दलहनी फसलों में मोठ सबसे ज्यादा सूखा सहन करने वाली फसल है, इसलिए यह असिंचित क्षेत्रों के लिए लाभदायक है, क्योंकि इसकी जड़े ज्यादा गहराई तक जाकर भूमि से नमी हासिल कर लेती हैं. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र देश के प्रमुख मोठ उत्पादक राज्य हैं, जिनमें राजस्थान देश में मोठ ऊत्पादन में पहले स्थान पर आता है. राजस्थान में मोठ का क्षेत्रफल 96.75% और उत्पादन 94.49% होता है. मोठ की औसत उपज 338 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के लगभग है, उन्नत तकनीक से खेती करने पर 25 से 60 प्रतिशत तक अधिक पैदावार हासिल की जा सकती है.
उपयुक्त जलवायु
मोठ की फसल बिना किसी विपरीत प्रभाव के फूल और फली अवस्था में उच्च तापमान को सहन कर सकती है और इसकी वृद्धि और विकास के लिए 25 -37 सेन्टीग्रेड तापक्रम की जरूरत होती है. वार्षिक वर्षा 250-500 मि.मी. और उचित निकास की जरूरत होती है.
भूमि का चुनाव
अच्छी जल निकासी और उच्च उर्वरता वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, खेत में पानी के ठहराव से फसल को भारी नुकसान पहुंच सकता है.
भूमि की तैयारी
मोठ की खेती के लिए दो बार हेरों से जुताई कर पाटा लगा देना चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पटलने वाले हल या हैरो चलाकर करनी चाहिए और फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से करनी चाहिए. इसके अलावा एक जुताई कल्टीवेटर कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिए.
बुवाई का समय
मोठ की बुवाई जून के तीसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले पखवाड़े तक या फिर मानसून शुरू होने के तुरन्त बाद कर देना चाहिए. उड़द और मूंग की तरह पंक्तियों में निर्धारित गहराई पर सीड ड्रिल या चोंगा से बुआई करने पर पर्याप्त पौध संख्या मिल सकती है.
बीजोपचार
मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम और एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा और 3 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचार करना चाहिए. फफूंदनाशी दवा के उपचार के बाद बीजों को राइजोबियम और पी.एस.बी कल्चर 5-7 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए.
सिंचाई
जैसा कि यह यह फसल असिंचित दशा में बोई जाती है लम्बे समय तक बारिश न हो तो दाना बनते समय एक सिंचाई करना फायदेमन्द होती है.
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