अन्य सभी फसलों की तरह मशरूम पर भी पर्यावरण और रोगों का काफी प्रकोप होता है. जिनमें कुछ मुख्य रोग जनक जैसे की फफूंद, जीवाणु विषाणु तथा सूत्रकृमि आदि के द्वारा किसी न किसी रूप में अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाए जाते हैं. जिस की मशरूम की खेती करने में किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है. अतः इन रोगो के पहचान और तुरन्त रोकथाम की अत्यंत आवश्यकता है. यहाँ पर हम कुछ रोगों के नाम, उनके रोग जनकों के नाम, उनके पहचान तथा उनसे बचाव के तरीकों के बारे में जानेंगें.
फफूँद के रोग
1. सुखा बुलबुलाः- वर्टीसीलियम रोग, भूरा धब्ब (ड्राई बबल्स) यह रोग वर्टिसिलियम फंगीकोला नामक फफूंद के द्वारा होता है.
लक्षण
इस रोग में मटमैले भूरे व पानीदार धब्बे मशरूम के छत्ते पर धूसर सफेद रंग के फंफूंदीदार संरचना छत्ते के ऊपर सतह पर दिखाई पडती है. रोग के अधिक फैल जाने पर मशरूम सूख कर चमडें की तरह दिखाई देने लगता है. इस रोग को कारक कमरे में मशरूम के अवशेष के धूल इत्यादि में जीवन निर्वाह करते है जो उचित वातावरण पाने पर पुनः रोग उत्पन्न करते हैं. यह रोग मक्खी व पानी की बूंदो के द्वारा एक थैले से दूसरे थेले व एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलता है. इस रोग के रोग कारक के लिये तापमान 280 सेंटीगेड अनुकूलतम पाया गया हैं.
रोकथाम
-
रोग के लक्षण दिखते ही सावधानी पूर्वक तोडकर मिटटृी में दबा देना चाहिए.
-
फसल वाले कमरे को साफ सुथरा रखना चाहिए.
-
मक्खियों व मकडियों को नष्ट कर देना चाहिए.
-
बुलबुलो को नमक की सहायता से नष्ट कर देना चाहिए.
-
रोग के शुरूवाती दिनों में फाॅमोंल्डिहाइड का छिडकाव करना चाहिए.
2. गीला बुलबुला रोग
इस रोग का रोगजनक मयकोगोनि परनिसिओसा है.
लक्षण
इस बीमारी से ग्रसित मशरूम के ऊतक मृत हो जाते है. जिनको मशरूम से अलग नहीं किया जा सकता है. ग्रसित मशरूम से विषेश प्रकार की दुर्गन्ध आने लगती है. संक्रमित मशरूम से हल्का पीला या सुनहरा रंग का द्रव निकलता हुआ प्रतीत होता है. तथा बाद में मशरूम का रंग परिवर्तित होकर पीला या भूरे रंग का हो जाता है. आकार में ये बुलबुले अंगूर के सामान दिखाई देने लगते है. रोगजनक हवा में रहने वाले धुल कण के माध्यम से फैलता हैं यह दो प्रकार के बीज (स्पोर) पैदा करते है. पहला जो पानी के द्वारा तथा दूसरा जो पर्यावरण में लम्बे समय तक जीवित रहने में सक्षम होता है.
रोकथाम
-
फसलघर या फसलघर के आसपास स्वच्छता रखना चाहिए.
-
मिल्की मशरूम में कैल्शियम के साथ बेन्जीमेडाजोल को मिलाकर तथा ग्राम मी2 की दर से बेनामीले का छिडकाव करें.
-
फसलघर में पानी नही भरा होना चाहिए.
-
फसलघर में झाडू का प्रयोग नही करना चाहिए.
3. फाल्स ट्रफल्स
यह डाईहालोमाइसिस मइक्रोस्पोरस फंफूद द्वारा होने वाला रोग है.
लक्षण
-
फफूंद की माइसिलियम गीले कपास की तरह मशरूम की सतह पर दिखाई देती हैए प्रभावित मशरूम के तने छोटे हो जाते है तथा ये लाल व भूरे रंग के दिखाई देते है.
-
स्ंक्रमित थैले से आसामान्य दुर्गन्ध आती है. इस रोग के कारण मशरूम के गुणवत्ता में भी कमी आती हैं.
रोकथाम
-
इस रोग के बचाव हेतु स्वक्षता पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
-
उपयोग किये जाने वाले भूसे व अन्य सामग्री का उचित प्रकार से जीवाणु रहित करना चाहिए.
-
उत्पादन कछ के चारो ओर चुने का बुरकाव करना चाहिए.
4. हरा फंफूद
यह रोग ट्राईकोडर्मा, पेनिसिलियम, एस्परजिल्स फंफूद द्वारा उत्पादन किया जाता हैं.
लक्षण
यह फंफूद मशरूम के थैलो की ऊपरी सतह पर उपस्थित होती है जो आरम्भ में सफेंद रंग तथा बाद में हरे रंग में बदल जाता हैं. माइसीलियम के पास विकसित मशरूम भूरे रंग का तथा टूटा फूटा दिखाई पडता है.
रोकथाम
-
इस रोग के बचाव हेतु स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
-
कार्बेन्डाजिम 2 प्रतिशत के प्रयोग से इस रोग की आसानी से रोकथाम की जा सकती है.
5. आभासी ट्रफलस
साधारण नामः ट्रफल रोग
लक्षण
यह हमारे देश में अगेरिकस बाइटाॅरकस की खेती का यह सबसे महत्वपूर्ण अवरोधक है. यह रोग अगारिकस बाइस्पोरस की ठंड वाली फसल में प्रायः अंतिम फरवरी या मार्च की शुरूवाती समय में दिखाई पडता है. इसका सफेद उठा हुआ कवक जाल बाद में हल्के पीले रंग का हो जाता है. जो कि मृदा आवरण और खाद के बीच दिखाई देता है. बाद में यह माइसीलियम मोटे, झुर्रीदार रूप में बदल जाती है. जो कि मस्तिष्क के समान दिखाई देता है. प्रौढ होने पर ये गुलाबी, सूखे लाल और अंत में पाऊडर के समान विखण्डित हो जाते है. जिसमें से क्लोरिन के समान गंध आती है. यह कवक, मशरूम के माइसीलियम को बढने नहीं देती और खाद को मटमेला कर देती है. प्रभावित भाग में स्पान अद्रश्य हो जाता है.
प्रबन्धन
-
खाद को कच्ची जमीन के बजाय हमेशा कंक्रीट फर्श पर ही बनाना चाहिए.
-
स्पान के फैलाव और क्रेसिंग के बाद तापमान 26-27 डिग्री से0 से अधिक नही होना चाहिए.
-
उत्पान के समय तापक्रम 18 डिग्री से0 से नीचे नही रखना चाहिए.
-
ट्रफल के फलनकाय के भूरे पडने और बीजाणु के पकने के पहले नवजात ट्रफल को उठाकर जमीन में गहरा दबा देना चाहिए.
-
फसल के अंत में लकडी की ट्रे या शेल्फ बेड के किनारे बोर्ड को फसल के बाद सोडियम पेन्टाक्लोरीफीनोलेट के घोल में धोना चाहिए.
-
खाद पकाने से (70 डिग्री से0 ताप पर 12 घण्टे खाद रखना) खाद में उपस्थित कवक जाल व बीजाणु मर जाते है. बीमारी की प्राथमिक अवस्था में प्रभावित भाग को फर्मोल्डिहाइड के घोल (2 प्रतिशत) से उपचारित करना चाहिए.
6. जैतूनी हरी कवकः-
साधारण नामः कीटोमियम ओलीवेसियस की ग्लोबोसम
लक्षण
बीजाई के 10 दिन बाद सतह पर अस्पष्ट मटमैला सफेद रंग का बारीक माइसीलियम दिखायी देता है. प्रभावित खाद के डंठली पर एकल धब्बों में स्पान की वृद्धि धीमी पर जाती हैै. खाद से खराब गंध निकलती है.
प्रबन्धन
-
खाद की किण्वीकरण अवधि को अधिक रखना चाहिए.
-
खाद बहुत गीली और क्रियाशील नहीं होनी चाहिए.
-
खाद भरने के समय नाइट्रोजन, अमोनियम सल्फेट, मुर्गी की खाद या इसी तरह के पदार्थ नहीं मिलाना चाहिए.
-
पाश्च्युरीकरण के समय ताजी हवा की पर्याप्त मात्रा और पीक हीटिंग के लिये पर्याप्त समय होना चाहिए.
-
लंबे समय तक खाद को अधिक तापक्रम (600 से0) पर नहीं रखना चाहिए.
-
प्रयोगशाला में बेनोमाईल, थायोफेनेट मिथाइल, वीटावेक्स, डाईथेन एम-45, थाइरम और केप्टान प्रभावशाली पाये गये.
7. भूरी प्लास्टर प्रत्याशी कवक
टगेरिकस बाइस्पोरस में भूरी प्लास्टर प्रत्याशी कवक के कारण 90 प्रतिशत और ढीगरी मशरूम में इसके कारण पूरी फसल नष्ट हो जाती है. खाद की खुलीह सतह, और ट्रे में उपस्थित मृदा आवरण पर थैलियों के किनारे पर नमी के जमने के कारण सफेद माइसीलियम की वृद्धि दिखाई पडती हैं. यह रोग आगे विकसित होकर बडे धब्बे बनाते है. जो धीरे-धीरे रंग बदलकर पहले हल्के भूरे से लाल भूरे और अंत में जंग जैसे रंग के हो जाते है. जहाँ प्लास्टर कवक पायी जाती है वहाँ मशरूम का माइसीलियम विकसित नहीं होता.
प्रबन्धन
-
मशरूम की फसल को इस रोग से बचाने के लिये फार्म पर अत्यधिक स्वच्छता रखनी चाहिए.
-
खाद बनाते समय जिप्सम की सही मात्रा और पानी की कम मात्रा उपयोग में लाना चाहिए.
-
पीक हीटिंग के पहले व बाद में खाद ज्यादा गीली नहीं होना चाहिए.
-
प्रभावित भाग पर स्थानीय रूप से 2-4 प्रतिशत फार्मेलिन का उपयोग प्रभावशाली पाया जाता है.
-
फफूंदनाशी जैसे बेनोमाइल, कारबेन्डाजियम, थायोफेनेट मिथाइल या वीटावेक्स का 1 प्रतिशत छिडकाव प्रभावशाली पाया गया है.
8. पीली प्रत्याशी कवक
लक्षण
ये कवक केसिंग परत के नीचे एक परत बनाती है और खाद पर गोलाकार कालोनियों बनाती हैं या पूरे खाद पर बिखरी रहती है. यह खाद और केसिंग मिश्रण के बीच पीले भूरे रंग की चटाई जैसी रचना बनाती है.
प्रबन्धन
-
इसी बीमारी की रोकथाम के लिये केसिंग मिश्रण का सही पास्चुरीकरण और बेनोमाइल (400-500 पीपीएम) या ब्लीटाक्स (400 पीपीएम) का छिडकाव प्रभावशाली पाया गया.
-
प्रत्याशी कवक का उन्मूलन करने के लिये केल्शियम हाइपोक्लोराइड (15 प्रतिशत) का छिडकाव प्रभावी है.
9. सीपीडोनियम पीली प्रत्याशी कवक
लक्षण
खाद में यह कवक पहले सफेद रंग की होती है. जो कि बाद में पीली भूरी हो जाती है. यह प्रायः खाद की निचली परत या थैली की पंेंदी पर पायी जाती है. प्रायः फलनकाय में विभिन्न प्रकार की विकृत्तियाँ पायी जाती है. इस कवक द्वारा उत्पन्न टाक्सिन स्पान के फैलाव को रोकता है और अन्त खाद से मशरूम का माइसीलियम अद्रश्य हो जाता है.
नियन्त्रण
-
खाद के पास्चुरीकरण के समय तापक्रम उचित रखना चाहिए.
-
फसल समाप्त होने के बाद फसल घर में रखी पेटियों या थैलो को 700 से0 तापमान पर 10-12 घण्टे तक भाप देकर गर्म करने से सारे हानिकारक कीट बीमारियां सामप्त हो जाती है.
-
खाद में 5 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम मिलाने से इसे नियन्त्रित किया जा सकता है.
-
मुर्गी की खाद को 2 प्रतिशत फार्मेलिन या 5 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना चाहिए.
लेखक: अजय कुमार मिश्रा1ए अभिषेक कुमार1, अमित कुमार यादव1 एवं गौरव कुमार यादव शोध छात्र, पादप रोग विज्ञान विभाग, स0व0प0कृ0 एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय, मेरठ