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Updated on: 24 March, 2023 9:00 PM IST
कालमेघ की खेती

कालमेघ का औषधीय पौधों में अहम स्थान होता है. भारतीय चिकित्सा में कालमेघ के पौधे को एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा कहा जाता है, इसे कडू चिरायता और भुईनीम के नाम से जाना जाता है. इसका उपयोग अनेकों आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाइयां बनाने में किया जाता है. यह यकृत विकारों को दूर करने और मलेरिया रोग को खत्म करने में एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में काम करता है. खून साफ करने, जीर्ण ज्वर और विभिन्न चर्म रोगों को दूर करने में इसका उपयोग होता है. औषधीय गुणों की वजह से इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.

अनुकूल जलवायु- खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. भारत में कालमेघ की फसल खरीफ की फसल के साथ होती है. बारिश के मौसम में कालमेघ का पौधा अच्छे से विकास करता है. फसल को 110 CM वार्षिक बारिश की जरूरत होती है. गर्मी के मौसम में पौधा आसानी से विकास कर लेता है लेकिन सर्दियों का पाला पौधों के लिए हानिकारक होता है. पौधों का अंकुरण 20 डिग्री तापमान पर अच्छे से होता है और सामान्य तापमान पौध विकास के लिए उपयोगी होता है. पौधा अधिकतम 35-45 डिग्री तापमान आसानी से झेल सकता है. 

उपयुक्त मिट्टी- कालमेघ की खेती के लिए उचित जलनिकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. कठोर, चिकनी और जल भराव वाली भूमि में खेती नहीं करनी चाहिए. भूमि का पीएच मान भी सामान्य हो तो पैदावार अच्छी होती है.

खेत की तैयारी- कालमेघ की फसल के लिए खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हलों से करना चाहिए फिर खेत में खाद के रूप में सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिलाना चाहिए. इसके बाद कालमेघ के खेत में पानी लगाकर पलेव कर देना चाहिए. इसके बाद खेत में खरपतवार निकल आती है, फिर खेत की 2 -3 तिरछी जुताई करें. जुताई के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए.

पौधों की रोपाई- कालमेघ के पौधों को लगाने के लिए जून से जुलाई समय अच्छा होता है क्योंकि जून के महीने से वर्षा ऋतु का मौसम शुरू हो जाता है और पौधों को अंकुरण के लिए उचित वातावरण मिलता है. इस दौरान पौधों को सिंचाई की जरूरत नहीं होती. कालमेघ के पौधों की रोपाई मेड़ और समतल दोनों ही तरह की भूमि में हो सकती है. समतल भूमि पर पौधों को 15 सेमी की दूरी पर पंक्ति में लगाना चाहिए और मेड़ पर पौधों को 40X20 सेमी पर लगाना चाहिए.

पौधों की सिंचाई- कालमेघ की खेती के दौरान समय से बारिश न होने और जरूरत पड़ने पर 2-3 सिंचाई करना चाहिए. यदि कालमेघ की खेती बहुवर्षीय तौर पर की गई है तो जरूरत के हिसाब से पौधों को पूरे वर्ष में 6-8 बार पानी देना चाहिए.

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पैदावार और लाभ- कालमेघ की खेती अच्छी देखरेख से की जाए तो एक हेक्टेयर से 2-4 टन तक सूखी शाखाएं और 4 क्विंटल तक बीज मिल सकता है जिनका बाज़ार भाव लगभग 15-50 रूपये प्रति किलो रहता है. इस हिसाब से किसान कालमेघ की खेती कर सालाना एक लाख से ज्यादा की कमाई आसानी से कर सकते हैं.

English Summary: Kalmegh farming can earn amazing, grow crops like this
Published on: 24 March 2023, 11:14 AM IST

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