शुष्क क्षेत्रों के किसानों के लिए सबसे मुश्किल काम हरा चारा प्राप्त करना होती है. क्योंकि शुष्क क्षेत्रों की अप्रत्याशित जलवायु के कारण यह के रहने वाले किसानों के लिए हरा चारा पाने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इन क्षेत्रों के किसानों की परेशानी को देखते हुए राजस्थान के जोधपुर में ICAR - केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ने इसका समाधान निकाला है. दरअसल, ICAR ने चारा फसल के लिए ‘चारा चुकंदर’ को विकसित किया है.
बता दें कि ‘चारा चुकंदर’ चार महीनों के भीतर प्रति हेक्टेयर 200 टन से अधिक हरा बायोमास पैदा कर सकती है. ऐसे में आइए इसके बारे में यहां विस्तार से जानते हैं.
चारा चुकंदर क्या है?
चारा चुकंदर मुख्य रूप से पशु आहार के रूप में उपयोग किया जाता है और पशुधन दूध उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है. वर्तमान में इसकी खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में की जा रही है. सरल भाषा में कहा जाए तो चारा चुकंदर ‘हरा चारा फसल’ है.
चारा चुकंदर की मुख्य विशेषता
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चारा चुकंदर को खराब गुणवत्ता वाले पानी और मिट्टी के साथ उगाया जा सकता है.
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इसकी उपज क्षमता बहुत अधिक होती है.
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इससे मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता में सुधार होता है.
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इसकी खेती में कम लागत की आवश्यकता होती है.
चारा चुकंदर की उन्नत किस्में/Varieties of Fodder Beet
जोमोन - यह नारंगी रंग की चुकंदर की किस्म है जो पत्ती रोग और बोल्टिंग के प्रति अच्छी प्रतिरोधक है.
मोनरो - यह लाल रंग की चुकंदर किस्म है जिसमें बोल्टिंग के प्रति उत्कृष्ट प्रतिरोध है.
जेके कुबेर - यह नारंगी रंग की चुकंदर किस्म है, जो उच्च उपज देने वाली, सुपाच्य और ऊर्जा से भरपूर किस्म के रूप में प्रसिद्ध है.
गेरोनिमो - यह पीले-नारंगी रंग की चुकंदर किस्म है जो फफूंदी जैसे रोगों के प्रति मजबूत सहनशीलता रखती है.
चारा चुकंदर खेती की प्रक्रिया
मिट्टी और जलवायु की आवश्यकताएं: इसे मध्यम तापमान की आवश्यकता होती है, जो इसे अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त बनाता है. यह फसल खराब गुणवत्ता वाली मिट्टी और पानी में भी अच्छी तरह से पनपती है.
बुवाई का समय: चारा चुकंदर मुख्य रूप से मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक बोया जाता है. जल्दी बुवाई करने से जड़ों का उचित विकास होता है और उपज अधिकतम होती है.
भूमि की तैयारी: बुवाई से 3 से 4 सप्ताह पहले जुताई कर देनी चाहिए. बारीक बीज क्यारी तैयार कर लेनी चाहिए तथा 20 सेमी ऊंची मेड़ों पर बीज बो देना चाहिए.
बीज दर और अंतराल: चारा चुकंदर के लिए बीज दर 2.0 से 2.5 किलोग्राम/हेक्टेयर तक होती है. बीज को 2 से 4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए, पौधों के बीच 20 सेमी की दूरी रखनी चाहिए.
उर्वरक प्रबंधन: चारा चुकंदर की खेती के लिए मिट्टी को उपयुक्त बनाने के लिए लगभग 25 टन एफवाईएम/हेक्टेयर, 100 किग्रा नाइट्रोजन/हेक्टेयर + 75 किग्रा फॉस्फोरस/हेक्टेयर डालना चाहिए. नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में डालना चाहिए - आधा बुवाई के समय, ¼ 30 और 50 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए.
सिंचाई पद्धतियां: चारा चुकंदर को 10-12 बार फव्वारा सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिसमें कुल 80-100 सेमी सिंचाई पानी की आवश्यकता होती है. पानी 7 से 10 दिनों के अंतराल पर डालना चाहिए.
अंतर-संस्कृति कार्य: बुवाई के 20-30 दिनों के बाद पतला करना, निराई करना और मिट्टी चढ़ाना किया जाना चाहिए.
कीट एवं रोग प्रबंधन: मिट्टी जनित कीटों को नियंत्रित करने के लिए, बुवाई से पहले क्विनालफॉस पाउडर (1.5℅) 25 किग्रा/हेक्टेयर की दर से डालें. पत्तियों को मुरझाने से बचाने के लिए सिंचाई करनी चाहिए.
कटाई: कटाई आम तौर पर जनवरी के मध्य में शुरू होती है, जब जड़ें 1.0 से 1.5 किलोग्राम वजन तक पहुँच जाती हैं. जड़ें और पत्ते दोनों ही अत्यधिक पौष्टिक होते हैं और पशुओं के लिए बेहतरीन चारे के रूप में काम आते हैं.
खिलाने के तरीके: कटी हुई जड़ों को पशुओं के चारे के लिए सूखे चारे के साथ मिलाया जाता है , धीरे-धीरे अनुपात बढ़ाकर पशु के कुल सूखे पदार्थ के सेवन का 60% बनाया जाता है. गायों और भैंसों के लिए अनुशंसित खुराक 12 से 20 किलोग्राम प्रतिदिन और छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के लिए 4 से 6 किलोग्राम प्रतिदिन है. पशुओं को तीन दिन से ज़्यादा समय से काटा हुआ चारा या बहुत ज़्यादा मात्रा में नहीं खिलाना चाहिए, क्योंकि इससे पशुओं में एसिडिटी हो सकती है.