आम की बागवानी और देखभाल
आम को फलों का राजा कहा जाता है क्योंकि इसका स्वाद हर किसी को अपना मुरीद बना देता है. भारत में आम की बागवानी बड़े स्तर की जाती है. इतना ही नहीं, यहां के आमों की मांग विदेशों तक में बहुत है. भारत के अलग-अलग राज्यों में आम की अलग-अलग किस्में प्रचलित हैं. आम की ज्यादा डिमांड को देखते हुए किसान इसकी बागवानी कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आम की बागवानी से इतना फायदा है कि कुछ लोग आम के बाग ठेके पर लेकर हर साल लाखों का मुलाफा ले रहे हैं. और बाग के मालिक को घर बैठे मोटी रकम मिल जाती है. इतना ही नहीं, आम के बागों में दूसरी फसलें उगाकर भी अतिरिक्त मुनाफा लिया जा सकता है. अगर आम की बागवानी वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो बंपर मुनाफे की उम्मीद की जा सकती है.
आम की उन्नत किस्में
भारत में आम की बहुत सी किस्में हैं. जोकि जलवायु के आधार पर अलग-अलग राज्यों अलग-अलग आम की प्रजातियां पाई जाती है. भारत में उगाई जाने वाली आम की किस्मों में दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फज़ली, बंबई, बंबई ग्रीन, अलफॉन्जो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा, वनराज, जरदालू हैं.
आम की नई किस्में
नई किस्मों की बात करें तो आम्रपाली, मल्लिका, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा, अर्का अनमोल और पुनीत प्रमुख प्रजातियां हैं. उत्तर भारत में मुख्यत: दशहरी, लंगड़ा, चौसा, लखनऊ सफेदा, गौरजीत, बंबई ग्रीन आदि किस्में प्रमुख है.
आम की कौनसी किस्म कब तैयार होती है ?
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मई के महीने में पकने किस्में बंबई, स्वर्णरेखा, केसर, अलफांसो है
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जून में पकने वाली आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, मल्लिका और कृष्णभोग है
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फजली, आम्रपाली और सिपिया जुलाई के महीने में पकती है
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जबकि चौसा, कातिकी और बथुआ अगस्त में पकने वाली किस्म है
आम की फसल के लिए मिट्टी और जलवायु
आम की फसल का उत्पादन आमतौर पर सभी तरह की मिट्टी में किया जाता है लेकिन अच्छी जल धारण क्षमता वाली गहरी, बलुई दोमट सबसे उपयुक्त होती है. आम की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. गौरतलब है कि आम उष्णकटिबन्धीय पौधों वाला फल है फिर भी इसे उपोष्ण क्षेत्र में आसानी लगाया जा सकता है. इसकी अच्छी ग्रोथ के लिए 25 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान उचित रहता है
आम के पौधों की कैसा करें रोपाई ?
आम के पौधों की रोपाई के वक्त उनके बीच की दूरी का ध्यान रखना जरूरी होता है. पौधों के बीच की दूरी बहुत कम नहीं होनी चाहिए. आम के पौधों को 10×10 मीटर की दूरी पर लगाना उचित माना गया है. लेकिन सघन बागवानी में इसे 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगा सकते हैं. कलम विधि से पौधा तैयार किया जाएगा तो फल जल्दी देगा. बरसात का मौसम आम की रोपाई के लिए सबसे सही माना जाता है. जिन इलाकों में बारिश ज्यादा होती है वहीं बरसात के आखिर में आम के पौधों की रोपाई करना सही रहेगा. सही आकार का गड्ढा खोदकर मिट्टी में उचित मात्रा में सड़ी हुई गोबर खाद, करंज की खल्ली, सिंगल सुपर फास्फेट, म्युरेट ऑफ पोटाश मिलाकर भऱ दें.उसके बाद पौधे को गड्ढ़ें में लगाकर लकड़ी के सहारे बांध दें.
आम के पौधों की देखभाल
आम के पौधों की जितनी अच्छी देखभाल होगी उतना ही अच्छा है. छोटे पौधों से लेकर बड़े पेड़ों तक की देखभाव करनी होती है. रोपाई के बाद शुरू के कुछ समय आम की पौध पर खास ध्यान देना होता है. तीन से चार साल तक विशेष देखभाल की जरूरत होती है. जहां एक तरफ इन पौधों को पशुओं से बचाना है तो वहीं दूसरी तरफ बारिश और तेज हवाओं में गिरने से भी बचाना होता है. वहीं सर्दियों में पाले से बचाना भी जरूरी हो जाता है. भीषण गर्मी के दौरान लू से बचाने के लिए सिंचाई का उचित प्रबंधन करना रहता है. जरूरत के हिसाब से पौधों की छंटाई करना भी जरूरी रहता है.
सिंचाई
जब आप के पौधों पर फल आने लगे तो 10 से 15 दिनों के अंतराल से सिंचाई करें. इससे फल समय से पहले नहीं गिरते और उनका आकार अच्छा होता है. बौर आने से 2-3 महीने पहले से पानी देना बंद कर दें. अगर लगातार पानी देते रहेंगे तो आम के पेड़ पर नए पत्ते निकल आएंगे और बौर कम आएगा.
खाद उर्वरक की मात्रा
शुरू के 10 साल तक प्रत्येक पौधा को हर साल 160 ग्रा. यूरिया, 115 ग्रा. स्फूर और 110 ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश दें. 10 साल के बाद इसकी मात्रा बढ़ा दें. बढ़े हुए खाद की मात्रा को दो बराबर भाग में करते हुए पहला भाग जून-जुलाई में और दूसरा भाग अक्टूबर में दें. आम के उत्पादन को बढ़ान के लिए 10 किलो कार्बनिक पदार्थ प्रति पेड़ हर साल डालें. इसे रासायनिक खाद के साथ मिलाकर डाला जा सकता है. कार्बनिक पदार्थ के रूप में सड़ी हुई गोबर, केंचुआ खाद या सड़ी गली पत्ते वाली खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं.आपको बता दें कि आम में जिंक, मैग्नीशियम और बोरॉन की कमी को दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से इस्तेमाल करें. पानी में मिलाकर साल में तीन छिड़काव करें. ये छिड़काव फरवरी-मार्च-मई महीने में करना उचित रहेगा. वहीं बोरॉन की कमी को दूर करने के लिए 5 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी में और मैग्नीशियम की कमी के लिये 5 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
कीट और रोकथाम
आम का अच्छा उत्पादन लेने के लिए लगातार बागों में या पेड़ों पर कीट और रोगों की निगरानी करते रहें. आम के पेड़ों पर कई तरह के कीट और रोग लग सकते हैं. आम की फसल पर लगने वाले निम्न रोग हैं:
हॉपर या मधुआ- यह कीट पत्तियों और बौर से रस चूसता रहता है, इसका असर अगर ज्यादा हो जाए तो पेड़ में फल नहीं आते. इसलिए बौर आने से पहले आम के बागों की सफाई करने की सलाह दी जाती है. इससे रोकथाम के लिए मेलाथिऑन 50 ईसी का 60 मिली या मेटासिस्टोक्स 25 ईसी का 25 मिली दवा 20 लीटर पानी में मिलाकर वृक्ष के भींगने तक छिड़काव करें. वृक्ष पर यह छिड़काव तीन बार करना उचित रहेगा. पहला छिड़काव बौर आने से पहले करें, दूसरा करीब 10 प्रतिशत बौर आने के वक्त करें, तीसरा दूसरे छिड़काव के एक महीना बाद जब फल मटर के आकार के हो जाए.
गुठली का घुन या स्टोन वीविल- यह कीट घुन वाली इल्ली की तरह होता है जोकि आम की गुठली में छेद करके घुसकर उसे भोजन बना लेती है. कुछ दिनों बाद ये गूदे में पहुंचकर फल खराब कर देती है. रोकथाम- इस कीड़े को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन होता है इसलिए जिस भी पेड़ से फल नीचे गिरें उस पेड़ की सूखी पत्तियों और शाखाओं को नष्ट कर देना चाहिए। इससे कुछ हद तक रोका जा सकता है.
उपज (Yield)
आम का उत्पादन उसकी किस्मों और देखभाल पर निर्भर करता है. सही देखभाल हुई हो तो एक पेड़ से करीब 150 से 200 किलो आम का उत्पादन लिया जा सकता है.