धान एक प्रमुख खाद्यान फसल है, जो पूरे विश्व की आधी से ज्यादा आबादी को भोजन देती है। चावल के उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर आता है। भारत में धान की खेती लगभग 450 लाख हैक्टर क्षेत्रफल में की जाती है। लेकिन धान की फसल की अच्छी पैदावार के लिए फसल को रोग से बचाना भी बहुत जरूरी होता है। फसलों की पैदावार और आर्थिक क्षति के दृष्टिकोण से वर्तमान समय में देश में मुख्य रूप से ब्लास्ट, ब्रॉउन स्पॉट, स्टेम रॉट, शिथ ब्लाइट और फुट रॉट काफी अहम है, तो आइये जानते हैं, इन रोगों से जुड़ी जरूरी जानकारी और उपचार
1 पत्ती का झुलसा रोग- यह रोग फसल में कभी भी लग सकता है। पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं। सूखे पत्ते के साथ-साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखते हैं। बालियां दानारहित रह जाती हैं।
उपचार- नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन 100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (फाइटोलान ) /ब्लाइटॉक्स-50 /क्यूप्राविट का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर/ हैक्टर की दर से 3-4 बार 10 दिनों के अंतराल से छिड़कें। ट्रेप्टोमाइसीन/एग्रीमाइसीन से बीज को उपचारित करके बोएं। रोग के लगने पर नाइट्रोजन की मात्रा कम कर दें।
- ब्लास्ट या झोंका- यह रोग फफूंद से फैलता है। देर से रोपाई करने पर फसल झोंका से प्रभावित होती हैं। पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखने लगते हैं। कत्थई रंग और बीच वाला भाग राख के रंग का हो जाता है। फलस्वरूप बाली आधार से मुड़कर लटक जाती है दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है।
उपचार- बीज का कार्बेन्डाजिम और थीरम (1:1) 3 ग्राम/किग्रा या फंगोरीन 6 ग्राम/ किग्रा की दर से बीजोपचार करना चाहिए। कार्बेन्डाजिम (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 500 ग्राम या कासूगामाइसिन (3) प्रतिशत एम.एल.) 1.15 लीटर दवा 500-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़कें।
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झुलसा या जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग- यह रोग जीवाणु से होता है। पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगती हैं। सूखे पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखते हैं। पत्तों पर जीवाणु के रिसाव से छोटी-छोटी बूंदें नजर आती हैं पौधों में शिथिलता आ जाती है। बालियां दानों से रहित रह जाती हैं।
उपचार- रोग लगने पर नाइट्रोजन का प्रयोग कम करें। खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था करें। रोग के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन-100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से 3-4 बार छिड़काव करें।
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बकानी रोग- पत्तियों का दुर्बल और असामान्य रूप से लंबा होना रोग की पहचान है, संक्रमित पौधे में टिलर्स की संख्या कम होती है और कुछ सप्ताह में सभी पत्तियां सूख जाती हैं। जड़ें सड़कर काली हो जाती हैं और उनमें दुर्गंध आने लगती है।
उपचार- नियंत्रण के लिए कवकनाशियों के साथ बीजोपचार करें। कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम/लीटर पानी) घोल में बीजों को 24 घंटे भिगोयें और अंकुरित करके नर्सरी में बिजाई करें। रोपाई से पहले पौध का 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 12 घंटे तक उपचार भी प्रभावी पाया गया है।
5.खैरा रोग- निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं और बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के छिटकवा धब्बे उभरने लगते हैं। पौधों की बढ़ोतरी रुक जाती है।
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उपचार- 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए। रोकथाम के लिए 5 किग्रा जिंक सल्फेट और 2.5 किग्रा चूना 600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर का छिड़काव करें।