Mirchaiya dhaan: बिहार में धान की खेती की काफी उन्नत हैं. राज्य में कई तरह के धान की खेती काफी ही व्यापक तरीके से होती है. साथ ही यहां की जलवायु व मिट्टी धान की खेती के लिए काफी अच्छी हैं. यहां बासमती चावल, कतरनी चावल, सोनाचूर चावल व मिरचइया धान की खेती का काफी उत्पादन किया जाता है. यहां से चावल की खरीद-बिक्री देश-विदेशों तक की जाती है. बिहार में धान की कई किस्मों में से एक है मिरचइया धान. अभी कुछ महीनों पहले इसे GI- tag मिला है. जिसकी वजह से इस धान की पहचान अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बन गई है. मिरचइया धान के बने व्यजंन देश-विदेश के लोगों को काफी पसंद आ रहे है. आइये जानते हैं मिरचइया धान के बारे में.
बिहार के पश्चिमी चंपारण में होती है मिरचइया धान की खेती
बिहार के पश्चिम चंपारण में किसान मिरचइया धान की खेती काफी ही बड़े पैमाने पर करते हैं. मिरचइया धान एक बहुत ही सुगंधित किस्म का चावल है जिसकी काफी पैदावार होती है. इससे बना चूड़ा काफी सुगंधित होता है. पश्चिम चंपारण से मिरचइया धान व चूड़े की डिमांड देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी है. यहां की मिट्टी, जलवायु व पानी बहुत उपयोगी है जिससे बहुत ही मात्रा में उत्पादन होता है.
मिरचइया धान की किस्म
मिरचइया धान एक उन्नत किस्म की फसल है. इसके पौधे काफी लम्बे होते हैं. जिसका आकार काली मिर्च के जैसा है. जिसकी वजह से इसे मिर्च धान या मिरचइया धान कहते हैं. किसान जब इसकी बुवाई करते हैं तो यह किस्म 140-150 दिनों के अंदर पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है. ये फसल 20-25 क्विटंल प्रति हेक्टर उपज देती है.
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मिरचइया धान की खेती से किसानों को हो रही है अधिक आय
मिरचइया धान की खेती जैविक पद्धति से की जाती है. पिछले साल यहां के किसान भाइयों ने 75 एकड़ रकबा में खेती की थी. अब ये बढ़कर 125 एकड़ हो गई है. बिहार के कई क्षेत्रों में इसकी खेती धीरे-धीरे शुरु हो रही है. कई किसानों का मानना था है कि मिरचइया धान की खेती से किसानों को काफी फायदा हो रहा है साथ ही इसकी डिमांड भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है. मिरचइया धान की खेती किसानों के हित में हैं एवं इसकी खेती से अधिक आय किसान भाइयों को मिल रही है.