low cost poly tunnel technology: वर्तमान समय में किसानों को कृषि में आधुनिक तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है ताकि वे स्वस्थ, रोग मुक्त एवं अधिक उत्पादक फसलें प्राप्त कर सकें. ग्रीष्मकालीन सब्जियों की अगेती खेती किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है, क्योंकि बाजार में जल्दी उपलब्ध होने वाली सब्जियों की कीमत अधिक होती है. हालांकि, उत्तर भारत जैसे ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी के महीनों में कम तापमान के कारण बीजों का अंकुरण प्रभावित होता है, जिससे नर्सरी तैयार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
इस समस्या के समाधान के लिए लो कॉस्ट पॉली टनल तकनीक एक अत्यधिक प्रभावी एवं सस्ती विधि के रूप में उभरी है. यह विधि एक संरक्षित वातावरण प्रदान करके नर्सरी पौधों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से सुरक्षित रखती है. इससे किसान अगेती नर्सरी तैयार कर सकते हैं और फसल को जल्दी तैयार कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं.
लो कॉस्ट पॉली टनल क्या है?
लो कॉस्ट पॉली टनल पारंपरिक पॉलीहाउस का लघु एवं किफायती रूप है, जिसे कम लागत में तैयार किया जा सकता है. यह छोटे एवं मध्यम स्तर के किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि इसमें नियंत्रित तापमान एवं नमी बनाए रखने की सुविधा होती है.
संरचना एवं सामग्री
- यह टनल बांस, लोहे की छड़ें, या PVC पाइप से बनाई जाती है.
- इसे पारदर्शी पॉलीथीन शीट (20-30 माइक्रोन मोटी) से ढका जाता है, जिससे सूरज की रोशनी भीतर प्रवेश कर तापमान को नियंत्रित रखती है.
- इसके अंदर नर्सरी बेड तैयार कर बीजों का अंकुरण किया जाता है.
लो कॉस्ट पॉली टनल में नर्सरी उगाने के फायदे
- बीज अंकुरण की उच्च दर: यह तकनीक तापमान को 5-7°C तक बढ़ाकर बीजों के तेजी से अंकुरण में सहायक होती है.
- अगेती उत्पादन: सब्जियों की नर्सरी जल्दी तैयार होने से मुख्य फसल जल्दी लगाई जा सकती है, जिससे बाजार में पहले पहुंचकर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.
- रोग एवं कीट प्रबंधन: पॉली टनल के संरक्षित वातावरण में फफूंद एवं अन्य रोगजनकों का प्रभाव कम होता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता घटती है.
- कम लागत, अधिक लाभ: पॉलीहाउस की तुलना में इसकी लागत कम होती है, जिससे छोटे किसान भी इसे आसानी से अपना सकते हैं.
- जल संरक्षण: पॉली टनल में नमी बनी रहने से सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, जिससे पानी की बचत होती है.
कैसे बनाएं लो कॉस्ट पॉली टनल?
1. आवश्यक सामग्री
- संरचना के लिए: बांस की फट्टियां, लोहे की छड़ें या PVC पाइप
- कवरिंग के लिए: पारदर्शी पॉलीथीन शीट (20-30 माइक्रोन मोटी)
- नर्सरी बेड के लिए: जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट, ट्राइकोडर्मा
2. निर्माण प्रक्रिया
- खेत की तैयारी: 1 मीटर चौड़ी, 15 सेंटीमीटर ऊंची और आवश्यकतानुसार लंबी क्यारियां बनाएं. मिट्टी को भुरभुरा कर जैविक खाद मिलाएं.
टनल का ढांचा तैयार करना
क्यारियों के ऊपर 2-3 फीट ऊंचाई पर लोहे की छड़ों या PVC पाइप को मोड़कर जमीन में गाड़ दें. इसके ऊपर पारदर्शी पॉलीथीन शीट फैलाकर किनारों को मिट्टी से दबाएं ताकि ठंडी हवा अंदर न जा सके.
बीज बुवाई एवं देखभाल
- उपयुक्त सब्जियों के बीजों को 2 सेंटीमीटर गहराई पर लाइन में बोएं. बीजों को हल्की मिट्टी और सड़ी हुई खाद से ढक दें और नमी बनाए रखने के लिए घास या पुआल डालें.
- फव्वारे से हल्की सिंचाई करें और आवश्यकतानुसार रोग प्रबंधन करें.
ग्रीष्मकालीन सब्जियों की नर्सरी की तैयारी
1. उपयुक्त फसलें
- कद्दू वर्गीय सब्जियां: लौकी, करेला, तरबूज, खरबूजा, कद्दू, ककड़ी
- अन्य सब्जियां: बैंगन, मिर्च, टमाटर
2. मिट्टी की तैयारी
- 2 किग्रा वर्मी कम्पोस्ट, 25 ग्राम ट्राइकोडर्मा और 75 ग्राम एनपीके प्रति वर्ग मीटर मिलाएं.
- 10 दिन पहले खाद डालने से मिट्टी में पोषक तत्व अच्छी तरह मिल जाते हैं.
3. बीज की बुवाई
- बीजों को 2 सेंटीमीटर गहराई पर लाइनों में बोएं. नमी बनाए रखने के लिए ऊपर से हल्की मिट्टी और पुआल डालें.
4. सिंचाई एवं रोग प्रबंधन
- पानी आवश्यकतानुसार दें, लेकिन जलभराव न होने दें. जैविक नियंत्रण विधियों से रोगों की रोकथाम करें.
मुख्य खेत में पौधों का स्थानांतरण
30-35 दिन बाद जब पौधे पर्याप्त रूप से विकसित हो जाएं, तब फरवरी के महीने में मौसम अनुकूल होने पर इन्हें मुख्य खेत में रोपित करें. पौधों को पर्याप्त दूरी पर लगाएं ताकि उनका अच्छा विकास हो सके. सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन और कीट नियंत्रण का ध्यान रखें.