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Updated on: 5 December, 2022 5:23 PM IST
जानते हैं ईसबगोल की खेती के बारे में.

भारत में औषधीय पौधों की खेती का चलन काफी बढ़ गया है. कोरोना काल के बाद से औषधीय पौधों की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई है, इन्हीं में से एक फसल है ईसबगोल. जिसका उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है. बाजार में भी इसकी खूब मांग रहती है. इसके पौधों की पत्तियां धान के पौधों की तरह होती हैं. भारत में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इसकी खेती खूब की जाती है. किसानभाई अपने खेत में ईसबगोल की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं ईसबगोल की खेती के बारे में.

उचित मिट्टी व जलवायु- ईसबगोल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है, ज्यादा बारिश की जरूरत नहीं होती. फसल पकने के दौरान बारिश होने से इसकी पैदावार प्रभावित होती है. ईसबगोल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. मिट्टी का पीएच मान सामान्य होना चाहिए. पौधों के विकास पर तापमान का खास प्रभाव देखने को मिलता है. पौधों को विकास करने के लिए शुरुआत में सामान्य तापमान की जरूरत होती है. पौधों पर फलियां आने के वक्त तापमान की ज्यादा जरूरत होती है.

ईसबगोल की उन्नत किस्में-

जवाहर ईसबगोल 4- यह किस्म रोपाई के 110 से 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है, प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल तक उत्पादन देती है.

आर.आई. 89 - यह किस्म भी 120 दिन में तैयार हो जाती है, प्रति हेक्टेयर 12 से 16 क्विंटल तक उत्पादन देखने को मिलता है. इसके पौधों का आकार एक से डेढ़ फीट तक होता है.

गुजरात ईसबगोल 2 - इस किस्म के पौधों को सबसे ज्यादा गुजरात में उगाया जाता है. प्रति हेक्टेयर 9 से 10 क्विंटल तक उत्पादन होता है.

हरियाणा ईसबगोल 5 - यह किस्म 90 से 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास होता है.

आई. आई. 1 – यह किस्म अधिक पैदावार के लिए विकसित की गई है. प्रति हेक्टेयर 12 से 16 क्विंटल तक उत्पादन होता है. यह किस्म 110 से 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है.

खेत की तैयारी- ईसबगोल की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई कर गोबर की खाद मिला दें. इसके बाद मिट्टी को पलेवा कर छोड़ दें. पानी जब सूख जाए तो खेत की रोटावेटर चलाकर गहरी जुताई कर दें. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती है. ईसबगोल के बीजों की रोपाई खेत में समतल और मेड दोनों पर की जा सकती है.

बीज रोपाई का समय- ईसबगोल के बीजों को आप नर्सरी से या ऑनलाइन खरीद सकते हैं. एक हेक्टेयर में चार से 5 किलो बीज की मात्रा उपयुक्त होती है. बीज रोपाई से पहले बीजों को मेटालेक्जिल से उपचारित करें. ईसबगोल के बीजों की रोपाई समतल और मेड दोनों पर की जा सकती है. समतल भूमि पर बीज रोपाई के लिए छिड़काव विधि और मेड पर रोपाई के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है.

बुवाई का सही समय- बीजों की रोपाई सही समय पर की जानी जरूरी है. बीजों की रोपाई अक्टूबर माह के आखिरी सप्ताह से नवम्बर माह के मध्य तक कर देनी चाहिए. अगर इसके पहले या बाद में अगेती या पछेती किस्मों की रोपाई करते हैं तो पैदावार कम होने और रोग का प्रकोप ज्यादा होने की संभावना रहती है.

सिंचाई- इसकी खेती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. बीज रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें, बीजों का अंकुरण कम मात्रा में हो तो खेत की चार से पांच दिन बाद एक बार फिर से हल्की सिंचाई कर दें. बीजों के अंकुरण के बाद पौधों को पानी की कम जरूरत होती है. पहली सिंचाई अंकुरण के 30 से 35 दिन बाद, दूसरी सिंचाई, पहली सिंचाई के लगभग 20 से 30 दिन बाद करनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा- पौधों में अच्छी गोबर की खाद डालें. व रासायनिक खाद के रूप में एक बोरा एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में आखिरी जुताई के वक्त छिड़कें. इसके साथ ही 25 किलो नाइट्रोजन की मात्रा को सिंचाई के वक्त छिड़काव कर पौधों को देना चाहिए.

रोग उपचार- ईसबगोल के पौधों पर मोयला, व मृदुरोमिल आसिता रोगों का प्रकोप दिखता है. जिससे बचाव के लिए पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड या ऑक्सी मिथाइल डेमेटान, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण – खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें. रासायनिक उपचार के लिए बीजों की रोपाई के बाद सल्फोसल्फ्यूरॉन या आइसोप्रोट्यूरॉन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की कटाई- पौधों की कटाई 110 से 120 दिन बाद की जाती है. पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाएं तब पौधों की कटाई की जाती है. पौधे की कटाई के बाद इसके दानों को, बालियों को सुखाकर हाथ से मसलकर निकाल लिया जाता है, वहीं ज्यादा फसल होने पर मशीनों की सहायता ली जाती है. इसकी भूसी का इस्तेमाल चारे के रूप में किया जाता है.

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पैदावार व मुनाफा- ईसबगोल की किस्में प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल तक उत्पादन देती हैं. इसके दानों से मिलने वाली भूसी की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके दानों का बाज़ार भाव 8 हज़ार के आसपास पाया जाता है. जबकि भूसी का भी अच्छा दाम मिलता है. ऐसे में किसानभाई प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ लाख तक की कमाई कर सकते हैं.

English Summary: Isabgol farming will give huge profit
Published on: 05 December 2022, 05:31 PM IST

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