फसल की अच्छी पैदावार के लिए एक उपजाऊ मिट्टी की जरुरत होती है. लगातार बढ़ती मांग की वजह से आज के समय में फसलों की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का उपजाऊ होना बहुत ही जरुरी है.
गोबर की खाद
गोबर की खाद को प्राचीन काल से ही एक जैविक उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता आ रहा है. यह गाय, घोड़े, भैस, बकरी व भैड़ के गोबर के उपयोग से बनाई जाती है. गोबर जितना दिन पुराना होगा, मिट्टी की उर्वकता उतनी ही अच्छी होगी. गोबर की खाद सौ प्रतिशत प्राकृतिक होती है. वर्तमान समय में यह रासायनिक उर्वरक से होने वाले हानिकारक रोगों से बचने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस जैविक खाद का उपयोग सभी प्रकार के पौधों के लिए किया जा सकता है. छोटे पेड़-पौधे और गार्डन से लेकर बड़ी फसलों की मिट्टी को तैयार करते समय 20 से 30 प्रतिशत गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह ध्यान रखें कि मिट्टी में इसे मिलाने के लगभग एक हफ्ते बाद ही रोपाई शुरु करें.
दलहनी पौधों से मृदा को लाभ
दलहनी पौधे पर्यावरण के साथ-साथ मृदा के स्वास्थ्य में भी सुधारक होते हैं. दलहनी पौधे मृदा स्वास्थ्य, जल की कमी, वैश्विक तपन, जैव विविधता, नाइट्रोजन की कमी आदि से मिट्टी में होने वाली समस्याओं में बहुत मददगार होते हैं. दलहन फसल मिट्टी की उत्पादन क्षमता और मृदा की उर्वरता बनाये रखने की अपनी सहज भूमिका अदा करते हैं.
इन पौधों की जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया पाये जाते हैं, जो हवा में मौजूद नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण करते हैं. इससे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और इससे आगे उगने वाली फसलों को भी फायदा होता है. इन फसलों की कटाई के पश्चात इनके अवशेष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते हैं.
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फसलों एवं सब्जियों के अवशेषों का उपयोग
लोग अक्सार बची सब्जियों, फूलों और अनाज आदि को कूड़े के तौर पर फेंक दिया करते हैं. लेकिन इसका उपयोग खेत की मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. आपको बता दें कि इन अवशेषों को इकट्ठा कर खेतों में डालकर जुताई करें. यह मिट्टी की उर्वराशक्ति को काफी मात्रा में बढ़ा देता है. किसान को चाहिए कि फसलों के बचे हुए अवशेष जैसे गेंदा के पौधे, मक्का के पौधे, उर्द, मूंग, टमाटर, लौकी, खीरा, नेनुआ, गोभी आदि पौधों की कटाई और तुड़ाई करने के बाद बचे हुए अवशेष को रोटावेटर की सहायता से खेत में ही जुताई कर दें.