खरीफ फसलों में मुख्य रूप से कपास, धान, बाजरा, मक्का, ग्वार, मूंगफली, गन्ना और दलहनी फसलों में सोयाबीन, मूंग, उरद, अरहर, लोबिया तथा चारे वाली फसलों में ज्वार इत्यादि फसलों की बुवाई की जाती हैं. आमतौर पर प्राय: देखा गया है, कि किसान अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत महंगे- महंगे और उन्नत किस्मों के बीजों की बुवाई करता है
ताकि वह ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ले सके. परन्तु किसान की संपूर्ण फसल उन्नत बीजों पर तो निर्भर करती है तथा उत्तम बीजों का प्रयोग करके व सफलता की पहली अवस्था/पीढ़ी की ओर अग्रसर हो जाता हैपरंतु कई बार प्राय: देखने में आया है कि बीज का उपचार अच्छी तरह से नही होने के कारण फसल में बहुत से रोग लग जाते हैं.बीज उपचारित ना होने के कारण ये बीमारियां फसल की पैदावार को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए फसल की बिजाई/बुवाई से पहले किसान भाई बीजों का उपचार अवश्य करें. क्योंकि कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि मात्र बीज उपचार करने से ही हम लगभग आधे से ज्यादा फसल में लगने वाले रोगों पर सफलता प्राप्त कर सकते हैं.
बीज उपचार क्या है?
बीज उपचार एक प्रक्रिया या विधि है - जिसमें पौधों को बीमारियों और कीटों से मुक्त रखने के लिए रसायन, जैव रसायन या ताप से उपचारित किया जाता है. पोषक तत्व स्थिरीकरण हेतु जीवाणुकल्चर से भी बीज उपचार किया जाता है.
बीज उपचार की महत्वता
-
बीज उपचार गुणवत्तायुक्त भरपूर फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है. उन्नत और रोग प्रतिरोधी किस्मों के स्वच्छ, स्वस्थ और पुष्ट बीज से बुआई की जा सके.
-
बीज को निरोग एवं स्वस्थ बनाने के लिए उसे अनुशंसित रसायन या जैव रसायन से उपचारित करना होता है.
-
बीज उपचार से बीज में उपस्थित आन्तरिक या वाह्य रूप से जुड़े रोगजनक विषाणु एवं सूत्रकृमि और कीट नष्ट हो जाते है.
-
जिससे बीजों का स्वस्थ अंकूरण तथा अंकुरित बीजों का स्वस्थ विकास होता है.
बीज उपचार के फ़ायदे
-
मिट्टी और बीज जनित रोगों से मुक्ति मिलती है.
-
बीजों तथा अंकुरों की सुरक्षा करता है.
-
बीज अंकुरण में वृद्धि.
-
प्रारंभिक और समान रूप से खड़ा होना व उचित विकास होना.
-
दलहनी फसलों में नॉड्यूलेशन (Nodulation) बढ़ाता है.
-
प्रतिकूल परिस्थितियों (कम/उच्च नमी) में भी एक समान फसल.
-
उर्वरकों की कमी को पूरा करता है.
-
कीटो और बीमारियों का प्रकोप कम करता है तथा पौधों की रोग सक्ष्मता बढ़ता है
बीज उपचार विधि
बीजों का उपचार करते समय किसान FIR चक्र विधि अवश्य अपनाएं अर्थात सबसे पहले फफूंदनाशक (Fungicides), कीटनाशक (Insecticides) और अंत में बायोफर्टिलाइजर या बायोकल्चर (Biofertilizes/Bioculture), जीवाणु खाद जैसे कि राइजोबियमकल्चर, ऐजेटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम (Azospirillum), फास्फोरसघोलकजीवाणु (पी.एस.बी) इत्यादि मिलाकर छाया में सुखाकर बिजाई करें.
धान में बीज उपचार
-
घरेलू विधि से धान के बीजों को 10लीटर पानी में 1700 ग्राम नमक के घोल (17%) के साथ उपचार करना चाहिए. हल्के, टूटे-फूटे व खराब और तैरते हुए बीजों को अलग कर लेना चाहिए. नमक के घोल से उपचारित बीजों को दो-तीन बार साफ पानी में धोकर तथा छाया में सूखाकर ही नर्सरी में बिजाई करनी चाहिए.
-
धान के बीज को उपचारित करने के लिए 10 ग्राम कार्बेंडाजिम (Bavistin 50% WP) या 2.5 ग्राम पोसामाइसिन या10 ग्राम एमिसान (Emisan-methoxy ethyl mercuric chloride 6%) या 1 ग्राम सेप्ट्रोसाइक्लिन (Streptocycline antibacterial) और 5 ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल को 10लीटर पानी में मिलाएं. इस घोल में 10 किलोग्राम धान बीज को 24 घंटे तक भिगोकर बिजाई करनी चाहिए.
-
धान का सूखे बीज उपचार के लिए 3 ग्राम थाईरम/किलो बीज के हिसाब से उपचारित करके ही बिजाई करें.
-
इस उपचार से धान में जड़ गलन, झुलसा रोग एवं झोंका (ब्लास्ट), नैकब्लास्ट अर्थात गर्दन तोड़ आदि बीमारियों के रोकथाम में सहायता मिलती है.
कपास में बीज उपचार
-
कपास को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए लगभग 10लीटर पानी में 5 ग्राम एमिसान1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन + गंधक तेजाब (H2So4) का घोल तैयार कर लें. इसमें बीजों को लगभग 8 से 10 घंटे तक भिगोकर रखें तथा इसके बाद बीजों को छाया में सूखाकर शाम के समय ही बिजाई करनी चाहिए.
-
बेहतर जमाव के लिए 5 ग्राम सक्सीनिकएसिड को 10लीटर पानी में डालकर उपचार करना चाहिए.
-
दीमक नियंत्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस20% E.C. की 10मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड5मिलीलीटर (Gaucho® FS 600) अथवा फिप्रोनिल (Fipronil 5% SC) 5मिलीलीटर, 10लीटर पानी के हिसाब से अवश्यकतानुसार, उसका घोल बीजों पर समान रूप से छिड़काव कर उपचारित करें.
-
सड़न विल्ट/जड़ गलन यानी विगलन एवं म्लानि रोगों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्माविर्डी4 ग्राम/कि.ग्रा. या कार्बेन्डाजिम2 ग्राम (Bavistin 50% WP) प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें.
-
कपास को चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए बीजों को आवश्यकतानुसार इमिडाक्लोप्रिड या थायोमिथोक्साम7 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें. इससे कपास में रसचूसक हानिकारक कीट लगने का खतरा कम हो जाता है.
-
असिंचित क्षेत्र में कपास की खेती कर रहे हैं, तो बीजों को एजेक्टोबेक्टरकल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए. इससे फसल की पैदावार बढ़ती है.
बाजरा में बीज उपचार
-
बाजरा को बीज जनित एवं मृदाजनित रोगों से बचाने के बाजरा के बीजों का बीज उपचार करना जरुरी है.बीजोपचार के लिए थिरम75प्रतिशतडब्लू.एस. 3 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम50प्रतिशतडब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल35प्रतिशतडब्लू.एस. की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए.
-
बाजरा का सूखा बीजोपचार के लिए 2.0 ग्राम एमिसान या 4 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें.
-
अप्रमाणित बीजों को 20प्रतिशत नमक के घोल से उपचार कर 2-3 बार साफ पानी से अच्छी तरह धोकर बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिए.अरगट/चेपा के तैरते हुए पिंड/पदार्थों को निकालकर नष्ट कर दें.
-
बाजरा की जैविक खेती के लिए बीजों को ऐजेटोबेक्टर और पी. एस. बी. कल्चर से उपचारित करके छाया में सुखाने के बाद शीघ्र ही बुवाई करना चाहिए.
ग्वार में बीज उपचार
-
बीज जनित एवं मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्वेन्डाजिम प्रति किलो ग्राम अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति किलो ग्राम की दर से उपचार करके तत्पश्चात बुआई करें.
-
सूखा बीज उपचार करने के लिए 3 ग्राम कार्बन्डाजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने के बाद ही बिजाई करें.
गन्ना में बीज उपचार
बीज जनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु थिरम3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम2 ग्राम/लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास5 या इमिडाक्लोप्रिड5मिलीलीटर (Gaucho® FS 600) अथवा फिप्रोनिल (Fipronil 5% SC) 5मिलीलीटर, 10लीटर पानी के हिसाब से अवश्यकतानुसार, उसका घोल बनाकर बीजों पर समान रूप से 15-20 मिनट तक उपचार करने के बाद बुवाई करें.
मूंगफली में बीज उपचार
-
मूंगफली की बुआई करने से पहले बीजों का ठीक से उपचार कर लेना बहुत लाभप्रद होता है. इसके लिए बीज को कैप्टन या थीरम2 ग्राम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करना चाहिए अथवा ट्राइकोडरमा4 ग्राम +1 ग्राम कार्बक्सिन प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.
-
बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरसघोलकजीवाणु (PSB) से 5-10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें.जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 20प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है.बीजोपचार करते समय इस बात का विशेषध्यान रखना चाहिए बीज दवा से ठीक से कोटिंग हो जाए.
-
दीमक नियंत्रण व सफ़ेद लटट् रोकथाम हेतु क्लोरोपायरीफॉस20% E.C. की 4मिलीलीटर या इमिडाक्लोप्रिड0.5मिलीलीटर (Gaucho® FS 600 ) अथवा फिप्रोनिल (Fipronil 5% SC) 5मिलीलीटर प्रति किलो बीज के हिसाब से अवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर, उसका घोल बनाकर बीजों पर समान रूप से छिड़काव कर उपचारित करें.
ज्वार में बीज उपचार
फफूंदनाशक दवा 2.5 ग्राम कैप्टान या 2.5 ग्राम थीरम अथवा थायामिथोक्सेम70डब्ल्यू. एस. 3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें.फफुंदनाशक दवा से उपचार के उपरान्त एवं बुवाई पूर्व 10 ग्राम एजोस्प्रिलियम एवं पी.एस. बी. कल्चर का उपयोग प्रति किलो बीज के हिसाब से अच्छी तरह मिलाकर करें. ऐसा करने से ज्वार में 20% अधिक उत्पादन प्राप्त में सहायता मिलती है.
दलहनी फसलों में बीज उपचार
दलहनी फसलों में बीज उपचार से फसल की अच्छी बढ़वार व उत्पादकता में वृद्धि होती है. इसके लिए 2 ग्राम थीरम अथवा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करने के बाद राइजोबियमकल्चर से बीजोपचार अवश्य करना चाहिए.दलहनी फसलों में उपयोग की दृष्टि से जैव उर्वरकों में राइजोबियमजीवाणु, फॉस्फोरस को घुलनशील बनाने वाले सूक्ष्मजीव, पी.जी.पी.आर. (PGPR) एवं वर्मीकम्पोस्ट का अधिक महत्व है. जैविक उत्पाद फसल में लगने वाले रोगों व कीटों को रोकने के साथ-साथ पौधों की अच्छी बढ़वार वह अधिक प्राप्त उत्पादन में सहायता करते हैं
लेखक
बिशन सिंह, रूबी, जितेन्द्र, प्रियंका
कृषि विकास अधिकारी, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, (हिसार) हरियाणा
पी. एच. डी. स्कॉलर, कृषि महाविद्यालय, एच. ए. यू . हिसार, हरियाणा
दूरभाष 9991764299, *Email-bishanhau@gmail.com