गेहूं शीतोष्ण जलवायु की फसल है. गेहूं की फसल के विकास या बढ़वार के समय पर्याप्त ठंडक एंव दाना पकते समय गर्मी की आवश्यकता होती है. बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा फसल बढ़ने के समय 14-15 डिग्री सेल्सियस उत्तम रहता है. पकते समय गर्म शुष्क मौसम आवश्यक है.
भूमि
गेहूं की खेती हेतु पर्याप्त जलधार क्षमता वाली होमट, काली एंव बलुई दोमट भूमि उत्तम रहती है. अधिक रेतीली, क्षारीय एंव अम्लीय उपयुक्त नहीं रहती है.
बुवाई का समय
असिंचित क्षेम में बुवाई का उत्तम समय मध्य अक्टूबर से नवबंर का प्रथम सप्ताह है. सिंचाई की सुविधा होने पर मध्य नवबंर तक बुवाई कर सकते है.
खेत की तैयारी
चूंकि अधिकांश क्षेत्र वर्षा आधारित या कम सिंचाई वाले है. इसलिए रबी के मौसम की फसल में जल संरक्षण का महत्व बढ़ जाता है. ऐसे में खरीफ की फसल मक्का अथवा सोयाबीन की कटाई के तुरन्त बाद खेत की 2-3 जुताई कर पाटा चलाकर मट्टी को कुरकुरा बनाकर नमी संपक्षित कर लेते है. अक्टूबर माह में देर से जुताई करने पर मनी का हाल तेजी से होता है. पटा चलाने से पूर्व कम्चोस्ट, होबर खाद तथा धन जीवामृत को खेत में छिड़कर पाटा चलाते है.
खाद एवं जैव-उर्वक
खाद की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर सुनिश्चित करते है. सामान्य मृदा में 10-12 टन सड़ी गोबर अथवा कम्चोस्ट खाद तथा 400-500 किलोग्राम धन जीवामृत प्रति एकड़ आवश्यक होता है. जैव उर्वरक एजोरोबैक्टर, पीएसबी, पोटाश एंव जिंक घोवक जीवाणु कल्टर का उपयोग बुवाई से पूर्व बीज उपचार करते समय करें. इन कल्चर की मात्रा उत्पादनकर्ता की संस्तुत के आधार पर निश्चित करें.
बीज का मात्रा
बीज की मात्रा बीज के अंकुरण क्षमता एंव दोनों के आकार पर निर्भर करता है. छोटे दानों की प्रजाति तथा अंकुरण 70 प्रतिशत होने की दशा में 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ तथा बड़े दाने वाली प्रजाति 70 प्रतिशत अंकुरण होने पर 50 किलोग्रम प्रति एकड़ बोते है.
बीज उपचार
बीज जमाव परीक्षण कर मात्रा निर्धारण के पश्चात बीज उपचार करते है. इसके लिए ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी की 5-10 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचारित करते है. इसके पश्चात जीवाणु खाद, बायोफर्टीलाइजर, जैव उर्वरक, जीवाणु कल्चर से बीजे से उपचारित करते है यादि घोल वाला कल्चर है तो उसमें आवश्यक मात्रा में साफ पानी मिलाकर बीज में मिलाते है यदि पाउडर वाला कल्चर है तो 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में 30 मिनट उबालकर ठंडाकर पाउडर को कल्चर की आवश्यक मात्रा मगड़ के पानी में मिलाकर बीज में मिलाते है. उपचारित बीज को छाया वाले स्थान पर थोड़ी देर फैला देते है. इसके बाद हुवाई करते है. उपतारित बीज को 2-3 घेरे के अंदर अवश्य बुवाई करें.
बुवाई की विधि
गेहूं की बुवाई छिटकर तथा पंक्ति में दोनों विधि से की जाती है. पंक्ति में बोने हेतु बैल के पीछे बूड़ में बैक चालित सीड़ ड्रिक अथवा ट्रैक्टर चालित सीड़ ड्रिक का प्रयोग करते है. पंक्ति में बुवाई करने पर कतार से कतार के बीच की दूरी 23-25 सेमी तथा गहराई 4-5 सेमी रखते है. बुवाई में इस बात का मुख्यरूप से ध्यान रखते है कि विधि कोई भी हो परन्तु फसल मने 400-500 वाली प्रति वर्ग मीटर मिलना चाहिए.
तरल जैविक खाद एंव उपयोग
गेहूं की अच्छी पैदावार हेतु खड़ी फसल में तरल खाद का प्रयोग आवश्यक होता है. इसके लिए पहली सिंचाई के समय पानी के साथ 400 लीटर जीवामृत तथा 400 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर घोल का प्रयोग करते है और इतनी ही मात्रा प्रत्येक सिंचाई में देते है. पहली सिंचाई के पश्चात जब फसल 4-8 इंच की हो जाए, तब 1-2 लीटर जीवामृत तथा 1-2 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर घोल को 10-12 लीटर पानी में मिलाकर दोपहर के बाद खड़ी फसल पर स्प्रे करते है. स्प्रे एक सप्ताह के अन्तराल पर फूल आते तक करने से अच्छी पैदावार मिलती है छिड़काव इस प्रकार करें कि पूरा पौधा गीला हो जाए.
सिंचाई एंव जल प्रबन्धन
फसल की सिंचाई की संख्या उपलब्ध जब संसाधन एंव फसल की अवस्था पर निर्भर करती है. जहां तक संभव हो स्प्रिंकलर से सिंचाई करें. गेहूं के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त रहती है.
पहली सिंचाई – बुवाई के 2-30 दिन पर जड़ो के विकास पर
दूसरी सिंचाई – बुवाई के 45-50 दन पर कल्ले फूटने पर
तीसरी सिंचाई - बुवाई के 70-75 दिन पर बलिया निकलते समय
चौथी सिंचाई – दाना पकते समय करते है.
खरपतवार नियंत्रण
जैविक विधि से गेहूं उत्पादन में खेत को खर पतवार मुक्त रखना आवश्यक है. इसके लिए भली प्रकार सड़ी गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद को प्रयोग करें. फिर भी यदि खरपतवार उगते है तो उन्हें आरम्भिक अवस्था में उखाड़कर निराई-गुड़ाई कर नष्ट कर दें. नियामित फसलचक्र एंव सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करने से खर पतवार कम होते है. खेत के साथ-साथ मेड़ पर उगे खर पतवार को भी दराती की सहायता से काट दें, जिससे उनमें फूल बीज वन कर प्रसारण न हो.
फसल संरक्षण
सामान्यत: गेहूं की फसल पर कीट रोग का प्रयोग न के बराबर होता है, फिर भी कभी-कभी माहुं का प्रकोप देखा गया है. ऐसे में 5 प्रतिशत मीन बीड का राख अथवा 5 मि.ली. प्रतिलीटर पानी में नीम का स्प्रे करना लाभदायक होता है.
दीमक प्रभावित क्षेत्र में बुवाई के समय एक बड़े चने के आकार का हींग को लेकर 3-5 ली गाय के दूध,घी में घोलकर पूरे खेत में स्रप्रेकर बुवाई कर दें.
बुवाई के पश्चात छिद्र युक्त मटका में सूखे गोबर, उपले, मक्का की गिल्ली भर कर मुहं पर कपड़ा बाधकर खेत के किनारे गाड़ दें. इसे निकाल कर मुर्गी को खिला दें अथवा जलाकर नष्ट कर दें.
गेस्आरोग के लक्ष्ण दिखाई देने पर टाइकोडरम जैविक फफूदनाशी 10 ग्राम लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें. रोग रोधी क़िस्मों की बुवाई करें.
फसल कटाई
जब फसल पूरी तरह पक जाए तथा दानों में नमी 12-18 प्रतिशत रहे, पौधा तथा बाली दोनों सूखी हो कटाई करना चाहिए.
मड़ाई
कटाई के पश्चात 2-3 दिन फसल के रखने के पश्चात मड़ाई करते है. मड़ाई से पूर्व प्रेसर की अच्छे से सफाई कर लेते है, जिससे किसी समय फसल के दाने अथवा अन्य खेत के गेहूं के दानों का मिश्रण जैविक फसल में न हो.
भण्डारण
मड़ाई के पश्चात प्राप्त अनाज को सफाई कर भण्डारित करते है. भण्डारण के समय अनाज में नमी 10 प्रतिशत से कम होतना चाहिए. भण्डारण में उपयोग बोरी, बरवारी, ड्रम आदि को कीटाणु रहित करके उपयोग करते है. (आर्दश भण्डारण पद्धति को अपनाएं)
उन्नत किस्में
मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र रतलाम, उज्जैन, इन्दौर निम्न किस्मों की संस्तुत की गयी है. यह संस्तुति सिंचाई की उपलब्धता पर आधारित है.
असिंचित क्षेत्र हेतु
जे.डब्यू 17,3269,3288
एच.आई 1500,1531
एच.डी – 467
सिंचित क्षेत्र हेतु
जे.डब्यू – 1201,322,273
एच.आई – 8498, 1544
जिमाड़ क्षेत्र – झबुआ एंव अलिराज पुर हेतु
असिंचित क्षेत्र हेतु –
जे.डब्यू – 3020,3173,3269
एच.आई – 1500
लेखक – संजय श्रीवास्तव