पिछले 10 सालों से अकार्बनिक उर्वरकों की कम खुराक के साथ संवर्धित खाद (ई.सी.एम.) के दीर्घकालिक एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (आई.एन.एम.) से फाइटोटॉक्सिक एल्यूमीनियम (एएल) अंशों में कमी आई है. इसके साथ ही अम्लीय मिट्टी धान की पोषण गुणवत्ता में सुधार का भी काम करती है. मृदा में समृद्ध खाद (ई.सी.एम.) अनुप्रयोग से विनिमेय एल्युमीनियम (31%) एवं दृढ़ता से कार्बनिक रूप से बंधे और इंटरलेयर एल्युमीनियम (26) अंश में कमी आई. हालाँकि, समृद्ध खाद (ई.सी.एम.) अनुप्रयोग से कमजोर रूप से कार्बनिक रूप से बंधे एल्युमीनियम (25%) और मुक्त एल्युमीनियम (13%) 100% एन.पी.के. के मुकाबले काफी अधिक बढ़ गए. इसके अलावा, समृद्ध खाद (ई.सी.एम.) और उर्वरक के निरंतर उपयोग से चावल में सूक्ष्म पोषक तत्वों का संचय जैसे जिंक, आयरन, कॉपर, मैंगनीज और जस्ता बढ़ गया, जबकि एल्युमीनियम का संचय काफी कम हो गया.
इसलिए मिट्टी की अम्लता और एल्युमीनियम विषाक्तता को कम करने के साथ-साथ धान उपज और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए समृद्ध खाद (5 टन प्रति हेक्टेयर) और कम्पोस्ट (5 टन प्रति हेक्टेयर)+ जैव उर्वरक कंसोर्शियम का उपयोग किया जा सकता है.
लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं का प्रबंधन
लवणों से प्रभावित मृदाओं के कारण देश की लगभग 85 लाख हेक्टेयर भूमि से या तो बहुत कम उपज प्राप्त होती है या वह भूमि कृषि के अयोग्य है. कुल लवणग्रस्त क्षेत्रफल का लगभग 25 लाख हेक्टेयर क्षारीय मृदायें हैं, जबकि दूसरी प्रकार की लवणीय या क्षारीय मृदायें जिसे सफेद ऊसर या सफेद कल्लर कहते हैं इन मृदाओं (लवणीय एवं क्षारीय मृदा) को सुधारने हेतु कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न तकनीकों को प्रयोग में लाने के सुझाव समय-समय पर दिये जाते रहे हैं, और साथ-साथ ही इन तकनीकों में शोध द्वारा बदलाव और सुधार करके इन्हें सरल एवं समझने में आसान बनाने के प्रयास किए जाते हैं.
लवण ग्रस्त मृदाओं की पहचान
लवण ग्रस्त मृदाएं सामान्यतः तीन तरह की होती है, जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं.
1. क्षारीय मृदायें
इस तरह की मृदाओं में सोडियम के कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट लवणों की अधिकता होती है. इसलिए ऐसी मृदाओं के संतृप्त निष्कर्ष का पी.एच. मान 8.5 से अधिक, वैद्युत चालकता 4 डेसी सीमन प्रति मीटर से कम (25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर) और विनिमय योग्य सोडियम 15 प्रतिशत से अधिक होता है.
पहचान
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क्षारीय मृदाओं की पहचान लवणीय मृदाओं की अपेक्षा कठिन है.
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वर्षा ऋतु में पानी काफी समय तक भरा रहता है.
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मृदा गीली होने पर चिकनी हो जाती है. इसमें ऊपरी सतह पर भरा पानी गंदा रहता है.
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सूखने पर काफी बड़ी दरारें आ जाती है. कभी-2 कार्बनिक पदार्थ जल में घुलकर मृदा की ऊपरी सतह को काला देता है.
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ऐसी मृदाओं में पौधों की वृद्धि बहुत कम होती है, तथा अधिक क्षारीयता की स्थिति में अंकुरण ही नहीं होता है.
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पौधों की पत्तियों का रंग गहरा हरा हो जाता है तथा पौधे झुलसे हुए दिखाई देते हैं.
2. लवणीय मृदायें
इन मृदाओं के संतृप्त निष्कर्ष की वैद्युत चालकता 4 डेसी सीमन प्रति मीटर से अधिक ( 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर) तथा पी. एच. मान 8.5 से कम होता है. ऐसी मृदाओं में विनियम योग्य सोडियम 15 प्रतिशत से कम होता है . लवणीय मृदा सोडियम के क्लोराइड एवं सल्फेट लवण भूमि की ऊपरी सतह पर अधिक मात्रा में पाये जाते हैं.
पहचान
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भूमि की सतह पर सफेद रंग की पपड़ी का जमाव दिखता है जो मृदाओं को पहचानने में सहायक होती है.
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कभी-2 इनकी पहचान लवण क्षति (जैसे पत्तियों के अग्र सिरों का झुलसना, पत्तियों की हरिमाहीनता तथा हल्का पीला रंग) के द्वारा भी की जाती है .
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खेतों के कुछ विशेष क्षेत्रों (चकत्तियों) में फसलों की कम बढ़वार होती है.
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ऐसी मृदाएं वातावरण से नमी सोखने के कारण गीली - 2 सी लगती है तथा इन मृदाओं में परासरण दाब के कारण पौधों के लिए प्राप्य जल की कमी होती है और बीज के अंकुरण एवं विकास पर बुरा प्रभाव होता है.
3. लवणीय-क्षारीय मृदाएं
लवणीय-क्षारीय मृदाओं का तात्पर्य है कि इन मृदाओं के संतृप्त निष्कर्ष की वैद्युत चालकता 4 डेसी सीमन प्रति मीटर से अधिक (25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ) तथा मृदा पी. एच. मान 8.5 से अधिक होता है. ऐसी मृदाओं में विनियम योग्य सोडियम 15 प्रतिशत से अधिक होता है. लवणीय-क्षारीय मृदाओं मे सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम एवं उनके क्लोराइड, सल्फेट, कार्बोनेट, | और बाइकार्बोनेट अधिक मात्रा में पाये जाते है .
पहचान
ऐसी मृदाओं में लवणीय एवं क्षारीय दोनों ही मृदाओं के गुण होते है इसलिए इन मृदाओं की पहचान, प्रयोगशाला में विश्लेषण करने के बाद ही निश्चित रूप से की जा सकती है. लवण ग्रस्त मृदाओं के प्रबंधन के लिए चार तरह की विधियों का प्रयोग करते हैं.
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भौतिक एवं जल तकनीकी सुधार
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रासायनिक सुधार
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जैविक सुधार
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उपयुक्त फसलों का चयन
भौतिक एवं जल तकनीकी विधि
ऐसी मृदाओं के भौतिक गुणों को सुधारने के लिए यांत्रिक विधियां प्रयोग की जाती हैं, जैसे- गहरी जुताई, अवमृदा गहरी मृदा की जुताई, बालू भरावन एवं प्रोफाइल का उलटना-पलटना. इन विधियों से लवण ग्रस्त मृदा में अंतः सस्यन में सुधार होता है. ऊपरी सतह पर बनी कठोर परत को यौगिक साधनों एवं अवमृदा में बनी कठोर परत को गहरी जुताई से तोड़ा जाता है. जल एवं वायु पारगम्यता को बालू भरावन से सुधारते हैं. प्रायः जल तकनीक विधि सभी सुधार विधियों (जैविक, रासायनिक या भौतिक) का एक आवश्यक भाग होता है.