आज हम आपको भारत में होने वाली आम के मुख्य प्रजातियों और उनके पेड़ों में होने वाले रोगों के बारे में बताएंगे जो राज्यों के अनुसार है. सबसे पहले हम आपको अलग- अलग राज्यों में फेमस आम के प्रजातियों के बताएंगे जिनमें उत्तर प्रदेश में दशहरी, चौसा और लंगड़ा, बिहार में जर्दालू , गोवा में मनकुरद और मुसरद , पश्चिम बंगाल में हिमसागर और मालदा, महाराष्ट्र में अलफांसो, दक्षिण भारत में बंगनपल्ली होने वाली कुछ मुख्य प्रजातियां है. अगर हम आम के पेड़ों पर लगने वाले कीड़े एवं रोगों के बारें में और उनसे बचाव के बारें में बात करें तो आम के पेड़ों में निम्न रोग और कीड़ें लगते है-
जाला कीट (टेन्ट केटरपिलर) - प्रारम्भिक अवस्था में यह कीट पत्तियों की ऊपरी सतह को तेजी से खाता है. उसके बाद पत्तियों का जाल या टेन्ट बनाकर उसके अन्दर छिप जाता है और पत्तियों को खाना जारी रखता है.
रोकथाम - जुलाई के महीने में किवनालफॉस 0.05 फीसदी या मोनोक्रोटोफास 0.05 फीसदी का 2-3 बार छिड़काव करें.
दीमक- दीमक सफेद, चमकीले एवं मिट्टी के अन्दर रहने वाले कीट हैं. यह जड़ को खाता है उसके बाद सुरंग बनाकर ऊपर की ओर बढ़ता जाता है.
रोकथाम - तने के ऊपर से कीचड़ के जमाव को हटाकर तने के ऊपर 5 फीसदी मेलाथियान का छिड़काव करें. दीमक से छुटकारा मिलने के दो महीने बाद पेड़ के तने को मोनोक्रोटोफाॅस (1 मिली प्रति लिटर) से मिट्टी पर छिड़काव करें. दस ग्राम प्रति लीटर ब्यूवेरिया बेसिआना का घोल बनाकर छिड़काव करें.
फुदका या भुनगा कीट- यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हैं. इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं. इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है.
रोकथाम- इस कीट से बचने के लिए नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाई जा सकती है.
फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई)- फलमक्खी आम के फल को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाला कीट है. इस कीट की सूंडियां आम के अंदर घुसकर गूदे को खाती हैं जिससे फल खराब हो जाता है.
रोकथाम- मिथाइल यूजीनॉल 0.08 फीसदी एवं मेलाथियान 0.08 फीसदी बनाकर डिब्बे में भरकर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट हो जाती हैं.
गाल मीज- इनके लार्वा बौर के डंठल, पत्तियों, फूलों और छोटे-छोटे फलों के अन्दर रह कर नुकसान पहुंचाते हैं. लार्वा सफेद रंग के होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर भूमि में प्यूपा या कोसा में बदल जाते हैं.
रोकथाम- इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए. रासायनिक दवा 0.05 फीसदी फोस्फोमिडान का छिड़काव बौर घटने की स्थिति में करना चाहिए.
सफेद चूर्णी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू)- बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदलने वाला हो या बरसात हो रही हो तो यह बीमारी प्रायः लग जाती है अंततः मंजरियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 5 प्रतिशत वाले गंधक के घोल का छिड़काव करें.
कालवूणा (एन्थ्रेक्नोस)- यह बीमारी अधिक नमी वाले क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है. इसका आक्रमण पौधों के पत्तों, शाखाओं और फूलों जैसे मुलायम भागों पर अधिक होता है .
ब्लैक टिप (कोएलिया रोग)- इस बीमारी में सबसे पहले फल का आगे का भाग काला पड़ने लगता है इसके बाद गहरा भूरा और अंत में काला हो जाता है. यह रोग दशहरी किस्म में अधिक होता है. इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बोरेक्स 10 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से बने घोल का छिड़काव करें.
गुच्छा रोग (माल्फार्मेशन)- इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है. बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है अपितु इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है.
पत्तों का जलना- उत्तर भारत में आम के कुछ बागों में पोटेशियम की कमी से एवं क्लोराइड की अधिकता से पत्तों के जलने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है . इस समस्या से फसल को बचाने हेतु पौधों पर 5 प्रतिशत पोटेशियम सल्फेट के छिड़काव की जरुरत होती है.
डाई बैक- इस रोग में आम की टहनी ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है और धीरे-धीरे पूरा पेड़ सूख जाता है. यह फफूंद जनित रोग होता है, इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रसित टहनियों के सूखे भाग को 15 सेंटीमीटर नीचे से काट कर जला दें.