Multi Cropping System: देश में कई किसान बहुफसली खेती करते हैं, लेकिन उन्हें उस हिसाब से पैदावार नहीं मिला पाती, जितनी वे उम्मीद करते हैं. इस खबर में हम आपको कुछ ऐसी बातों के बारे में बताएंगे जिन्हें अपनाकर आप बंपर पैदावार हासिल कर सकते हैं. बहुफसली खेती एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें एक ही खेत में साल भर में एक निश्चित क्रम में दो या उससे ज्यादा फसलें उगाई जाती है. इसे पॉलीकल्चर भी कहा जाता है. अगर किसान सही तरीके से खेती की इस पद्धति पर काम करें तो वे बंपर पैदावार के साथ अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
सिंचाई की बेहतर सुविधा
बहुफसली खेती के लिए आवश्यक है कि किसान के पास प्राप्त मात्रा में सिंचाई का पानी सदैव उपलब्ध रहे. क्योंकि बहूफसली खेती में समय पर फसल उत्पादन की विभिन्न क्रियाओं का होना आवश्यक है. इसलिए किसान के पास उसकी मर्जी के अनुसार सिंचाई की सुविधा होनी चाहिए. आजकल नलकूपों एवं पंपिंग सेट की संख्या भारत के विभिन्न भागों में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. देश के कई क्षेत्रों में रबी फसलों के लिए अक्टूबर से मार्च तक तथा जायद फसलों के लिए अप्रैल से जून तक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.
अप्रैल से जून तक देश के एक बड़े हिस्से में गर्मी पड़ती है तथा वायुमंडल में आपेक्षिक आद्रता कम होती है. पानी का वाष्पीकरण बहुत तेजी से होता है. अतः एक पंपिंग सेट से 5 से 6 एकड़ से ज्यादा जमीन की सिंचाई नहीं हो पाती, क्योंकि इस समय हवा में भूमि के पानी उड़ने की शक्ति बहुत ज्यादा होती है. गंगा और सिंधु के मैदानों में भूमिगत जल की मात्रा इतनी है कि बहुत से नलकूप एवं पंपिंग सेट लगाए जा सकते हैं. यह भी आवश्यक है कि जो भी सिंचाई का पानी हो वह खेत में बराबर मात्रा में एवं सब जगह समान रूप से लगे. बहुफसली खेती के लिए पानी के निकास की सुविधा के साथ भूमि समतल होनी चाहिए. ऐसे में इन बातों का विशेष ध्यान रखें.
समय पर बीज-उर्वरक की उपलब्धता
किसान को समय पर प्राप्त मात्रा में विभिन्न फसलों के बीज उर्वरक तथा कीड़े मकोड़े और रोग नाशक दवाएं मिलते रहना जरूरी है. पहली फसल काटने और दूसरी फसल के बोने के बीच इतना कम समय रहता है कि अगर किसान को इन सब चीजों को जुटाने के लिए इधर-उधर दौड़ना पड़ा तो वह समय पर बुवाई नहीं कर पाएगा और देर से बोन पर अपेक्षित उपज नहीं मिल पाएगी.
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मशीनों का इस्तेमाल
चुंकि बहूफसली खेती में जुलाई से जून तक किसी न किसी फसल में कुछ न कुछ काम करना ही होता है, इससे प्रति हेक्टेयर श्रम की आवश्यकता बढ़ जाती है और यह श्रम तभी कम किया जा सकता है जब खेत की तैयारी, सिंचाई एवं फसलों की कटाई के लिए मशीनें उपलब्ध हैं. खेती की अन्य क्रियाओं के लिए इतना कम समय मिलता है कि उन्हें परंपरागत तरीकों से नहीं किया जा सकता, परंतु यह मशीनों से संभव हो सकता है. इसी प्रकार से फसलों के उत्पादन में मशीनीकरण की प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है.
नई विधियों की जानकारी
बहुफसली खेती के लिए आवश्यक है कि किसान फसल उगाने की क्रियाओं की बारीकियों को अच्छी तरह से समझें. अनुसंधान केंद्रों में नई-नई विधियों का विकास हो रहा है. आकाशवाणी, दूरदर्शन और कृषि संबंधी पत्रिकाओं के माध्यम से इन विधियों का प्रचार एवं प्रसार अत्यंत आवश्यक है. अनुसंधान केंद्रों पर विकसित उत्पादन बढ़ाने की तकनीकी का ज्ञान उन्हीं के द्वारा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से किसानों तक पहुंचाना अधिक लाभदायक है.
यह अच्छी बात है कि आजकल दूरदर्शन द्वारा एवं कृषि पत्रिकाओं के द्वारा खेती की नई-नई जानकारी का नित्य प्रसारण हो रहा है. इससे किसानों को यह ज्ञान हो जाएगा की वह अपने खेत पर किन फसलों को किस फसल चक्र के लिए चुनें तथा विभिन्न फसल चक्र के लिए किन-किन किस्म को चुनें, कितना बीज प्रति हेक्टेयर बोएं, कितना उर्वरक, कब और कैसे दें, कब एवं कैसे बुवाई करें, कितनी और कब सिंचाई करें, खरपतवारों का नियंत्रण कब और कैसे करें, हानिकारक बीमारियों तथा कीड़ों का रोकथाम कैसे करें ताकि फसल अच्छी उपज दे. इसके अतिरिक्त फसल की कटाई तथा मड़ाई कब और कैसे करें, ताकि अगली फसल के लिए समय पर खेत खाली हो जाए और तैयारी अच्छी हो सके. किसानों को कृषि में उपयोग होने वाली मशीनों का पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि वह खराब यंत्रों की मरम्मत समय पर कर लें ताकि कार्य समय पर संपन्न हो सके.
रबीन्द्रनाथ चौबे ब्यूरो चीफ कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश।