Kerala: तिरुवनंतपुरम से 35 किलोमीटर दूर कुलथूर गांव अपने धान और केले के लिए प्रसिद्ध हैं. अब यह गांव अदरक की खेती के लिए भी मशहूर हो रहा है. किसान वीके गिरिजनाधन नायर अपने ढाई एकड़ के प्लॉट पर केला, नारियल और कई तरह की सब्जियां उगाते थे, लेकिन पहली बार अदरक की खेती कर उन्होंने लोगों को हैरान कर दिया.
हालांकि अदरक की केरल के व्यंजनों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. इसकी खेती तिरुवनंतपुरम जिले में व्यापक रूप से की जाती है. यह ज्यादातर इडुक्की में उगाया जाता है और वायनाड, पलक्कड़, कोझिकोड और कन्नूर में सैकड़ों किसान भी लीज की जमीन पर खेती कर रहे हैं.
इस साल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुलथूर ग्राम पंचायत के 250 किसानों को अदरक की खेती के लिए चुना गया था. इस योजना को 'इंजी ग्रामम' के नाम से जाना जाता है. यह पंचायत और कुलथूर कृषि भवन की एक पहल थी. इसकी पहली फसल से लगभग 10 टन अदरक की पैदावार हुई थी. यह लंबी पत्तियों और पतले डंठल के साथ खेतों में बहुत ही मनोरम लगते हैं, लेकिन एक बार अदरक की खुदाई हो जाने के बाद पौधे मर जाते हैं और फिर से खेती शुरू करनी पड़ती है.
चंद्रलेखा सीएस (कृषि अधिकारी, कुलथूर कृषि भवन, और सहायक कृषि निदेशक, परसाला ब्लॉक पंचायत) ने कहा कि अदरक की खेती के लिए कुल क्षेत्रफल लगभग दो हेक्टेयर था. यह आंकड़ा उन घरों में शामिल है, जहां फसल उगाने के लिए किसानों को दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है. इस योजना का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को अदरक की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना था.
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अदरक की फसल पकने में आठ से 10 महीने का समय लगता है. खाद के रूप में मुर्गे की खाद, गाय का गोबर और सूखी पत्तियों का उपयोग किया जा सकता है. इसमें कोई कीट आक्रमण और प्राकृतिक आपदाएं जैसी समस्याएं नहीं होती है. चंद्रलेखा कहती हैं ‘जिन लोगों ने इसे ग्रो बैग में लगाया था, वे प्रत्येक बैग से दो किलोग्राम फसल प्राप्त कर रहे हैं. उनमें से अधिकांश ने उपज को अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच वितरित कर दिया है. शेष फसल कृषि भवन द्वारा नल्लूरवट्टम और माविलक्कदावु में संचालित ए ग्रेड क्लस्टर बाजारों में बेची जाती है.