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Updated on: 1 August, 2024 3:24 PM IST
सहजन या मोरिंगा की लाभकारी खेती कैसे करें?

सहजन मूलतः उष्ण कंटिबंधीय तथा उपोषण कंटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है. सहजन की खेती देश के ज्यादातर हिस्सों में की जा सकती है. किन्तु इसके लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम अच्छा माना जाता है. कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है. यह विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में उगने वाला पौधा है. सहजन के फूलों के लिए 25 से 30 डिग्री से अनुकूल होता है. फूल आते समय 40 डिग्री सेन्टीग्रेड से ज्यादा तापक्रम पर फूल झड़ने लगता है. 

सहजन खेती के लिए भूमि चुनाव

सभी प्रकार के मिट्टियों में सहजन की खेती की जा सकती है. बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है. परन्तु व्यवसायिक खेती के लिए साल में दो बार फल देने वाला सहजन की किस्मों के लिए 6 0-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर पाया गया है.

खेत की तैयारी सहजन के खेत में दो बार जुताई करनी चाहिए. बीज रोपण से पहले 50 सेंमी. गहरा और चौड़ा गड्डा खोद लें. इस गड्ढा से मिट्टी के होने में और जड़ को नमी ग्रहण करने में मदद मिलता है. इससे पौधे की जड़ तेजी से फैलती है. कम्पोस्ट या खाद की मात्र 5 किग्रा. प्रति गड्डा ऊपरी मिट्टी के साथ मिलाकर गड्डे के अंदर और चारों तरफ भर देते हैं. खेत को अच्छी तरह खर-पतवार साफ-सफाई करके 2-3 मीटर की दूरी पर पौधा लगाते हैं. इससे खेत पौधे के रोपण हेतु तैयार हो जाता है.

सहजन की साल भर में दो बार फलने वाली किस्में

पी.के.एम.-1: यह किस्म तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर से विकसित किया है. यह पौध रोपण के 8-9 महीनों बाद फलत देती है, जो कि वर्ष में 2 बार (फरवरी-मार्च एवं जून-सितम्बर) फलत देती है. इससे 4-5 वर्ष तक अच्छी फलत (200-350 फलियाँ) प्राप्त होती है. इनकी फलियों की लम्बाई 65-70 सेंमी. होती है. जिसमें 6.3 मिली. परिधि और 150 ग्राम वजन होता है. फल हरे रंग के और अत्यधिक गूदे वाली होते हैं.

पी.के.एम.-2: यह किस्म भी तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर से विकसित किया है. इसकी फलियाँ 65-70 सेंमी. लम्बी एवं गूदेदार होती हैं. इसमें प्रति पौधे लगभग 300-400 फलियाँ प्राप्त की जा सकती है. इस किस्म के रोपण से 2-4 वर्ष तक उचित देखभाल से लगभग 70-100 कुन्तल हरी फलियाँ प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.

अन्य किस्में - कोंकण रूचिरा, ओ.डी.सी.-3, भाग्य, धनराज और थार हर्शा हैं.

पौधशाला तैयार करना

सहजन की बुवाई चार विधियों से होती है-

बीज द्वारा

खेत तैयार हो जाने के बाद बेड के किनारे-किनारे इसे 2-3 सेंमी. की गहराई में 2 या 3 बीज लगा देते हैं. जिसकी दूरी 2-3 मीटर तक होती है. बाद में बड़े होने पर एक-एक पौधे छोड़े जाते हैं.

नर्सरी तैयार करके

सबसे पहले बीज को रातभर के लिये भिगों लेते हैं जिससे सीड कोट फूल जाते हैं. जिससे आसानी से बीज अंकुरित हो जाते हैं. नर्सरी तैयार करने के लिए सोलराईज मिट्टी, पैरलाईट, वर्मीकुलाईट एवं कोकोपीट का मिश्रण 5:3:2:1 के अनुपात में बनाते हैं एवं इसको किसी कवकनाशी से उपचारित कर लेते हैं. अब मिट्टी को पालीथीन बैग में भर देते हैं तथा भिगा हुआ बीज को सूखाकर 2-3 बीज डालकर पानी दे दिया जाता है. पालीबैग में पौधे उगाने के बाद प्रत्यारोपित किया जा सकता है. पाली बैग की लम्बाई 15 सेंमी. और चैड़ाई 7 सेंमी. के आकार के हो सकते हैं. बुवाई के एक महीने बाद में पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाएंगे. गैप फिलिंग के उद्देश्य से पाली बैंग में अतिरिक्त 75-100 पौधे लगाए जाते हैं.

कटिंग के माध्यम से

सहजन बहुवर्षीय तना की लम्बाई 60-90 सेंमी. और मोटाई 5-10 सेंमी. होनी चाहिए. जिसे अप्रैल-मई महीने में 20-30 सेंमी. की गहराई तक जमीन में गाड़ते हैं.

एयर लेयरिंग विधि

सहजन की एयर लेयरिंग के लिए 2500 पी.पी.एम सान्द्रता का एन.ए.ए. हार्मोन का उपयोग करके अर्ध परिपक्व तने से एयर लेयर किया जा सकता है.

सहजन की बुवाई का समय

जुलाई-अक्टूबर में बुआई करना बेहतर होता है. फूल का अवधि बरसात के मौसम के साथ मेल नहीं  खाना चाहिए. फूल आने के दौरान शुष्क गर्म मौसम बेहतर होता है. बीज उत्पादन के लिए कम से कम 500 मीटर पृथक्करण दूरी आवश्यक है.

बीज दर

सहजन की खेती के लिए 700-800 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है.

सहजन की बुवाई या रोपण का तरीका

पौधे को लगाने से पहले जमीन की पहले अच्छे से जुताई कर लें. बीजारोपन से पहले 50 सेमी गहरा और चैड़ा गड्ढा खोद लें. जिससे पौधे की जड़ तेजी से फैल सके. पांच किलो गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट को प्रति गड्ढा मिट्टी के साथ मिला दें. उस मिट्टी को गड्ढे में ना मिलाये जो खुदाई के दौरान निकाली गई है. नर्सरी से पौधे को निकालने से पहले अच्छा पानी दे ताकि पौधा निकालते समय पौधे की जड़ें न टूटे. अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में पौधे को मिट्टी को ढेर की शक्ल में खड़ा कर सकते हैं ताकि पानी वहां से निकल जाए. शुरुआत के कुछ दिनों तक ज्यादा पानी नहीं दें. अगर पौधा गिरता है तो उसे एक लकड़ी की सहायता से सहारा देकर बांध दें.

ज्यादा बारिश का और ज्यादा ठंड का मौसम छोड़ कर सहजन को सालभर में कभी भी लगा सकते हैं. सहजन का पौधारोपण सामान्यतया जून में पहली बारिश के बाद किया जाता है. अंकुरण के 50 से 60 दिनों बाद या सीधे बीजों से उगाये जाते है. प्रत्येक गड्ढे में 2 बीज डाले जाते हैं. दो पौधों में 3 x3 मी की दूरी रखनी चाहिए.

सहजन की मिश्रित खेती

एक माह के भीतर गैप फिलिंग की जा सकती है. जब वे लगभग 1.5 मीटर की ऊँचाई पर हो तो मुख्य शाखाओं वाले अंकुरों की सुविधा के लिए मुख्य तने को पिंच करें और 20-25 दिनों के अंतराल पर दो पिंचिग आगे करें. प्रारम्भिक अवधि में अधिक अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिए टमाटर एवं भिण्डी की अंतर फसल में उगाया जा सकता है. यह खर-पतवार की वृद्धि को भी कम करता है. पेड़ की मुख्य तने के चारों ओर जमीनी स्तर में 30-40 सेंमी. की ऊँचाई तक टीले बनाए जाने चाहिए.

सिंचाई

खेत को सप्ताह में एक बार तीन महीनें तक और उसके बाद दस दिनों में एक बार सिंचाई करनी चाहिए. पानी के ठहराव से बचाना चाहिए. मिट्टी बहुत अधिक सूखी या बहुत गीली होगी तो फूल गिरेंगे. इसलिए न्यूनतम नमी बनाए रखी जानी चाहिए.

खाद एवं उर्वरक

सहजन की फसल के लिए एफ.वाई.एम. 25 किग्राप्रति पेड़ देना चाहिए और प्रति रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम फास्फोरस एवं 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति गड् में बुवाई के 3 महीने बाद देना चाहिए. फिर से 100 ग्राम यूरिया प्रति गड् में फूल आने के समय डालना चाहिए.

पर्णीय छिड़काव

बुवाई के 5-6 महीने बाद फूल आना शुरू हो जाते है. फली और बीजों को विकसित होने में 3 महीने लगते हैं. फूल आने के दौरान, फूल गिरने से बचने के लिए सिंचाई को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और फली के विकास के दौरान सिंचाई दी जानी चाहिए. पत्ती छिड़काव (फोंलियर एप्लीकेशन) भी बेहतर है और 1 प्रतिशत एन.पी.के. (17:17:17) के घोल का छिड़काव पौधों पर महीनें में एक बार किया जाना चाहिए.

खर-पतवार प्रबंधन

खर-पतवारों को प्रभावी ढंग से हटाने के लिए पावर टिलेज से जुताई की जाती है एवं पौधे के आस-पास वर्ष में दो बार निराई-गुड़ाई करना चाहिए.

अवांछनीय पौधों को निकालना (रोगिंग)

पौधे के तने के लक्षणों के आधार पर प्रारम्भिक अवस्था के दौरान अलग तरह के पौधों को पूरी तरह से बाहर निकाला जाना चाहिए और अंतराल को भरा जा सकता है फली के विकास और परिपक्वता चरणों के दौरान फली के लक्षण के आधार पर रोगिंग की जानी चाहिए, उदाहरण के लिए 70 सेंमी. से अधिक की फली और पी.के.एम.-1 के मामले में केवल बेलनाकार आकार की ही कटाई की जानी चाहिए. त्रिकोणीय आकार वाली फलियों को खारिज कर दिया जाना चाहिए.

सहजन का पौध संरक्षण

वैसे तो सहजन की फसल में कोई कीट या रोग सामान्य रूप से नहीं लगता किन्तु कुछ कीट या रोग फसल की उपज को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं.

भूमिगत कीट या दीमक - जिस क्षेत्र में कीट की समस्या हो वहां इमिडाक्लोप्रिड 600 एफएस की 1.5 मिलीलीटर मात्रा को अवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर उसका घोल बीजों पर समान रूप से छिड़काव कर उपचारित करें. अंतिम जुताई के समय क्यूनोलफॉस 1.5% चूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिला दें. या जैविक फफूंदनाशी बुवेरिया बेसियाना एक किलो या मेटारिजियम एनिसोपली एक किलो मात्रा को एक एकड़ खेत में 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें.

रसचूसक कीट- इस प्रकार के कीटों से बचाव हेतु एसिटामिप्रिड 20 एसपी की 80 ग्राम मात्रा या थियामेथोक्सम 25wg की 100 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें. यह मात्रा एक एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त है. जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना पाउडर की 250 ग्राम मात्रा भी एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है.

फल मक्खी- सहजन फल पर फल मक्खी का आक्रमण हो सकता है. इस कीट के नियंत्रण हेतु भी डाइक्लोरोवास 0.5 मिली. दवा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने पर कीट का नियंत्रण किया जा सकता है.

जड़ सड़न रोग- रोग नियंत्रण के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा एक प्रति किलो दर से बीज उपचार किया जा सकता है. रासायनिक कार्बेंडाजिम 50 की 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर जमीन में तने के पास डालें.  

परिपक्वता और कटाई

वार्षिक मोरिंगा के फूल लगभग 100-110 दिनों आते हैं और फलों को पहली कटाई बवाई के 160-180 दिनों के बीच की जाती है. अगले चार महीनों तक पेड़ फल देते रहते हैं. बीज से बीज तक फसल की कुल अवधि 210-240 दिनों तक होती है. एंथेसिस के 70 दिनों के बाद काले या भूरे रंग के मोरिंगा फलों की कटाई से उच्च अंकुरण क्षमता वाले गुणवत्ता बीज प्राप्त होते हैं. बाहर के भाग की तुलना में फल के मध्य और समीपस्थ भाग के बीज गुणवत्ता में श्रेष्ठ होते है. हेयरलाइन फटना कटाई योग्य परिपक्वता का अच्छा संकेतक है.

फसल की कटाई और प्राप्त उपज

जरूरत के अनुसार विभिन्न अवस्थाओं में फल की तुड़ाई की जा सकती है. पौधे लगाने के करीब 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है. एक बार लगाने के बाद से 4-5 वर्षों तक इससे फलन लिया जा सकता है. प्रत्येक वर्ष फसल लेने के बाद पौधे को जमीन से एक मीटर छोडकर काटना जरूरी होता है. दो बार फल देने वाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई सामान्यतरू फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर में होती है. वार्षिक मोरिंगा प्रति वर्ष प्रति पेड़ 200-250 फल या फली पैदा करता है. एक फली में 10-15 बीज हो सकते हैं तो बीज उपज 2000-3250 प्रति पेड़ प्रति वर्ष अर्थात 600 ग्राम से 1 किग्रा. बीज प्रति पेड़ होता है.

सहजन के फल में रेशा आने से पहले ही तुड़ाई कर लेनी चाहिए. इससे इसकी बाजार में मांग बनी रहती है और इससे लाभ भी ज्यादा मिलता है. बता दें कि पहले साल के बाद साल में दो बार उत्पादन होता है और आमतौर पर एक पेड़ 10 साल तक अच्छा उत्पादन करता है.

सहजन का भंडारण

सहजन की पत्तों की खेती में तीन 3 महीने के अंतराल से कटाई छटाई होती है. इस प्रकार से सहजन की 1 साल में चार बार कटाई होती है. लेकिन पहली कटाई चार या पांच वे माह में आ सकती है. सहजन की डालियों को काटने के बाद उसमें से छोटी डालिया अलग करनी है और उन छोटी डालियों को पानी से धोना चाहिए. पानी से धोने के बाद इन पत्तियों को छांव में सुखाने के लिए रख दे. आमतौर पर सहजन की पत्तियां 3 से 4 दिन में सूख जाती है. पत्तों को सुखाने के बाद इनको बोरियों में भरा जाता है और बाद मे इन्हें स्टोर किया या बेचा जा सकता है.

लेखक: डॉ. राकेश कुमार, रामसागर एवं डॉ. डी.के. राणा
कृषि विज्ञान केंद्र उजवा नई दिल्ली

English Summary: How to do profitable farming of Drumstick or Moringa? Know everything in detail here
Published on: 01 August 2024, 03:32 PM IST

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