मक्का की अच्छी तरह से खेती करने के लिए पर्याप्त जीवांश वाली दोमट भूमि उपयुक्त होती है। भली-भांति समतल एवं अच्छी जल धारण शक्ति वाली भूमि मक्का की खेती के लिए और उपयुक्त होती है. खेत की तैयारी करने के लिए पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेमी. गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन जुताई करके पाटा लगाकर खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए.
खाद का उपयोग
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण से प्राप्त संस्तुतियों के आधार पर करें। जिस मिट्टी में जिंक तत्व की कमी होती है वहां पर पत्ती की मध्य धारी के दोनों तरफ सफेद धारियां दिखाई पड़ती है, इस कमी को दूर करने के लिए 20 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हे. की दर से अंतिम जुताई के साथ मिटृी में मिला दें. यदि किसी वजह से मृदा परीक्षण न हो पाया हो तो संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए 80:40:40 किग्रा. नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हे. की दर से देना चाहिए. भुट्टे के लिए नत्रजन की आधी और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए। नत्रजन की बची हुई मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद देना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि फास्फोरस उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट को मिलाकर प्रयोग न करें.
सिंचाई करने का समय
जायद में मक्का की फसल को 5-6 सिंचाइयों की जरूरत होती हैं। 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। बीज अंकुरण के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
मक्का की फसल को प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से काफी क्षति पहुंचती है। इसलिए प्रारंभिक अवस्था में निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। एट्राजीन रसायन का प्रयोग करके भी खरपतवारों का सफलतापूर्वक नियंत्रण किया जा सकता है। 1.0-1.5 किग्रा. एट्राजीन 50% डब्लू.पी. को 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं अथवा एलाक्लोर 50% ई.सी. 4 से 5 लीटर को भी 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घण्टे के अन्दर प्रयोग कर खरपतवार नियंत्रित किये जा सकते हैं।
फसल सुरक्षा
गोभ भेदक मक्खी
प्रौढ़ मक्खी हल्के धूसर रंग की होती है, जिसके सूंड़ी (लारवा) द्वारा हानि होती है। ये जमाव के प्रारंभिक होते ही फसल को हानि पहुंचाते हैं, पहले पत्ते खाते हैं, फिर तने के ऊपर कोमल भाग में छेद करके घुस जाता है और तने को खाता है जिससे पौधा पीला पड़कर सूख जाता है। प्रकोप वाले पौधों पर मृतगोभ (डेडहार्ड) बन जाता है। गोभभेदक मक्खी प्रकोपित क्षेत्रों में 20% बीज की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। क्षेत्र में बुवाई साथ साथ करनी चाहिए।
इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल ओडिमेटान-25% ई.सी. या डाईमेथोएट 30% ई.सी. मात्रा का एक लीटर प्रति हे, कोराजेन 400 से 500 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
तनाछेदक कीट
फसल के अवशेष को नष्ट कर दे। प्रकोप के प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोपित पौधों को सूड़ी सहित नष्ट कर देने से तना छेदक कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है। इसकी सूंडियां तनों में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाती हैं जिससे तेज हवा चलने पर पौधा टूटकर गिर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बुवाई के 10-15 दिन बाद फोरेट 10 जी. 10 किग्रा. अथवा कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा. का प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें अथवा बुवाई के 2 तथा 5 सप्ताह बाद या क्यूनालफास 2.00 लीटर अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत के एक लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर 600-800 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें। ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 80000-100000 (4-5 ट्राइको काई) प्रति हे. की दर से फसल के जमने के 15 दिन पश्चात से प्रकोप दिखते ही 4-5 बार सप्ताह के अन्तराल पर छोड़ना चाहिए।
पत्ती लपेटकर कीट
इस कीट की सूंड़ियां पत्तियों के किनारों को लपेटकर अन्दर से खाती रहती हैं। इसके नियंत्रण हेतु फैन्थ्रोऐट 2% धूल 25 से 30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करे।