भारत में धीरे-धीरे खेती करने का तरीका बदल रहा है अब किसान उन फसलों को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं जो कम समय में तैयार हो जाए और ज्यादा कमाई दे. इस लिहाज से सब्जियों की खेती करना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. सब्जियों में कद्दू एक ऐसी फसल है जो बहुत पोषक है. इसके कई हेल्थ बेनिफिट हैं. इसकी उत्पादकता एवम पोषक तत्वों का महत्त्व अधिक होने की वजह से लोग अब कद्दू को अहियत देने लगे हैं. इसके हरे फलों से लेकर पके हुए फलों और बीचों तक का खाने में खूब इस्तेमाल होता है. इसके पके हुए फलों से मिठाई भी बनाई जाती है. पके कददू पीले रंग के होते हैं जिसमे कैरोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है. कद्दू के बीजों में पर्याप्त मात्रा में जिंक होता है जोकि इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में कारगर है और वायरल, सर्दी-खांसी-जुकाम जैसे संक्रमणों से सुरक्षित रखता है. इसके अलावा कद्दू के बीजों का सेवन डिप्रेशन दूर करने में भी मददगार है.
कद्दू की उन्नत किस्में
कद्दू की कुछ ऐसी किस्में भी हैं जो महज 60 से 90 दिनों (2 से 3 महीनों) में तैयार हो जाती है. जिसका लाभ बहुत से किसान उठा रहे हैं. अगर कद्दू की खास किस्मों या प्रजातियों में पूसा विशवास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सीएस 14, सीओ 1 और 2, पूसा हाईब्रिड 1 और कासी हरित कददू की किस्मे हैं
विदेशी किस्मों में भारत में पैटीपान, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्मे छोटे स्तर पर उगाई जाती हैं.
लागत और मुनाफा
कद्दू की फसल बहुत जल्दी तैयार हो जाती है. और इसकी बुवाई में ज्यादा लागत भी नहीं आती. प्रति एकड़ जमीन पर कद्दू की खेती करने में केवल 3 हजार की लागत आती है..आपको बता दें कि प्रति एकड़ में 60 कुंतल कद्दू का उत्पादन होता है. अगर एक कुंतल कद्दू की कीमत कम से कम पांच हजार रुपए भी मानी जाए तो 20 से 30 हजार का मुनाफा बड़े आराम से हो जाता है. कद्दू का हाइब्रिड बीज बाजार में तीन हजार रूपए किलो मिलता हैं, बीज तो महंगा है लेकिन छोटे किसान एक साथ मिलकर एक किलो बीज खरीद लेते हैं. एक एकड़ जमीन में कद्दू की बुवाई के लिए 250 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
कहां-कहां होता है कद्दू का उत्पादन
वैसे तो कद्दू की बुवाई देश के सभी हिस्सों में की जा सकती है लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्पादन तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में होता है.
कद्दू की बुवाई के लिए जलवायु (climate for sowing of pumpkin)
कद्दू की खेती के लिए गर्म जलवायु की जरूरत होती है. कददू की खेती के लिए शीतोषण और समशीतोषण जलवायु दोनों उपयुक्त होती है. कद्दू के लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम उचित रहता है. गर्म और तर दोनों मौसम में इसकी खेती की सकती है. यानी कद्दू की अच्छा फसल के लिए पाले रहित 4 महीने का मौसम अनिवार्य है.
कद्दू की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for cultivation of pumpkin)
कद्दू की खेती करने के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे सही होती है. कद्दू की अच्छी पैदावार लेने के लिए मिट्टी/भूमी का पीएच 5.5 से 6.8 तक होना चाहिए. हालांकि मध्यम अम्लीय इलाकों में भी कद्दू की खेती की जा सकती है. उथली जड़ वाली फसल होने की वजह से कद्दू की बुवाई के लिए अधिक जुताइयों की जरूरत नहीं पड़ती.
बोने का समय (Time of sowing )
कद्दू की बुवाई का समय अलग-अलग क्षेत्रों पर निर्भर करता है. मैदानी इलाकों में इसे साल में कम से कम दो बार बोया जा सकता है, यहां इसकी बुवाई के लिए फ़रवरी से मार्च और जून से जुलाई का समय उचित रहता है. जबकि पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है. नदियों के किनारे इसकी बुवाई दिसंबर में भी कर सकते हैं.
खाद का उपयोग और देखभाल
कद्दू की अच्छी पैदावार पाने के लिए किसानों को सलाह है कि वो कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल करें. इसके लिए एक हेक्टेयर जमीन/भूमि में करीब 40-50 क्विंटल सड़े हुए गोबर की खाद और 20 किलो ग्राम नीम की खली डालें. इसमें 30 किलो अरंडी की खली भी मिला सकते हैं. बुवाई से पहले इस खाद को समान मात्रा में बिखेरने के बाद खेत की जुताई करें. जब खेत अच्छे से तैयार हो जाए तो कद्दू की बुवाई कर दें. अच्छे से सड़ी हुई गोबर खाद का इस्तेमाल इसलिए जरूरी है क्योंकि कम सड़ी हुई गोबर खाद की वजह से कीड़े लगने का खतरा रहता है. फसल को दीमक या अन्य कीड़ों से बचाने के लिए बुवाई के 20-25 दिन बाद नीम का काढ़ा और गौमूत्र लीटर मिलाकर छिडकाव करें. ये छिड़काव 10 से 15 दिनों के अंतर में करते रहें
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
जायद के मौसम में कददू की खेती के लिए हर हफ्ते सिंचाई की जरूरत होती है जबकि खरीफ यानी बरसात के मौसम में इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. बल्कि ज्यादा बारिश वाले इलाकों में जल निकासी की व्यवस्था करने की भी जरूरत पड़ जाती है. ग्रीष्म कालीन या सूखे मौसम में कद्दू की फसल के लिए 8-10 दिन के अंतर पर सिचाई करें. फसल से समय-समय पर खरपतवार निकालना बहुत जरूरी हो जाता है. अगर खरपतवार नहीं निकालेंगे तो पौधों में कीट लगने का डर रहता है और खरपतवार पौधे को बढ़ने भी नहीं देते. जरूरत पड़ने पर फसल में 3-4 बार हलकी निराई-गुड़ाई करें. निराई-गुड़ाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधों की तड़ों और बेल को कई नुकसान न पहुंचे.
कीट और रोग पर कैसे पाएं नियंत्रण
कद्दू की फसल में कई तरह के रोग और कीट लगने का खतरा रहता है जिनमें लालड़ी कीट भी है. इस कीट के लगने से पौधा नष्ट होने का डर रहता है. दरअसल, जब पौधे पर दो पत्तियां निकलती है तो इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है यह कीट पत्तियों और फूलों को खा जाता है इस कीट की सुंडी भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काटती है जिससे फसल का पौधा ख़राब होने का डर रहता है. इसकी रोकथाम के लिए फसल में कम 50 दिन पुराना गोमूत्र डालें. करीब 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र बचने पर इसे आग से उतार कर ठंडा कर लें और छानकर जरूरत के हिसाब से छिड़काव करें
फल की मक्खी
कद्दू की फसल में फल की मक्खी लगने का भी खतरा रहता है जो फलों में प्रवेश कर अंडे देती है अंडों से सुंडी बाहर निकलती है वह फल को बेकार कर देती है यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक नुकसान पहुंचाती है. इसकी रोकथाम के लिए 50 दुव पुरान गोमूत्र और धतूरे की पत्तियों को तांबे के बर्तन में उबालकर तैयार किया गया मिश्रण इस्तेमाल कर सकते हैं. इन सबके अलावा कद्दू वर्गीय फसलों में सफ़ेद ग्रब, चूर्णी फफूदी, मृदु रोमिल फफूंदी, मोजैक, एन्थ्रेक्नोज आदि लगने का भी खतरा रहता है
तुड़ाई के समय क्या रखें ध्यान
वैसे तो बुवाई के 75-90 दिन बाद हरे फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है फल को तेज चाकू से अलग करना चाहिए ताकि बेल खऱाब न हो. बाजार मांग को देखते हुए कद्दू के फलों की तुड़ाई करें.
उपज
सामान्य रूप से एक हेक्टेयर भूमि में करीब 250 से 300 कुंतल उपज होती है
कद्दू के क्या है हेल्थ बेनिफिट (health benefit of pumpkin)
दिल को रखता है स्वस्थ दिल को स्वस्थ रखने के लिए मैग्नीशियम की जरूरत होती है और कद्दू के बीजों से भरपूर मात्रा में होता है.जो लोग कद्दू के बीजों का सेवन करते हैं उनका ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रहता है जिससे दिल की समस्या नहीं होती.
इम्यून सिस्टम करता है मजबूत
कद्दू के बीजों में पाया जाने वाला जिंक इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने में मदद करता है. इससे वायरल, सर्दी-खांसी और जुकाम जैसे संक्रमणों का खतरा कम हो जाता है. इतना ही नहीं, शोधकर्ताओं के मुताबिक कद्दू के बीज इंसुलिन की मात्रा को संतुलित करने का काम करते हैं.जो मधुमेह/डायबटीज के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है.
पुरुषों के लिए फ़ायदेमंद
सालों से कद्दू के बीजों का सेवन पुरुषों के लिए बेहतर माना जाता रहा है. इसमें मौजूद जिंक प्रोस्टेट ग्रंथि के लिए उपयोगी है.