हमारे देश में बहुत सारी औषधीय फ़सलों की खेती की जाती है जैसे- अश्वगंधा, सहजन, अकरकरा, अदरक, कलौंजी, लेमनग्रास, शतावरी इत्यादि. आज हम कलौंजी की खेती के बारे में बात कर रहे हैं. कलौंजी न सिर्फ़ औषधीय फ़सल है बल्कि मसाला फ़सल भी है. किसान कलौंजी की खेती कैसे कर सकते हैं, उन्नत क़िस्में कौन-कौन सी हैं, जलवायु, फ़सल संरक्षण वग़ैरह विषयों पर इस लेख में प्रकाश डाला गया है इसलिए कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) से अच्छे उत्पादन के लिए पूरा लेख ज़रूर पढ़ें.
कलौंजी के बारे में जानें
जैसा कि हमने जाना कि कलौंजी एक औषधीय फ़सल (medicinal crop) है. इसका वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है. औषधी और मसालों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. पेट दर्द, अपच और डायरिया जैसे रोगों में कलौंजी बेहद लाभकारी है. सरदर्द और माइग्रेन में भी यह बख़ूबी काम करता है. इसके अलावा अन्य रोगों में भी इसका इस्तेमाल होता है. इसके बीज में 0.5 से 1.6 फ़ीसदी तक तेल पाया जाता है जिससे विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनती हैं. भारत दुनिया में कलौंजी उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर आता है. मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में प्रमुख रूप से कलौंजी की खेती की जाती है. चलिए अब जानते हैं कि कलौंजी की खेती कैसे कर सकते हैं-
कलौंजी की उन्नत क़िस्में
कलौंजी की खेती के लिए उन्नत क़िस्में- एन.आर.सी.एस.एस.एन.-1, अजमेर कलौंजी, एन.एस.-44, एन.एस.-32, आजाद कलौंजी, कालाजीरा, पंत कृष्णा और राजेंद्र श्याम हैं. कलौंजी की फ़सल क़िस्मों के लिहाज से औसतन 135 और अधिकतम 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है.
कलौंजी के बीज का उपचार ऐसे करें
अपनी ज़रूरत के हिसाब से उचित क़िस्म का चुनाव करने के बाद बुआई से पहले बीज उपचार बहुत ज़रूरी है. बीजोपचार न करने से फ़सल में बीज जनित बीमारियों की आशंका रहती है. कलौंजी के प्रति किलोग्राम बीज को कैप्टान और बाविस्टीन की 2.5 ग्राम मात्रा से उपचारित करना चाहिए. एक हेक्टेयर खेत के लिए 7 किग्रा बीज पर्याप्त है.
कलौंजी की खेती के लिए भूमि और जलवायु
कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, हालांकि इसे दूसरी प्रकार की मृदाओं में भी उगाया जा सकता है. खेत की मिट्टी भुरभरी होनी चाहिए और उसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए नहीं तो फ़सल सड़ जाएगी. भारत के उत्तरी हिस्से में कलौंजी की खेती रबी फ़सल के तौर पर होती है. जलवायु की बात करें तो शुरू में पौधों को बढ़ने के लिए ठंडी और बीज परिपक्वता के समय शुष्क और गर्म जलवायु उपयुक्त है.
कलौंजी के खेत की तैयारी और बुवाई
किसानों को चाहिए कि बुआई से पहले अपने खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लें इससे सिंचाई के बाद बीज का जमाव एक समान होता है. ऐसा करने से फ़सल अच्छी होती है. खेत में दीमक हो तो क्विनॉलफॉस 1.5% या मिथाइल पैराथियान 2% में से किसी एक को 25 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई के समय खेत बिखेरें. इसकी बुआई कतार विधि से करें, जिसमें बीज की बुआई 30 सेमी की दूरी पर बनी कतारों में करनी चाहिए. कतारों की गहराई 2 सेमी से ज़्यादा न हो इस बात का विशेष ध्यान दें.
कलौंजी की फसल सिंचाई
कलौंजी की फ़सल में 5 से 6 सिंचाई की ज़रूरत होती है, पुष्पण व बीज विकास के वक़्त ज़मीन में नमी होना बहुत ज़रूरी है. इस फ़सल में जड़ सड़न रोग और दीमक, माहू का प्रकोप ज़्यादा होता है. इनसे बचने के लिए विशेषज्ञ की सलाह पर उचित रसायनों का इस्तेमाल करें.
कलौंजी की फसल के लिए खाद और उर्वरकों का उपयोग
खेत की तैयारी के दौरान ही मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 10 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह उसमें मिला देना चाहिए. भूमि परीक्षण के बाद उसमें उचित पोषक तत्वों जैसे- नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस, पोटाश की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए.
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कलौंजी की फसल उपज
कलौंजी की खेती में उत्पादन की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल उपज मिल जाती है. उम्मीद है आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी. कृषि से जुड़ी ख़बरों के लिए जुड़े रहिए कृषि जागरण के साथ.