कृषि क्षेत्र में भारत लगातार आगे बढ़ रहा है. अब खाद बनाने के भी नए-नए तरीके अपनाएं जा रहे हैं. दलहनी फसलों में ढैंचा की मांग खूब बढ़ी है. क्योंकि इसकी खेती हरी खाद और बीज के लिए होती है. हरे पौधों का इस्तेमाल हरी खाद बनाने में होता है. खेत की उवर्रक क्षमता बढ़ाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल होता है पौधे मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ती करते हैं. कई राज्य सरकार ढैंचा की खेती के लिए सब्सिडी भी देती हैं, ऐसे में खेती करना आसान और मुनाफेमंद है. आइये जानते हैं खेती करने का तरीका.
खेती में मिट्टी और जलवायु
ढैंचा की अच्छी उपज के लिए पौधों को काली चिकनी मिट्टी में उगाएं, हरी खाद का उत्पादन लेने के लिए किसी भी भूमि में उगा सकते हैं. सामान्य Ph मान और जलभराव वाली भूमि में पौधे अच्छा विकास करते हैं. हालांकि पौधों को किसी खास जलवायु की जरूरत नहीं होती, लेकिन उत्तम पैदावार के लिए खरीफ की फसल के साथ उगाना चाहिए. पौधों पर गर्म और ठंडी जलवायु का कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है. ढैंचा के पौधों के लिए सामान्य तापमान उपयुक्त है. ठंडियों में अगर अधिक समय तक तापमान 8 डिग्री से कम रहता है, तो पैदावार में फर्क पड़ सकता है.
उन्नत किस्में-
ढैंचा की कुछ उन्नत किस्मों में पंजाबी ढैंचा 1, सी.एस.डी. 137, हिसार ढैंचा-1, सी.एस.डी. और 123, पंत ढैंचा का नाम शामिल है.
खेत की तैयारी -
पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हलो से करें, फिर खेत की गहरी जुताई कर उसे खुला छोड़ें और फिर खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से मिट्टी में मिलाएं फिर खेत में पलेव कर दें. पलेव के बाद जब खेत की भूमि सूख जाए तो रासायनिक खाद का छिड़काव कर रोटावेटर चलवा दें, जिसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें.
बीजों की रोपाई का समय और तरीका-
बीजों को समतल खेत में ड्रिल मशीन से लगाते हैं, ड्रिल के माध्यम से ढैंचा के बीजों को सरसो की तरह ही पंक्तियों में लगाना चाहिए. पंक्ति से पंक्ति के बीच एक फ़ीट की दूरी रखें, बीजों को 10 CM की दूरी के आसपास लगाते हैं. छिड़काव तकनीक में बीजों को समतल खेत में छिड़क देते हैं और फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई करते हैं इस तरह से बीज मिट्टी में मिल जाएगा. दोनों ही विधियों में ढैंचा के बीजों को 3-4 CM की गहराई में लगाएं हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजों को अप्रैल के महीने में लगाते हैं, और पैदावार लेने के लिए बीजों को खरीफ की फसल के समय बारिश में लगाते हैं. एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 10-15 KG बीज काफी हैं.
हरी खाद बनाने की विधि
खाद को उसी खेत में उगाते हैं, जिसमे हरी खाद तैयार करनी हो, इसमें दलहनी और गैर दलहनी फसल को उचित समय पर जुताई कर मिट्टी में अपघटन के लिए दबाते हैं. दलहनी फसलों की जड़े भूमि में सहजीवी जीवाणु का उत्सर्जन करती हैं और वातावरण में नाइट्रोजन का दोहन कर मिट्टी में स्थिरता बनाती हैं आश्रित पौधों के उपयोग से भूमि में नाइट्रोजन शेष रह जाती है, जो अगली फसल में उपयोग हो जाती है.
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ढैंचा के पौधों की सिंचाई
पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है, पैदावार तैयार होने तक पौधों की 4-5 बार सिंचाई उपयुक्त है. चूंकि ढैंचा के बीजों को नम भूमि में लगाते हैं, इसलिए पहली सिंचाई तकरीबन 20 दिन बाद करें इसके बाद एक माह के अंतराल में दूसरी और तीसरी बार पानी दें.
ढैंचा के खेत में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को नष्ट करने के लिए मात्र एक से दो गुड़ाई की जरूरत होती है. जिसमे पहली गुड़ाई बीज बुवाई के तक़रीबन 25 दिन बाद तथा दूसरी गुड़ाई 20 दिन बाद होती है.
पौध रोग और उपचार
पौधों पर बहुत ही कम रोग दिखाई देते हैं लेकिन कीट की सुंडी का आक्रमण पौधों की पैदावार को कम करता है. इसके कीट का लार्वा पौधों की पत्तियों और शाखाओं को खाकर उन्हें नष्ट करता है इस रोग से बचाव के लिए ढैंचा के पौधों पर सर्फ के घोल का छिड़काव करें.
फसल की कटाई, पैदावार और बीज की कीमत
फसल तक़रीबन 4-5 माह में कटने के लिए तैयार होती है जब पौधों का रंग सुनहरा पीला दिखे तब फलियों की शाखाओं को काट लें, शेष बचे भाग को ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते हैं. इसकी फलियों को धूप में सुखाकर मशीन की सहायता से बीजों को निकाल लेते हैं, जिसके बाद उन्हें बाजार में बेचते हैं. एक एकड़ के खेत से तक़रीबन 25 टन की पैदावार मिलती है. ढैंचा बीज का बाजारी भाव 40-42 रूपए प्रति किलो होता है, इस हिसाब से किसान भाई फसल से बीजों का उत्पादन कर अच्छी कमाई कर सकते हैं.