज की फसलों के साथ अन्य फसलों को उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यह सब बहुत ही प्राकृतिक तरीके से होता है बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए.
जैविक खेती में गैर रसायनिक उर्वरकों और कीट नियंत्रण के घरेलू साधनों को अपनाने पर जोर दिया जाता है.
जैविक खाद में वर्मी कंपोस्ट और गाय के गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है और इससे खेतों में लगाया जाता है. जबकि प्राकृतिक खेती में मिट्टी पर रासायनिक या जैविक खाद का प्रयोग नहीं होता इसमें ना तो अतिरिक्त पोषक तत्व मिट्टी में डाले जाते हैं और ना ही पौधों को दिए जाते हैं.
प्राकृतिक खेती में मिट्टी स्वयं पाती है पोषण प्राकृतिक खेती में सूक्ष्म जीवों और केंचुआ द्वारा कार्बनिक पदार्थों के विखंडन से मिट्टी के लिए पोषक तत्वों का स्वत: ही निर्माण हो जाता है
जैविक खेती में जुताई निराई और अन्य मूलभूत कृषि एक्टिविटीज लगातार की जाती है जबकि प्राकृतिक खेती में इस तरह की कोई भी क्रिया नहीं की जाती यह स्वत: ही विकसित होती है जैसे कि इकोसिस्टम विकसित होता है.
प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में लागत में भी काफी अंतर है. प्राकृतिक खेती अत्यंत कम लागत वाली है जो स्थानीय वन्यजीवों के साथ भी पूरी तरह से खुद को जोड़ लेती है. जैविक खेती में एक विशेष किस्म की खाद की आवश्यकता होती है जो की हानिरहित हो, इसलिए यह अपेक्षाकृत महंगी है.
भारत में प्राकृतिक खेती का कौन सा मॉडल है प्रचलित
भारत में प्राकृतिक खेती का जो मॉडल प्रचलित है, वह है - शून्य बजट प्राकृतिक खेती यानी बिना किसी लागत के की जाने वाली प्राकृतिक खेती.
तो किसान भाइयों ! हमने देखा कि आज प्राकृतिक एवं जैविक खेती का भाव चलन है क्योंकि हानिरहित और केमिकल फ्री कृषि उत्पादों की मांग बढ़ गई है क्योंकि समय के साथ लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आई है और वे ऐसे फल और सब्जियां खाना चाहते हैं जिनमें किसी तरह के हानिकारक केमिकल का प्रयोग नहीं हुआ हो इसीलिए खेती के इन तरीकों को अपनाकर अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है.