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Updated on: 25 June, 2020 8:33 PM IST

बाजरा हरियाणा के शुष्क क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण खरीफ की फसल है. बीज के लिए मुख्तय: हिसार, भिवानी, चरखी दादरी, महेन्दरगढ़, रोहतक, झज्जर व जींद के कुछ भागो में उगाया जाता है . बाजरा में  बहुत सारी फफूंदी से होने वाली बीमारियां होती है . उनमे से कुछ मुख्य बीमारियां व उनकी रोकथाम नीचे दी हुई है :-

किस्में

एच एच बी50 , एच एच बी 60,  एच एच बी 67, एच एच बी 94, एच एच बी 226, एच एच बी 234, एच एच बी 272, एच सी 10 व एच सी 20

मुख्य रोग

1 कोढ़िया/ जोगिया या हरी बालों वाला रोग

लक्षण: इस रोग से प्रभावित पौधे बौने रह जाते हैं, पत्ते पीले पड़ जाते हैं और पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद पाउडर सा जमा हो जाता है. इस रोग से प्रभावित फसल दूर से ही पीली दिखाई देती है. पत्ते सूखने शुरू हो जाते हैं तथा पौधा नष्ट हो जाता है . हरी बालों में प्रभावित बालें घास जैसा रूप धारण कर लेती हैं बाद में जो काफी समय तक हरी रहती हैं . अधिक संक्रमण में फसल पूर्णतया नष्ट हो जाती है .

2 अरगट/ चेपा

लक्षण: रोगग्रस्त बालों से हल्के गुलाबी रंग का चिपचपा गाढ़ा रस निकलने लगता है जो बाद में गहरे भूरे रंग का हो जाता है. कुछ दिनों बाद दानों के स्थान पर गहरे- भूरे रंग के पिंड बन जाते हैं. चिपचपा पदार्थ व पिंड दोनों ही पशुओं और मनुष्य के लिए जहरीला होता हैं .

3 स्मट/ कांगियारी

लक्षण: बालों की शुरू की अवस्था में जगह-जगह रोगग्रस्त दाने बनते हैं जो आकार में बड़े, चमकदार व गहरे हरे रंग के होते हैं . बाद में ये भूरे रंग के हो जाते हैं. अंत में इनसे काले रंग का पाउडर निकलने लगता है जो की रोगजनक फंफूद के बीजाणु होते हैं .

रोकथाम के उपाय

बीजोपचार: बीज को भलीभांति देखें की उनमे चेपा के पिंड नाम हों यदि पिंड हो तो उन्हें चुनकर बाहर निकल दें या फिर नमक के घोल में डुबाकर निकल दें. इस विधि में 10 प्रतिशत नमक के घोल में तक चालये व ऊपर तैरते हुए पिंडो को निकल दें और बाद में नष्ट कर दें . नीचे बैठे हुए स्वस्थ बीज को बाहर निकल लें व साफ पानी से धो लें जिससे बीज की सतह पर नमक का कोई अंश न रहें .  यदि कारणवश रह भी जाता है तो उसका बीज के अंकुरण पर बीरा प्रभाव पड़ता है . अंत में धुले हुए बीज को छाया में सूखा ले. ऐसे बीज को बोने से पहले 4 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से सूखा उपचार करें . यदि बीज पहले से उपचारित न हो तो जोगिया रोग के प्रारम्भ से ही रोकथाम के लिए बीज को मेटलैक्सिल  35 % से 6 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए .

रोग्रस्त पौधों को निकालना

पौधों पर ज्यों ही बीमारी के लक्षण दिखाई दें उन्हें उखाड़ कर फेंक दें और वो स्वस्थ पोधो के साथ सम्पर्क में न आएं. यह काम बुवाई के 20 दिन में अवश्य ही करना चाहिए .  मध्यम से अधिक पौधे निकालने की सूरत में वह स्वस्थ पौधे रोप दें.रोगग्राही किस्मों में, रोगग्रेट पौधों को निकालने के बाद फसल पर 0.2 % ज़ैनब या मैंकोजेब के घोल (500ग्राम दवा 250 लीटर पानी प्रति एकड़) का छिड़काव करें .

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छिड़काव कार्यक्रम

फसल में पत्तों से बालें बहार आने वाली अवस्था में बालों पर 400 मिलीलीटर क्युमान एल का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें .

अन्य कार्यक्रम

1.चेपा से प्रभावित बालियों को नष्ट कर दे तथा ऐसे पौधे या दाने न तो पशुओं को खिलाएं और न ही अपने प्रयोग में लाये.

2.बीमारी की अधिकता वाले क्षेत्रों में 3-4 साल का फसल चक्र अपनाएं .

3.अगेती व समय पर बोई गई फसल (जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई कमपहले सप्ताह) को चेपा रोग की कम संभवना होती है.

4. फसल काटने के बाद खेत में मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दें ताकि चेपा के सेक्लेरोसिया,जोगीआ रोग के बीजाणु आदि मिटटी की सतह में नष्ट हो जाएं.

लेखक: पवित्रा कुमारी और राकेश पुनिया
पौध रोग विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविघालय, हिसार

English Summary: Major pests, diseases and diseases and prevention in millet crop
Published on: 25 June 2020, 08:40 PM IST

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