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Updated on: 4 April, 2019 11:42 AM IST

भारत दुनिया में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करता है. भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 329 मि.हे. है. जिसमें से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अनुसार लगभग 120 मि.हे. भूमि बंजर है. कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में सिर्फ लगभग 141 मि. हे. भूमि ही खेती योग्य है. इसमें भी बहूत बड़े भौगोलिक क्षेत्र में हरे चारे की खेती की जाती है, जिससे अन्य अनाज वाली फसलें उगाने के लिए जगह कम होती हुई नजर आ रही है. दुधारू पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन हरे चारे पर निर्भर करता है. दुधारू पशुओं को दुग्ध उत्पादन के लिए संतुलित आहार देना आवश्यक है, जिससे उनके लिए साल भर हरा चारा उत्पादन करना ही होगा अन्यथा दुग्ध उत्पादान पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. उन इलाकों में जहां सिंचाई के पानी की उपलब्धता कम है या किसानों के पास जोत का आकार छोटा है वहां पर पशुओं के लिए हरे चारे का उत्पादन करना चुनौतीपूर्ण काम है. एसे में समय नए नवाचार की मांग कर रहा है जो हाइड्रोपोनिक विधि के रूप में उभरा है. जहां पर सिंचाई के पानी की उपलब्धता कम है, वर्षा बहुत कम होती है व किसानों के पास छोटे खेत या कृषि योग्य भूमि है ही नहीं, ऐसी जगहों पर यह विधि काफी हद तक कारगर साबित हुई है. इस विधि द्वारा पानी की बचत तो होती ही है साथ ही कम जमीन की आवश्यकता पड़ती है व समय और श्रम की बचत होती है जिससे किसान कम मेहनत कर वर्ष भर पशुओं के लिए हरा चारे का उत्पादन कर सकता है.

हाईड्रोपोनिक विधि का लाभ -

हाईड्रोपोनिक विधि में परम्परागत विधि की तुलना में चारा उत्पादन के लिए कम क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है.

हाईड्रोपोनिक विधि में लागत कम लगती है क्योंकि कीट ,रोग एवं खरपतवार नियंत्रण पर होने वाले खर्च से निजात मिलता है.

परम्परागत विधि की तुलना में कम मेहनत लगती है.

पानी की बड़ी मात्रा में बचत होती है. परंपरागत तरीके से चारा तैयार करने में 25 से 30 लीटर पानी की खपत होती है. वहीं इस विधि को अपनाकर प्रतिदिन 2 से 3 लीटर पानी में ही सिंचाई हो जाती है.

वर्ष भर पौष्टिक चारा उपलब्ध होता है अधिक उत्पादन के साथ पशुओं के लिए, जिससे उनकी गुणवता में वृद्धि होती है.

हाइड्रोपोनिक्स- हाइड्रोपोनिक्स या हाइड्रो-कल्चर नियंत्रित वातावरण में एक मिट्टी रहित इनडोर खेती है जिसमे पोषक तत्व पानी में घुले रहते है जो जड़ क्षेत्र से पोधों को प्राप्त होते रहते है. एक ऐसी प्रणाली जहां पौधों को प्राकृतिक मिट्टी के अलावा विकास मीडिया में उगाया जाता है सभी पोषक तत्व सिंचाई के पानी में मिला दिया जाता है और पौधों की नियमित आधार पर आपूर्ति की जाती है. इस तकनीक में फसल के लिए पानी का स्तर उतना ही रखा जाता है जितना फसल को जरूरी होता है. इसमें पानी की सही मात्रा और सूरज की रोशनी से पौधे के पर्याप्त पोषक तत्व मिल जाते हैं.

हाईड्रोपोनिक विधि- 

इस विधि से हरे चारे को तैयार करने के लिए यह जरूरी है की बीजों के 24 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाए, ताकि उनका अंकुरण अच्छा हो सके, इसके लिए हम सबसे पहले मक्का, ज्वार व बाजरा के बीजों को पानी में भिगोकर रख देते हैं तत्पश्चात इन बीजों को निकालकर स्वच्छ जूट के बोरे में ढ़ककर अंकुरण के लिए रख दिया जाता है. अंकुरण निकलने के बाद इसे हाइड्रोपोनिक्स मशीन की ट्रे जो की (2 फीट ×1.5 फीट× 3 इंच होती है) की होती है में बराबर मात्रा में बीजों को फैलाया जाता है. जिनमें प्रत्येक ट्रे में 1 किलो बीज रखते हैं. ध्यान देने वाली बात है की बीजों को अंकुरण के बाद ही ट्रे में स्थानांतरित किया जाता है. चौथे से दसवें दिन तक पोधों की वृद्धि होती रहती है. प्रारंभ में जमे बीजों पर लगातार पानी का छिड़काव करते हैं. इस लगतार प्रक्रिया के द्वारा 7 से 8 दिन के अंदर पशुओं को खिलाने योग्य हरा चारे की प्राप्ति होती है.

हाईड्रोपोनिक की आवश्यकता क्यों है -

क्योकी किसानो के पास या तो कृषि योग्य भूमि कम है या, है ही नहीं हरे चारा उत्पादन के लिए.

वर्षा की अनियमितता या सिंचाई जल की उपलब्धता कम होना.

श्रमिक उपलब्धता कम है भारतीय कृषि में.

परम्परागत विधि में लागत अधिक लगती है क्योंकि कीट, रोग व खरपतवार नियंत्रण पर होने वाला खर्च ज्यादा आता है.

समय पर गुणवता बीज व जीवनाशकों कि उपलब्धता कम होना.

परम्परागत विधि में अधिक मेहनत की जरूरत होती है.

वर्ष भर पोष्टिक चारा उपलब्ध नहीं होता है पशुपालकों, को जिससे गुणवता में गिरावट लाजमी है

लेखक:

डॉ. निरंजन कुमार बरोड़, डॉ. सुरेश मुरलिया़, डॉ. सुरेश कुमार, डॉ. इंदु बाला सेठी, डॉ. लोकेश कुमार, डॉ. लक्ष्मण प्रशाद एवं डॉ. हंशराम मालि

कृषि अनुसंधान संस्थान, नोगांवा (अलवर)

श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर

English Summary: hydroponic farming is a new trend of agriculture
Published on: 04 April 2019, 12:00 PM IST

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