Multi Crop Farming: अगर आप भी खेती से अच्छी आया कमाना चाहते हैं तो बहुफसली खेती का रूख कर सकते हैं. इससे न केवल पैदावार बढ़ेगी, बल्कि किसानों की आय में भी वद्धि होगी. बहुफसली की खेती का उद्देश्य किसी खेत में साल भर में दो या अधिक फसलों को अधिक उर्वरक एवं सिंचाई का प्रबंध करके उगाया जाना है. इस प्रकार उपज प्रति इकाई भूमि प्रतिदिन बढ़ जाती है. ऐसे करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि भूमि की उर्वरता ज्यों की त्यों बनी रहे. बहुफसली खेती की पद्धति अपनाते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है. आइए आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं.
क्यों जरूरी है बहुफसली खेती?
तीन या चार फसलों को वार्षिक चक्र में कम से कम एक फसल दलहन की अवश्य उगानी चाहिए. ऐसा करने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है. जहां तक हो सके, एक ही फसल बार-बार नहीं उगानी चाहिए क्योंकि ऐसे करने से बीमारियों तथा हानिकारक कीड़ों का समस्या बढ़ती है. खासकर ऐसे बीमारियां जिनके जीवाणु भूमि पनपते हों, जैसे चना और अरहर का मुरझाए रोग, गेहूं की सूत्र कृमि, धान का जड़ - गलन, और गन्ने का लाल गलन, इनकी एक फसल लगाने के बाद कम से कम 2 वर्ष तक फिर उसी फसल को खेत में न लगाएं.
बहुफसली खेती के फायदे
फसलों के चुनाव में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बहुफसली खेती में लागत काफी लगती है. अतः बीच-बीच में आलू लोबिया, मटर, मूंग, तथा सब्जी, फूलगोभी, बैंगन, मुली, शलजम, गाजर आदि की फसल उगाई जाए. ताकि किसानों को लगातार पैसा मिलता रहे और किसान का काम रुकने न पाए. बहुफसली खेती में चारे की भी एक फसल लेना आवश्यक है. ताकि दुधारू जानवरों का पालन पोषण अच्छी तरह से किया जा सके. छोटे किसान के लिए जिसका कृषि कार्य बैलों पर निर्भर होता है, हरे चारे की फसल उगाना बैलों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। दूध देने वाले पशुओं के लिए पौष्टिक चारा भी मिलना आवश्यक है.
बहुफसली खेती की सफलता में मुर्गी पालन, सूअर पालन, बकरी पालन तथा अन्य उद्योग जैसे रेशम कीड़ों का पालन, मछली पालन, कुटीर उद्योग आदि काफी सहायक होता है. छोटे तथा मध्यम श्रेणी के किसानों के लिए ये बहुत लाभदायक हैं. बहुफसली खेती की योजना बनाते समय, किसान को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि उसके पास दो हेक्टर या चार हेक्टर जमीन है, तो कोई जरूरी नहीं है कि वह पूरे क्षेत्र में तीन या चार फसल प्रतिवर्ष उगाए. क्योंकि बहूफसली खेती के लिए किसानों को भारी लागत लगानी पड़ती है. अधिक मजदूरों की जरूरत पड़ती है ताकि काम समय पर समाप्त होता रहे.
ये भी पढ़ें: Wheat Harvesting Machine: इन मशीनों से करें गेहूं की कटाई और अवशेष प्रबंधन, लागत-समय दोनों की होगी बचत
किन फसलों की कब करें खेती
सिंचाई के लिए पानी, उर्वरक, तथा दावों की जरूरत पड़ती रहती है. अतः किसान को चाहिए कि वह अपने पूरे खेत को तीन या चार टुकड़े में बांट ले. जैसे की 2 हेक्टर खेत को तीन बराबर बराबर भागों में बांट लें. पहले टुकड़े में दो फसलों का वार्षिक फसल - चक्र रखें, जैसे धान - गेहूं मक्का- गेहूं, यदि तीन फसल रखनी हो तो इस फसल चक्र में एक चारे की फसल लें जैसे मक्का - अरहर - लोबिया.
दूसरे टुकड़े में तीन फसल की वार्षिक फसल चक्र रखें जैसे धान - गेहूं - मूंग, मक्का - आलू - गेहूं, मक्का - अरहर - गेहूं, मक्का - सोयाबीन - गेहूं, धान - गेहूं - धान, आदि. तीसरी टुकड़े में चार का सघन फसल चक्र अपनाएं जैसे धान - मूली - गेहूं - मूंग, मक्का - आलू - गेहूं - मूंग, धान - आलू - गेहूं - लोबिया, मक्का - आलू -आलू - प्याज, मक्का -आलू - गेहूं - भिंडी, धान - आलू - गेहूं - ककड़ी या खीरा, मक्का - सोयाबीन या उड़द - गेहूं - धान, मक्का+अरहर - गेहूं, धान, मक्का - बरसीम- गेहूं - धान. इसी प्रकार वर्ष में किसी क्षेत्र में मृदा उर्वरता के बिना हास के अधिकतम फसलों उत्पादन को ही बहूफसली सस्य प्रणाली कहा जाता है.
रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ- कृषि जागरण, बलिया- उत्तर प्रदेश.