देश में किसान दलहनी फसलों की खेती बहुत चाब से करता है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफ़ा मिलता है. क्योंकि बाजार में अधिकतर दालों की मांग होती है, ऐसे में आपको उड़द की फसल में लगने वाले रोगों की जानकारी देने वाले हैं. कई बार उड़द की फसल कई तरह के रोगों की चपेट में आ जाती है. जिसका फसल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इस तरह करें फसल की देखभाल
उड़द में लगने वाले रोग और उपचार
पिला मोजेक- इस रोग के लक्षण पत्तियों पर गोलाकार धब्बों के रूप में दिखता है, यह दाग एक साथ मिलकर तेजी से फैलते हैं. जो बाद में बिलकुल पिले हो जाते हैं. यह रोग सफ़ेद मक्खी से फैलता है. बचाव के लिए डाइमेथोएट 30 ई. सी. की एक लीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
पर्ण दाग - इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर गोलाई लिए भूरे रंग के कोणीय धब्बे के रूप में दिखाए देते हैं जिसके बीच का भाग राख या हल्का भूरा और किनारा बैंगनी रंग का होता है. बचाव के लिए कार्बेडाजिम 500 ग्राम पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
उड़द में लगने वाले कीट और बचाव
थ्रिप्स- इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों पत्तियों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं. बचाव के लिए डायमेथोएट 30 ई. सी. एक लीटर दवा 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
हरे फुदके- यह कीट पत्ती की निचली सतह पर बड़ी संख्या में होते हैं. प्रौढ़ का रंग हरा, पीठ के निचले भाग में काले धब्बे होते हैं. बचाव के लिए इमिडाक्लोरपिड का 0.3 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
फली बेधक- इस कीट की सुंडी उड़द की पत्तियों में छेद करके उसमे विकसित हो रहे बीज को खा जाती है. बचाव के लिए क्युनोल्फोस 25 ई. सी. की 1.25 लीटर दवा 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
खाद एवं उर्वरक- उड़द एक दलहनी फसल है जिसके कारण नाइट्रोजन की अधिक जरूरत नहीं होती, लेकिन पौधों की प्रारम्भिक अवस्था में जड़ों एवं जड़ ग्रंथियों की वृद्धि और विकास के लिए 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-45 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर देना चाहिए.
ये भी पढ़ेंः उड़द की खेती किस मौसम में करें? यहां जानें इससे जुड़ी सारी सही जानकारी...
निराई- गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण- उड़द की बुवाई के 15-20 दिन की अवस्था में गुड़ाई हाथों से खुरपी की सहायता से करनी चाहिए. रासायनिक विधि से नियंत्रण के लिए फ्लुक्लोरीन एक किलोग्राम सक्रीय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. बीज की बुवाई के बाद परंतु बीज के अंकुरण के पहले पेन्थिमेथलीन 1.25 किलोग्राम संक्रिय तत्व की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण करें.