मिर्च की खेती भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, लेकिन विभिन्न कीट और रोग इसे गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं. उनमें से एक प्रमुख रोग लीफ कर्ल वायरस है, जो बेमो वायरस Begomovirus समूह का एक सदस्य है. यह रोग सफेद मक्खी/Bemisia Tabaci द्वारा फैलता है. रोगग्रस्त पौधों में पत्तियां मुड़ जाती हैं, मोटी हो जाती हैं और आकार में छोटी रह जाती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन में भारी गिरावट आती है.
इस लेख में मिर्च में लीफ कर्ल वायरस रोग के लक्षण, फैलाव और प्रभावी प्रबंधन के तरीकों पर चर्चा की गई है.
मिर्च में लीफ कर्ल विषाणु रोग के लक्षण
- पत्तियों का मुड़ना: संक्रमित पत्तियां किनारों से ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं.
- पत्तियों का मोटा होना: पत्तियां मोटी और असामान्य रूप से कठोर हो जाती हैं.
- विकास में कमी: रोग ग्रस्त पौधे सामान्य रूप से विकसित नहीं होते.
- फलन में कमी: फल कम संख्या में लगते हैं, और उनका आकार भी छोटा होता है.
- पौधों की बौनी अवस्था: पौधे छोटे और कमजोर हो जाते हैं.
मिर्च में लीफ कर्ल विषाणु रोग का फैलाव
- सफेद मक्खी का संक्रमण: यह रोग मुख्य रूप से सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है, जो पौधों के रस को चूसने के दौरान विषाणु को फैलाती है.
- संक्रमित पौध रोपण: बीज या पौधा अगर संक्रमित हैं तो रोग का प्रकोप तेजी से बढ़ सकता है.
- खरपतवार: खरपतवार विषाणु के वैकल्पिक मेजबान के रूप में कार्य करते हैं.
- जलवायु परिस्थितियां: गर्म और आर्द्र जलवायु सफेद मक्खी और वायरस के प्रसार के लिए अनुकूल होती है.
मिर्च में लीफ कर्ल विषाणु रोग को कैसे करें प्रबंधित?
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कल्चरल उपाय
स्वस्थ बीज का चयन: प्रमाणित और रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें.
फसल चक्रीकरण: मिर्च के साथ टमाटर, बैंगन या तंबाकू जैसी फसलों की खेती से बचें. इनके स्थान पर धान, गेहूं या दलहनी फसलों का चक्रीकरण करें.
खरपतवार प्रबंधन: खेत और उसके आस-पास की खरपतवारों को समय पर हटा दें.
पौधों का उचित अंतर: पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा का संचलन सही ढंग से हो सके और सफेद मक्खियों की संख्या कम हो.
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भौतिक प्रबंधन
पीले चिपचिपे ट्रैप का उपयोग: सफेद मक्खियों को आकर्षित करने और पकड़ने के लिए पीले चिपचिपे ट्रैप लगाएं.
नेट हाउस में पौध तैयार करना: पौध को नेट हाउस में तैयार करें ताकि संक्रमण से बचा जा सके.
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जैविक प्रबंधन
जैविक कीटनाशकों का प्रयोग: नीम का तेल (1500 पीपीएम) या अजाडिरेक्टिन आधारित उत्पादों का छिड़काव सफेद मक्खी की संख्या नियंत्रित करने में सहायक है.
सहायक जीवों का उपयोग: एनकर्शिया फॉर्मोसा या एरीटमालीस जैसे परजीवी कीट सफेद मक्खी की आबादी को नियंत्रित करने में सहायक हैं. मेटारहिजियम एनीसोप्ली और ब्यूवेरिया बेसियाना जैसे कवक आधारित जैविक उत्पादों का उपयोग करें.
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रासायनिक प्रबंधन
कीटनाशकों का उपयोग: सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है जैसे, इमिडाक्लोप्रिड (17.8% एसएल) @ 0.5 मिली/लीटर पानी/ थायोमेथोक्साम (25% डब्ल्यूजी) @ 0.3 ग्राम/लीटर पानी/ एसिटामिप्रिड (20% एसपी) @ 0.2 ग्राम/लीटर पानी का प्रयोग करके सफेद मक्खी को प्रबंधित किया जा सकता है.
समय पर छिड़काव: रोग के शुरुआती लक्षण दिखने पर तुरंत कीटनाशकों का छिड़काव करें.
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प्रतिरोधी किस्मों का चयन
रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें, जैसे कि आभा, मधुरिमा, और पूसा सदाबहार. स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय या अनुसंधान केंद्रों द्वारा अनुशंसित किस्मों का चयन करें.
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अनुशंसित उर्वरकों का प्रयोग
नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. जैव उर्वरकों, जैसे- ट्राइकोडर्मा और पीएसबी का उपयोग करें.
रोग प्रबंधन का समग्र दृष्टिकोण
लीफ कर्ल विषाणु रोग का प्रभावी प्रबंधन तभी संभव है जब निम्नलिखित रणनीतियां सामूहिक रूप से लागू की जाएं जैसे,
- स्वस्थ बीज और पौध सामग्री का उपयोग.
- सफेद मक्खियों की रोकथाम और प्रबंधन.
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन.
- नियमित निगरानी और समय पर हस्तक्षेप.
- किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना इत्यादि.