मोती या 'मुक्ता' एक कठोर पदार्थ है जो मुलायम ऊतकों वाले जीवों द्वारा पैदा किया जता है. रासायनिक रूप से मोती सूक्ष्म क्रिटलीय रूप में कैल्सियम कार्बोनेट है जो जीवों द्वारा संकेन्द्रीय स्तरों में निक्षेप करके बनाया जाता है. आदर्श मोती उसे मानते हैं जो पूर्णतः गोल और चिकना हो, किन्तु अन्य आकार के मोती भी पाये जाते हैं. अच्छी गुणवत्ता वाले प्राकृतिक मोती प्राचीन काल से ही बहुत मूल्यवान रहे हैं. इनका रत्न के रूप में या सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में उपयोग होता रहा है.
मोती के प्रकार
मोती तीन प्रकार के होते हैं-
(1) केवीटी- सीप के अंदर ऑपरेशन के जरिए फारेन बॉडी डालकर मोती तैयार किया जाता है. इसका इस्तेमाल अंगूठी और लॉकेट बनाने में होता है. चमकदार होने के कारण एक मोती की कीमत हजारों रुपए में होती है.
(2) गोनट- इसमें प्राकृतिक रूप से गोल आकार का मोती तैयार होता है. मोती चमकदार व सुंदर होता है. एक मोती की कीमत आकार व चमक के अनुसार 1 हजार से 50 हजार तक होती है.
(3) मेंटलटीसू- इसमें सीप के अंदर सीप की बॉडी का हिस्सा ही डाला जाता है. इस मोती का उपयोग खाने के पदार्थों जैसे मोती भस्म, च्यवनप्राश व टॉनिक बनाने में होता है. बाजार में इसकी सबसे ज्यादा मांग है.
मोती की निर्माण प्रक्रिया
घोंघा नाम का एक जन्तु, जिसे मॉलस्क कहते हैं, अपने शरीर से निकलने वाले एक चिकने तरल पदार्थ द्वारा अपने घर का निर्माण करता है. घोंघे के घर को सीपी कहते हैं. इसके अन्दर वह अपने शत्रुओं से भी सुरक्षित रहता है. घोंघों की हजारों किस्में हैं और उनके शेल भी विभिन्न रंगों जैसे गुलाबी, लाल, पीले, नारंगी, भूरे तथा अन्य और भी रंगों के होते हैं तथा ये अति आकर्षक भी होते हैं. घोंघों की मोती बनाने वाली किस्म बाइवाल्वज कहलाती है इसमें से भी ओएस्टर घोंघा सर्वाधिक मोती बनाता है. मोती बनाना भी एक मजेदार प्रक्रिया है. वायु, जल व भोजन की आवश्यकता पूर्ति के लिए कभी-कभी घोंघे जब अपने शेल के द्वार खोलते हैं तो कुछ विजातीय पदार्थ जैसे रेत कण कीड़े-मकोड़े आदि उस खुले मुंह में प्रवेश कर जाते हैं. घोंघा अपनी त्वचा से निकलने वाले चिकने तरल पदार्थ द्वारा उस विजातीय पदार्थ पर परतें चढ़ाने लगता है.
भारत समेत अनेक देशों में मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनका उत्पादन घटता जा रहा है. अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से हर साल मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है. मेरे देश की धरती , सोना उगले, उगले हीरे-मोती. वास्तव में हमारे देश में विशाल समुन्द्रिय तटों के साथ ढेरों सदानीरा नदियां, झरने और तालाब मौजूद है. इनमें मछली पालन अलावा हमारे बेरोजगार युवा एवं किसान अब मोती पालन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है.
मोती की खेती
मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है. कम से कम 10 गुणा 10 फीट या बड़े आकार के तालाब में मोतियों की खेती की जा सकती है. मोती संवर्धन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है. खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है. इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के उपरान्त इसके भीतर 4 से 6 मिली मीटर व्यास वाले साधारण या डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते है. फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है. रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को हटा लिया जाता है. अब इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है. इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है. प्रति हेक्टेरयर 20 हजार से 30 हजार सीप की दर से इनका पालन किया जा सकता है. अन्दर से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है जो अन्त में मोती का रूप लेता है. लगभग 8-10 माह बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया जाता है.
कम लागत ज्यादा मुनाफा
एक सीप लगभग 8 से 12 रुपए की आती है. बाजार में 1 मिमी से 20 मिमी सीप के मोती का दाम करीब 300 रूपये से लेकर 1500 रूपये होता है. आजकल डिजायनर मोतियों को खासा पसन्द किया जा रहा है जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है. भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशी बाजार में मोतिओ का निर्यात कर काफी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है. तथा सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेंचा जा सकता है. सीप द्वारा कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है. जैसे कि सिलिंग झूमर, आर्कषक झालर, गुलदस्ते आदि वही वर्तमान समय में सीपों से कन्नौज में इत्र का तेल निकालने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है. जिससे सीप को भी स्थानीय बाजार में तत्काल बेचा जा सकता है. सीपों से नदीं और तालाबों के जल का शुद्धिकरण भी होता रहता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है.
मोती पालन के फायदे
मोती पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो आपको अन्य लोगो से अलग करता है. वही लोग इस व्यवसाय को कर सकते है. जिनकी सोच कुछ अलग करने की हो.
(1) एक एकड़ में पारंपरिक खेती से 50000/- का मुनाफा हो सकता है और मोती पालन से 8-10 लाख
(2) एक तालाब में बहुउदेशीय योजनाओं का लाभ लेकर 8-10 प्रकार के व्यापर करके आय में बृद्धि
(3) जमीन में जलस्तर को बढ़ाकर सरकार की मदद
(4) बचे हुए सामान से हस्तकला उद्योग को बढ़ावा देना
(5) यदि महिला वर्ग इस व्यवसाय में आते है तो ज्यादा फायदे हैं क्योंकि मोती के आभूषण के साथ साथ मदर ऑफ़ पर्ल का भी फायदा ले सकते हैं.
लेखक: निशा मीणा, पुष्पा कुमावत, ड़ॉ संजू कुमावत एवं प्रमोद कुमार
जगन्नाथ विश्वविद्यालय (कृषि विभाग), चाकसू1, कृषि विज्ञान केंद्र, अठियासन, नागौर2, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा3 एवं चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार4