बाजरा की फसल हरियाणा राज्य की मुख्य खरीफ फसल है. इसकी बिजाई असिंचित क्षेत्रों में मानसून की पहली वर्षा पर कर सकते हैं. और सिंचित क्षेत्रों में तो जून के पूरे महीने से 15 जुलाई तक इसकी बुवाई की जा सकती है.
बाजरे की फसल कम पानी, कमज़ोर व कम उपजाऊ मिट्टी और सुख सहिष्णु स्वभाव होने के कारण इसको अधिक तापमान वाले क्षेत्र में आसानी से उगाया जा सकता है. बाजरे में बहुत से विटामिन व खनिज भी पाये जाते हैं जो सेहत के रूप में बहुत उपयोगी हैं. पशु आहार व चारे के रूप में भी ये बहुत गुणकारी होने के कारण इसे पशुधन भी कहा जाता है. अपने क्षेत्र के अनुसार उत्तम व रोगरोधी किस्मों का चयन कर इसमें अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
संख्या. न. |
किस्म |
विवरण |
1 |
एच एच बी -50 |
यह किस्म हरियाणा राज्य के सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों में लगाई जा सकती है. यह 76-80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. औसत पैदावार 13 किवंटल प्रति एकड़ है. यह डाउनी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोगरोधी है. |
2 |
एच एच बी-234 |
यह किस्म 2013 में सिफारिश की गई है. यह डाउनी मिल्ड्यू रोगरोधी व सुखा सहन करने की क्षमता रखती है. यह 70-72 दिन में पक कर तैयार हो जाती है . |
3 |
एच एच बी – 226 |
यह असिंचित क्षेत्र की किस्म है. 70-72 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह जोगिया रोगरोधी भी है . |
4 |
अन्य किस्मे |
एच एच बी -299, एच एच बी -272 आदि |
शस्य क्रियाए (Crop Activities)
भूमि चयन :-वैसे तो बाजरा सभी प्रकार की भूमि में बोया जा सकता है. परंतु रेतीली दोमट मिट्टी और अच्छे पानी की निकासी वाले क्षेत्र बिल्कुल उपयुक्त है.
बिजाई का समय :- बाजरे की बिजाई के लिए 1-15 जुलाई का समय उचित है. पर बारानी क्षेत्र में इसकी बिजाई मानसून के साथ भी कर सकते हैं.
बीज की मात्रा :- 1.5 -2.0 किलोग्राम बीज प्रति एकड़.
बीज उपचार :- अच्छी पैदावार के लिए और रोगों से बचने के लिए बीज उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसके लिए बायोमिक्स (एजोटोबेक्टर+एजोस्पारिलियन+पी.एस.बी) को प्रति एकड़ बीज, 100 मी. ली. बायोमिक्स से उपचारित करने से पैदावार में वृद्धि आकी जा सकती है. और इसके साथ फसल में सिफारिश की गई खादों की मात्रा भी अवश्य डालें.
बिजाई का तरीका :- कतार से कतार की दूरी 45 सें.मी. ,गहराई – 2.0 सें.मी और दोहरी पंक्तियों में कतार से कतार का फासला 30 सें.मी तथा बीच की दूरी 60 सें.मी रखें.
लगभग तीन सप्ताह के बाद बिरला करना अति आवश्यक कार्य है जिसमें खाली जगह को भरा जाये और जहाँ अधिक पौधे हो तो उनको निकाल दिया जाये, ताकि पौधे की बढ़वार ठीक प्रकार से हो और पैदावार में भी वृद्धि हो. बाजरा की फसल में यदि अत: फसलीकारण किया जाये तो भी इसके अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं. जैसे कि दलहनी फसल मूंग, गवार और लोबिया ली जा सकती है. इससे एक तो अतिरिक्त पैदावार मिल जाती है, दूसरा जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़वा मिलता है.
खाद :- खादो को मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही देना चाहिए, अधिक मात्रा और कम मात्रा में दी गई खाद प्रायः नुकसान का कारण होती हैं.
बाजरा |
यूरिया /किलोग्राम/एकड़ |
एस एस पी किलोग्राम/एकड़ |
जिंक किलोग्राम/एकड़ |
पोटाश/ किलोग्राम/एकड़ |
सिंचित |
135 |
150 |
10 |
12 |
बारानी |
35 |
50 |
|
|
निराई एवं गुड़ाई :- अच्छी पैदावार लेने के लिए खरपतवार नियंत्रण करना भी बहुत आवश्यक है. बाजरे की फसल में बिजाई के 3 और 5 सप्ताह बाद निराई –गुड़ाई अवश्य करें. रसायनों के द्वारा भी खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है. बिजाई करने के तुरंत बाद 400 ग्राम एट्राजीन (50%घु. पा.) प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में घोल तैयार कर छिडकाव करें. और इसका प्रयोग बीजाई के बाद 10-15 दिन के बीच भी कर सकते हैं.
सिंचाई :- फुटाव, फूल आना व दानो की दूधिया अवस्था के समय पानी की कमी ना होने दें. यह वो अवस्था है. इस समय सिंचाई की कमी के कारण इसका असर पैदावार पर पड़ता है. पर साथ ही ध्यान रखें कि जल की निकासी का सही प्रबंधन हो. क्योंकि खेत में जल ठहराव के कारण बाजरे की फसल को भरी नुकसान हो सकता है. बाजरे की बिजाई मेड़ों पर करने से जल ठहराव की समस्या से बचा जा सकता है .
विशेष टिपण्णी :-
अपने क्षेत्र के अनुकूल किस्म का चयन करें.
प्रमाणित बीज ही ख़रीदें.
बीज उपचार अवश्य करें.
बाजरे की फसल में जल निकासी का उचित प्रबंधन अवश्य करें.
महत्वपूर्ण अवस्थाओ पर सिंचाई अवश्य करें.
अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार नियंत्रण करना अति अवश्यक है.
खाद का प्रयोग मिट्टी की जाचं के आधार पर करें.
बीमारियाँ एवं कीड़ो की रोकथाम के लिए विशेषज्ञो की सलाह लेकर, दवाईयों का प्रयोग करें.
मुख्य कीट, बीमारियां व उनकी रोकथाम
सफ़ेद लट
इसके प्रौढ़ मानसून की पहली वर्षा के बाद सांय के समय अँधेरा होने पर निकलते हैं. और आस-पास के पेड़ों पर इकट्ठा होकर पत्तों को खाते हैं. ये हलके भूरे से भूरे रंग के होते हैं. सुबह होने से पहले ये वापिस जमीन में चले जाते हैं. इसकी लट C आकार की होती है. इसका शरीर सफ़ेद और मुह भूरे रंग का होता है. यह पौधे की जड़ों को काटकर अगस्त से अक्टूबर तक भारी नुकसान करती है. पौधे पीले होकर सूख जाते हैं कभी कभी इसका नुकसान बाजरे की अगेती फ़सल में भी हो सकता है.
रोकथाम:
बारिश के बाद पहली व दूसरी रात को पेड़ों पर इक्कट्ठे हुए भून्डों को हिलाकर नीचे गिराकर इक्कट्ठे करें व मिट्टी के तेल में डुबोकर नष्ट कर दें अथवा
पहली, दूसरी व तीसरी बारिश होने के बाद (उसी दिन या एक दिन बाद) खेतों में खड़े पेड़ों पर 0.05 % क्विनाल्फोस 25 ई.सी. या 0.05% कार्बरिल 50 WP का छिड़काव करें.
बालों वाली सुंडियां
इनकी दो प्रजातियाँ हैं जो काफी नुकसान करती हैं-बिहार हेयरी कैटरपिलर व लाल बालों वाली सूँडीयां. लाल बालों वाली सुंडियां जुलाई के दुसरे पखवाड़े से अगस्त के आखिर तक नुकसान करती हैं. बिहार हेयरी कैटरपिलर अगस्त से अक्टूबर तक नुकसान करती है. इस कीट की सुंडियां छोटी अवस्था में पत्तों के नीचे रहकर उनको छलनी कर देती हैं.
रोकथाम:
खरीफ की फसलों की कटाई के बाद खेतों में गहरी जुताई कर दें ताकि बालों वाली सूंडियों के प्यूपे पक्षियों या दूसरे कारणों से नष्ट हो सकें.
पहली बारिश के बाद खेतों में लाईट ट्रैप का प्रयोग करें, क्योंकि ये सूंडियां लाईट की तरफ आकर्षित होती हैं.
खेतों में व आस पास साफ़ सफाई रखें क्योंकि ये कीड़े खरपतवारों पर ज्यादा पनपते हैं.
छोटी सूंडियों को पत्तों समेत तोड़ लें व मिट्टी के तेल के घोल में डालकर उन्हें नष्ट कर दें.
बड़ी सूंडियों की रोकथाम के लिए 250 मी.ली. मोनोक्रोटोफोस 36 एस.एल को 250 लीटर पानी में मिलाकर छिडकें.
भूंडी-
यह पत्तों को किनारों से खाती है तथा अगस्त से अक्टूबर तक हानि पहुंचाती है यह सलेटी रंग की होती है.
बीमारियाँ
डाउनी मिल्ड्यू (जोगिया या हरे बालों वाला रोग) - इस रोग में पौधे छोटे रह जाते हैं. पत्ते पीले पड़ जाते हैं और पत्तों की निचली सतह पर सफ़ेद पावडर जमा हो जाता है. फसल दूर से ही पीली दिखाई देती है. हरी बालें घास जैसी हो जाती हैं.
अरगट/चेपा- प्रभावित बालों से हलके गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढ़ा रस टपकने लगता है जो बाद में गहरा भूरा हो जाता है. बाद में दानों के स्थान पर गहरे भूरे पिंड बन जाते हैं जो पशुओं और मनुष्य दोनों के लिए हानिकारक होते हैं.
स्मट/कंगियारी- बालों में कहीं कहीं दाने बनते हैं जो बड़े, चमकीले व गहरे हरे होते हैं. बाद में ये भूरे रंग के हो जाते हैं. बाद में ये काले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं जो रोगजनक फफूंदी के बीजाणु होते हैं.
एकीकृत रोकथाम के उपाय
बीज में अरगट के पिंड नहीं होने चाहिए. यदि किसान अपना बीज प्रयोग कर रहे हैं तो बीज को 10 मिनट के लिए 10% नमक के घोल में डुबोकर रख दें ऊपर तैरते हुए पिंडों को निकाल दें. नीचे बैठे हुए भारी स्वस्थ बीजों को निकालकर उन्हें साफ़ पानी से अच्छे से धो लें, ताकि नमक का कोई अंश बीज पर न रहे. क्योंकि नमक का अंकुरण पर प्रभाव पड़ सकता है. अंत में धुले हुए सारे बीज को छाया में सूखा लें. एसे बीज को 2 ग्राम एमिसान या 4 ग्राम थिरम प्रति किलो बीज की दर से सूखा उपचार करें.
जोगिया या हरी बालों वाला रोग रोकने के लिए बीज को मेटालाक्सिल 35% से 6 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए.
रोगी पौधों को निकालना
पत्तों पर डाउनी मिल्ड्यू के लक्षण दिखते ही उन्हें उखाड़कर नष्ट कर दें, ताकि स्वस्थ पौधों के साथ उनका संपर्क न हो. यह काम बुवाई के 20 दिन के अंदर ही अवश्य करना चाहिए. मध्यम से ज्यादा पौधे निकालने पर वहां और पौधे रोप दें. इसके अलावा, रोगी पौधे निकालने के बाद फसल पर 0.2% जिनेब या मेन्कोजेब (500 ग्राम दवा व 250 लीटर पानी प्रति एकड़ का छिड़काव करें. फसल में पत्तों से बालें बाहर आने वाली अवस्था में बालों पर 400 मी.ली क्यूमान एल का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. अरगट से प्रभावित बालियों को नष्ट कर दें तथा मनुष्य या पशुओं के लिए प्रयोग में न लायें.
लेखक: डॉ योगिता बाली, डॉ मीनू और डॉ. स्वाति मेहरा
कृषि विज्ञान केंद्र, भिवानी
चौ.चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय