Moong: मूंग उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का उत्कृष्ट स्रोत है. मूंग का सेवन घरों में साबुत अनाज, अंकुरित रूप के साथ-साथ दाल के रूप में भी कई तरह से किया जाता है. इसका उपयोग हरी खाद वाली फसल के रूप में भी होता है. मूंग को मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, यहां तक कि बीज की भूसी को पानी में भिगोकर मवेशियों के चारे के रूप में भी दिया जा सकता है. ज़ायद मूंग को मटर, चना, आलू, सरसों, अलसी की कटाई के बाद उगाया जा सकता है. जिन क्षेत्रों में धान-गेहूं फसल चक्र का उपयोग किया जाता है, वहां मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए ज़ायद मूंग की खेती महत्वपूर्ण है.
पोषक मान
प्रोटीन |
24-25 % |
वसा |
1.3 % |
खनिज |
3.5 % |
फाइबर |
4.1 % |
कार्बोहाइड्रेट |
56 % |
कैल्सियम |
124 मि.ग्रा./100 ग्राम |
फॉस्फोरस |
326 मि.ग्रा./100 ग्राम |
लोहा |
7.3 मि.ग्रा./100 ग्राम |
कैलोरी मान |
334 कैलोरी/100 ग्राम |
नमी |
10 % |
उत्तर प्रदेश में ज़ायद के लिए अनुशंसित किस्में
एचयूएम 16, आईपीएम 2-3, पीडीएम 139, मेहा, एचयूएम 12
जलवायु आवश्यकता
मूंग की फसल को उच्च तापमान, कम आर्द्रता और लगभग 60-80 से.मी. की मध्यम वर्षा की आवश्यकता होती है. प्रारंभिक वनस्पति अवस्था के दौरान जड़ों के विकास और नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए जल जमाव घातक है. फसल उत्तरी भारत के सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में ज़ायद के दौरान सुनिश्चित सिंचाई के तहत उगाई जाती है.
मिट्टी का प्रकार और खेत की तैयारी
इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी है. फसल को क्षारीय, लवणीय या जल भराव वाली मिट्टी में नहीं उगाना चाहिए. फसल के उचित अंकुरण और स्थापना के लिए अच्छी तरह से तैयार बीज क्यारी की आवश्यकता होती है. इसके लिए 2-3 जुताई करें और उसके बाद पाटा लगाएं ताकि बीज को ढेलों और खरपतवार से मुक्त किया जा सके. ज़ायद में खेती के लिए पिछली फसल की कटाई के बाद सिंचाई के बाद जुताई करनी चाहिए.
बुआई का समय
ज़ायद की फसल के लिए मूंग की बुआई पिछली फसल (आलू, गन्ना, सरसों और कपास आदि) की कटाई के बाद करनी चाहिए. मार्च का पहला पखवाड़ा ज़ायद खेती के लिए सबसे उपयुक्त है. देर से बोई गई मूंग को फूल आने के समय तापमान अधिक होने के कारण अधिक नुकसान होता है और उपज प्रभावित होती है.
फसल प्रणाली
- मक्का-गेहूं-मूंग
- गेहूं-आलू-मूंग
- मूंग-ज्वार
- मूंग-गेहूं
मूंग के साथ मिश्रित प्रणाली से उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसलें: अरहर, ज्वार, बाजरा और मक्का हैं. जबकि गन्ना, कपास, मूंगफली, सूरजमुखी और तिल जैसी कुछ फसलें अंतःफसल के रूप में उगाई जाती हैं.
बीज दर, दूरी एवं विधि
ज़ायद के दौरान 25-30 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर 30 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाना चाहिए. गन्ने के साथ सह फसल के रूप में बीज दर 7-8 कि.ग्रा./हेक्टेयर होनी चाहिए. पौधे से पौधे की दूरी (कम से कम 5 से.मी.) बनाए रखनी चाहिए. बुआई देसी हल से या सीड ड्रिल की सहायता से की जा सकती है.
बीजोपचार
मिट्टी और बीज अंकुरित रोग को नियंत्रित करने के लिए बीज को थीरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम और कैप्टान 1 ग्राम + 2 ग्राम से उपचारित करें. रसचूसक कीट नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस @ 7 ग्राम/किलो बीज की दर से बीजोपचार करें. बीज को राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर (5-7 ग्राम/कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करना भी वांछनीय है.
खाद एवं उर्वरक
मूंग आमतौर पर मिट्टी की मूल उर्वरता पर उगाई जाती है. यदि उपलब्ध हो तो 8-10 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद बुआई के 15 दिन पहले डालनी चाहिए. मूंग के लिए 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर बुआई के समय डालना चाहिए. उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण एवं सिफ़ारिशों के आधार पर करने की सलाह दी जाती है, सामान्यतः 100 किलोग्राम डी.ए.पी. एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है, उर्वरकों को बुआई के समय या बुआई से ठीक पहले ड्रिलिंग द्वारा इस प्रकार डालना चाहिए कि वे बीज से लगभग 2-3 से.मी. नीचे रहें.
जल प्रबंधन
ज़ायद मूंग के लिए 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद करें तथा आवश्यकतानुसार 10-15 दिन बाद दोहराएँ. एक सिंचाई फूल आने से पहले और दूसरी फली लगने की अवस्था में करने से बीज स्वस्थ रहेंगे. खेत में जलजमाव से हर हाल में बचना चाहिए. जब फसल पूर्ण खिलने की अवस्था में हो तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
फसल को हानिकारक खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. पहली निराई 20-25 दिन और दूसरी 40-45 दिन बाद करनी चाहिए. पेंडिमेथालिन (स्टाम्प) 30% ई.सी. @ 0.75- 1 कि.ग्रा. ए.आई. का प्रयोग प्रति हेक्टेयर 400-600 लीटर पानी में मिलाकर करें. खरपतवारनाशी के छिड़काव के दौरान हमेशा फ्लैट नोजल का उपयोग किया जाना चाहिए.
रोग और कीट
पीला मोज़ेक वायरस: यह उत्तर भारत में एक गंभीर बीमारी है, जिसमें पीले धब्बे होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उपज में कमी आती है. इसे प्रतिरोधी किस्मों (आशा, पीडीएम 11, एमएल 337) के उपयोग या 0.1% मेटासिस्टॉक्स + 0.1% मैलाथियान के 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है.
पत्ती धब्बा
यह सर्कोस्पोरा या कोलेटोट्राइकम कवक के कारण हो सकता है. सर्कोस्पोरा कवक पत्ती या फली पर बैंगनी रंग के भूरे केन्द्रित गोल धब्बे का कारण बनता है. कोलेटोट्राइकम कवक गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे और बाद में गाढ़े छल्ले विकसित होने का कारण बनता है. दोनों रोगों को मैंकोजेब या ज़िनेब @ 2 किग्रा/1000 लीटर पानी के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है.
बीज/अंकुर का सड़ना
बीज या छोटे पौधे सड़ जाते हैं और अंकुरित होने या उभरने में विफल हो जाते हैं. इसे कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करके नियंत्रित किया जा सकता है.
चारकोल रॉट
इसके लक्षणों में बुआई के एक महीने के भीतर जड़ों और तने का मिट्टी के ठीक ऊपर सड़ जाना शामिल है. इन लक्षणों के कारण पौधा मर जाता है. बीजों को 0.25% ब्रैसीकॉल से उपचारित करके तथा फसल चक्र को बनाए रखकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
पत्तों का मुड़ना
प्रारंभिक लक्षणों में किनारों का पीला पड़ना (युवा पौधों में) शामिल है, जो बाद में नीचे की ओर मुड़ जाते हैं और शिराओं का रंग लाल-भूरा हो जाता है-आमतौर पर पौधों का विकास रुक जाता है. 0.1% मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
गैलेरुसिड बीटल
पत्तियों पर विशिष्ट गोलाकार छेद दिखाई देते हैं, जबकि कीट केवल रात के दौरान नुकसान करते हैं और दिन के दौरान छिपते हैं. इसे मिट्टी में 10 किग्रा/हेक्टेयर की दर से फोरेट के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है.
लीफ हॉपर/जैसिड्स
ये दोनों रस चूसते हैं और प्रकाश संश्लेषण को कम करते हैं. लेकिन लीफ हॉपर निचली सतह पर दिखाई देता है और पत्तियों के किनारों को मोड़ देता है. जैसिड्स के कारण पत्तियां सिकुड़ जाती हैं. इन्हें इमिडाक्लोप्रिड @ 1-2 मिली/लीटर पानी के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है.
रेड हेयरी कैटरपिलर
यह सुंडी नई पत्तियों के पूरे हरे पदार्थ को खा जाती है जिससे गंभीर नुकसान होता है. जब कैटरपिलर छोटी हों तो 2% मेटासिस्टॉक्स धूल 20-25 किग्रा/हेक्टेयर की दर से छिड़क कर और जब वे बड़े हो जाएं तो 0.15% मिथाइल पैराथियान का छिड़काव करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
कटाई, मड़ाई एवं भंडारण
मूंग की कटाई 80 प्रतिशत से अधिक फलियाँ पक जाने पर करनी चाहिए. टूटने से होने वाले नुकसान से बचने के लिए फलियों को एक या दो बार तोड़ने की भी सलाह दी जाती है. पौधों को दरांती से काटकर खलिहान में सुखाया जाता है. फिर इन्हें लाठियों से पीटकर या बैलों से रौंदकर कूट लिया जाता है. साफ बीजों को 3-4 दिनों तक धूप में सुखाना चाहिए ताकि उनमें नमी की मात्रा 8-10% हो जाए और उन्हें उचित डिब्बे में सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जा सके.
उपज
एक अच्छी तरह से प्रबंधित फसल, जैसा कि ऊपर बताया गया है, 8-10 क्विंटल और मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल अनाज प्रति हेक्टेयर पैदा कर सकती है. मूंग की ज़ायद फसल में 12-15 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन होता है. मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/हेक्टेयर है.
अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इन बातों का ध्यान रखें:
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तीन वर्ष में एक बार गहरी ग्रीष्मकालीन जुताई करें.
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बुआई से पहले बीजोपचार करना चाहिए.
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उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण मूल्य के आधार पर होना चाहिए.
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पीला मोज़ेक प्रतिरोधी/सहनशील किस्में: नरेंद्र मूंग 1, पंत मूंग 3, पीडीएम 139 (सम्राट), पीडीएम 11, एमयूएम 2, एमएल 337, आईपीएम 02-14, एमएच 421, एसएमएल 832 आदि क्षेत्र की उपयुक्तता के अनुसार चुनें.
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खरपतवार नियंत्रण सही समय पर करना चाहिए.
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पौधों की सुरक्षा के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन अपनाएं.
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अभिषेक सिंह यादव
पीएच.डी. शोध छात्र
मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग
चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपु
2. अरुण कुमार
पीएच.डी. शोध छात्र
कीट विज्ञान विभाग
चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर