Buckwheat farming: कुट्टू की खेती से किसानों की जिंदगी संवर रही है. इसकी खेती पहाड़ी इलाकों में होती है. कुट्टू काफी फायदेमंद अनाज है, जिससे मधुमेह जैसी बीमारी से निजात मिल सकती है. यही कारण है कि केंद्र सरकार कुट्टू की खेती को बढ़ावा दे रही है. कुट्टू को पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत माना जाता है.
कुट्टू में मैग्नीशियम, विटामिन-बी, आयरन, कैल्शियम, फॉलेट, जिंक, कॉपर, मैग्नीज और फासफोरस भरपूर मात्रा में पाया जाता है. कुट्टू के बीज का इस्तेमाल नूडल, सूप, चाय, ग्लूटिन फ्री-बीयर वग़ैरह के उत्पादन में होता है. इस फसल की मांग जापान और दुनिया के अन्य हिस्सों में है. तो आइए जानते हैं कुट्टू की उन्नत खेती करने का सही तरीका-
उपयुक्त मिट्टी
कुट्टू को सभी किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन ज़्यादा लवणीय और सोडिक भूमि में इसकी पैदावार अच्छी नहीं मिलती. कुट्टू को अम्लीय और कम उपजाऊ जमीन में भी उगाया जा सकता है. यह खरपतवार को दूर रखता है और मिट्टी को कटाव से भी बचाता है. कुट्टू की खेती के लिए मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 हो तो इसे बेहतर माना जाता है. खेत को कल्टीवेटर से जुताई करके तैयार किया जाता है.
कुट्टू की उन्नत खेती
बीज की मात्रा कुट्टू की किस्म पर निर्भर करती है. स्कूलेन्टम के लिए 75-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ेगी, जबकि टाटारीकम प्रजाति के लिए 40-50 किगा प्रति हेक्टेयर की मात्रा पर्याप्त होगी. कुट्टू के पौधों के तने कमजोर होने के कारण फसल में गिरने की समस्या आ सकती है. अतः खेत में पौध संख्या अधिक रखनी चाहिए. बुआई के वक़्त कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए. उपयुक्त जलवायु और मृदा में पर्याप्त नमी की उपलब्धता होने पर कुट्टू के बीज 4-5 दिन में अंकुरित हो जाते हैं.
बुवाई का समय
पहाड़ी क्षेत्रों में कुट्टू की खेती के लिए बुवाई का सही वक़्त रबी मौसम में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच का होता है. उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी इलाकों में बरसात के सीजन में जून-जुलाई और वसंत ऋतु के दौरान मार्च-अप्रैल में होती है. वहीं, पूर्वोत्तर की पहाड़ी इलाकों में इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर में होती है. मैदानी क्षेत्रों में कुट्टू की बुवाई मानसून आगमन के साथ अगस्त माह तक की जा सकती है.
खेती की सही देखरेख
कुट्टू की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश को 40:20:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालने से पैदावार अच्छी मिलती है. बुवाई के वक़्त ही फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालनी चाहिए. बाक़ी नाइट्रोजन को उस वक़्त डालना चाहिए जबकि कुट्टू के पौधों से बालियाँ निकलने लगें. कुट्टू की जैविक खेती के लिए उर्वरको के स्थान पर 4-5 टन गोबर की खाद खेत की अंतिम जुताई के समय खेत में मिलाने से अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
बुवाई के बाद देखभाल
कुट्टू की फसल में सूखा सहन करने की क्षमता होती है. वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. बुवाई के बाद यदि सिंचाई की सुविधा हो तो 5-6 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवार के नियंत्रण के लिहाज़ से संकरी पत्ती के लिए 3.3 लीटर पेन्डीमेथिलीन का 800-1000 लीटर पानी में घोल कर बुवाई के 30-35 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए.
उन्नत किस्में
कुट्टू की देशी प्रजातियां देर से पकती हैं और उपज भी कम देती है. उन्नत किस्मों से अधिक उपज प्राप्त होती है. कुट्टू की प्रमुख उन्नत किस्मों का विवरण अग्र तालिका में प्रस्तुत है.
कटाई और पैदावार
कुट्टू की फसल एक साथ नहीं पकती. इसलिए फसल में लगभग 80 प्रतिशत दाने पक जाने की स्थिति में फसल की कटाई करनी चाहिए. कुट्टू की फसल में बीजों के झड़ने की समस्या ज़्यादा होती है. कटाई के बाद फसल का गट्ठर बनाकर, इसे सुखाने के बाद गहाई करनी चाहिए. कुट्टू की औसत पैदावार 11-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. फसल में लगभग 80 प्रतिशत दाने पक जाने की स्थिति में फसल की कटाई करनी चाहिए.