Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 28 January, 2022 10:45 AM IST

मक्का की खेती करते समय किसानों को फसल की अच्छी तरह देखभाल करनी पड़ती है, ताकि फसल किसी भी तरह के कीट या रोग की चपेट में ना आए. इसके लिए जरूरी है कि किसानों को मक्का में लगने वाले कीट व रोग की जानकारी हो.

अगर आप मक्का की खेती करते हैं, तो आज हम आपको मक्का में लगने वाले कीटों की जानकारी देने वाले हैं, इसलिए इस लेख को अंत तक पढ़ते रहिए.

कजरा कीट: इस कीट के पिल्लू लम्बा, काला भूरा रंग का होता है,  जो देखने में मुलायम एवं चिकना होता है. पिल्लु नये पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देता है. कीट दिन में मिट्टी के दरार में छिपे रहते है तथा रात में बाहर निकलकर पौधों को काटते हैं.

प्रबन्धन:

  • क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत तरल 2 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर बीज की बुवाई करें.

  • खड़ी फसल में आक्रमण होने पर खेत में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खरपतवार का ढेर बना दें एवं सबेरे इसमें छिपे हुए कीट को नष्ट कर दें.

  • क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत तरल का 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर फसल के जड़ पर छिड़काव करें.

धड़ छेदक:

वयस्क कीट गुलाबी रंग के मध्यम आकार का होता है, जिसके पंखों पर गहरी - भूरी लम्बवत धारियाँ होती है. पिल्लू तना में छेदकर भीतर के मुलायम भाग को खाता है जिससे गभ्भा सूख जाता हैं और पौधे मर जाते हैं.

प्रबन्धन:

  • खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना चाहिए.

  • खेत को खरपत्वार से मुक्त रखना चाहिए.

  • खेत में बर्ड पर्चर की व्यवस्था करनी चाहिए.

  • खेत में प्रकाशफंदा का प्रयोग करें.

  • कार्बोफ्यूरान 3 जी या फोरेट 10 जी दानेदार कीटनाशी का 4-5 दाने प्रति गभ्भा की दर से व्यवहार करें अथवा इमीडाक्लोरप्रिड 8 एस0 एल0 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी मे घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.

भुट्टा छिद्रक

इसके वयस्क कीट पीले भूरे रंग का होता है, जिसके पिछले पंख पर काले रंग की पट्टी होती है. पिल्लू भुट्टे में प्रवेश कर दानें को खाता है.

प्रबन्धन:

  • फसल में उपस्थित मित्र कीटों का संरक्षण करें.

  • खेत में बर्ड पर्चर का व्यवहार करें.

  • प्रति हेक्टर 10-15 फेरोमोन ट्रेप खेत में लगायें.

  • प्रकाश फंदा को लगााकर कीटों को नष्ट करें.

  • 5 मि0ली0 प्रति लीटर पानी में नीम आधरित दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें.

  • डाइक्लोरोभॉसद्ध 5 से 1 मि0ली0 का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.

पत्रलांछन झूलसाद्ध- मेडिस में अंडाकार , पीले भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर बनते हैं,जबकि टर्सिकम में हरे भूरे रंग के नाव के आकार के धब्बे बनते हैं. इसके बाद में ये धब्बे आपस में मिलकर सारी पत्ती को झुलसा देती है.

प्रबन्धन:

  • फसल चक्र अपनाएं.

  • खेत को खरपत्वार से मुक्त रखें.

  • कार्वेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से अथवा थीरम 2 ग्राम प्रति कि0 ग्रा0 बीज की दर से बीजोपाचार कर ही बुआई करें.

  • मैन्कोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.

जीवाणु जनित तना सड़न:

पौधे के नीचे से दूसरा या तीसरा अंतर गाँठ मुलायम एवं बदरंग हो जाता है. ज्यादा आक्रान्त हो जाने पर पौधे वहीं से टूटकर गिर जाते हैं. आक्रांत भाग से सड़न की गंध आती है.

प्रबन्धन:

  • खेत को खरपत्वार से मुक्त रखें.

  • खेत में जल निकास की उत्तम व्यवस्था करें.

  • ब्लीचिंग पाउडर 12 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से आक्रांत भाग पर छिड़काव करें.

  • हरदा रोग: पत्तियों पर छोटे -छोटे गाोल पीले रंग के फफोले बनते हैं, जो फटकर पौधे को क्षति पहुँचाते हैं.

प्रबन्धन:

  • फसल चक्र अपनायएं.

  • खेत को साफ-सुथरा रखें

  • मैन्कोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें.

सूत्रकृमि नियंत्रण

मक्का को लगातार एक ही क्यारी में लेने से सूत्रकृमि की संख्या में वृद्धि होकर रोग फैलने की संभावना ज्यादा हो जाती हैं. इससे नियंत्रण हेतु फसल चक्र अपनाना चाहिए. ज्यादा प्रकोप की दशा में बुवाई के समय फ्युराडान दानेदार दवा का 20 से 25 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिये.

कटाई

खरीफ एवं गरमा मौसम में 80-90 दिनों बाद मक्का तैयार हो जाता है, तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिये. यदि भूट्टे की जरूरत हो तो भूट्टा तैयार होने के बाद इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए.

उपज

संकर किस्मों से 40 से 70 क्विंटल एवं संकुल किस्म से 40 से 50 क्विंटल उपज प्रति हेक्टर प्राप्त होती है.

लेखक: डॉ. प्रवीण दादासाहेब माने
वरिष्ठ वैज्ञानिक,कीट विज्ञान विभाग
नालन्दा उद्यान महाविधालय, नूरसराय
ईमेल: pdmane12@gmail.com

English Summary: Information about the main pests of maize and their prevention
Published on: 28 January 2022, 10:52 AM IST

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