भारत में विविध जलवायु की उपलब्धता के कारण देश के विभिन्न भागों में किसानों ने विदेशी सब्जियों की खेती प्रारम्भ कर दी है. इन सब्जियों में मुख्यतः लैटयूस, सेलेरी, लीक, जुकीनी, चीनी गोभी आदि आती हैं. विदेशी सब्जियों की सफल खेती के लिए उचित उर्वरक एवं जल प्रबंधन, फसल सुरक्षा एवं देखभाल के साथ-साथ फसल कटाई सावधानीपूर्वक करना अति आवश्यक है.
लैटयूस (Lettuce)
लैट्यूस सर्दियों के मौसम की एक महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय सलाद सब्जी है. इसमें विटामिन A एवं खनिज तत्व जैसे कैल्शियम व लौह भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं. यह ठंडे जलवायु में उगने वाली फसल है जिसकी खेती रबी मौसम में की जाती है. लैट्यूस की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है परंतु अच्छे जल निकास और उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त उपजाऊ रेतीली-दोमट मृदा जिसका पी. एच. मान 5.5 से 7.0 के मध्य हो, सर्वोत्तम होती है. इसके बीज छोटे होने के कारण इन्हें मिट्टी या गोबर की खाद के साथ मिलाकर क्यारियों में बोया जाता है. इसकी जड़ें ज्यादा गहरी नहीं जाती अतः इसे खाद की मात्रा अधिक चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए 3-4 गुड़ाई पर्याप्त होती है. अतः समय समय पर निराई गुड़ाई तथा सिंचाई कर पर्याप्त नमी बनाये रखें.
एस्पेरेगस (Asparagus)
यह एक बहुवर्षीय सब्जी है जिसकी खेती नये उगे हुए कोमल तनों जिन्हें ‘स्पीयर’ कहा जाता है, के लिए की जाती है. यह विटामिन ए का अच्छा स्रोत होता है. इसके स्पीयर का उपयोग सलाद एवं सूप के रूप में किया जाता है. उपज बुवाई के 3 साल से मिलनी प्रारम्भ हो जाती है जिसे 12 वर्षों तक लिया जा सकता है. इसकी खेती 15-20 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान पर सफलतापूर्वक की जा सकती है. अधिक तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता है. इसकी खेती के लिए उचित जलनिकास वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. मान 6-6.7 के बीच हो, उपयुक्त होती है. इसकी बिजाई बीज द्वारा एवं रोपण क्राउन द्वारा किया जाता है. इसकी औसतन उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है.
सेलेरी (Celery)
सेलेरी के पौधों के पत्तियों एवं डंठल का सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है. इसकी पत्तियां आमतौर पर धनिया की पत्तियों की तरह दिखती है तथा इसके तने कच्चे प्याज के तने जितने मोटे होते हैं. सेलेरी की फसल को ग्रीनहाउस में पूरे साल भर लिया जा सकता है. इसके बीज आकार में बहुत छोटे एवं नाजुक होते हैं. अतः इन्हें चौकोर क्यारियों में बो कर इनकी पौध तैयार कर रोपण करना चाहिए. सेलेरी की फसल से 180 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त की जा सकती है.
ब्रुसेल्स स्प्राउट (Brussels sprout)
ब्रुसेल्स स्प्राउट एक शीतकालीन गोभीवर्गीय सब्जी फसल है. यह ठंडी एवं नम जलवायु वाले स्थानों में अच्छी तरह पैदा हो जाती है. इसमें कुछ हद तक पाला सहन करने की क्षमता होती है. इसे छोटी बंदगोभी के नाम से भी जाना जाता है. इसके उपयोग में आने वाले भाग को स्प्राउट कहते हैं जो 3-5 से.मी. व्यास के होते हैं. यह विटामिन ए एवं एस्कॉर्बिक एसिड का अच्छा स्रोत होता है. ब्रुसेल्स स्प्राउट की कटाई मशीनों द्वारा या हाथों द्वारा की जाती है. इसकी कटाई नीचे से ऊपर की ओर होती है. इससे लगभग 50-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज ली जा सकती है.
चाइनीज कैबेज (Chinese cabbage)
चाइनीज कैबेज आमतौर पर पत्तागोभी की तरह उगाई जाने वाली सब्जी है. यह सब्जी कैंसर एवं अन्य वायरल बिमारियों के प्रति अवरोधी है अतः इसकी मांग विदेशों में बढ़ती जा रही है. भारत में यह सब्जी पांच सितारा होटलों में सलाद बनाने के लिए मुख्य रूप से उपयोग की जाती है. इसका गट्टा ऊँचा एवं लम्बा होता है एवं पत्तियां लम्बी, गहरे हरे या बैंगनी रंग की अर्ध-वृत्ताकार आकार की होती है. इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. चाइनीज कैबेज की अच्छी गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए बड़ी क्यारियों में रोपण करना आवश्यक होता है. रोपण के 30 दिनों के बाद अतिरिक्त मिट्टी का आधार देना चाहिए जिससे पौधे गिरे ना एवं उनकी वृद्धि भी अच्छी हो. चाइनीज कैबेज 65-70 दिनों में कटाई को तैयार हो जाती है. इसकी प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 25-30 मीट्रिक टन तक मिलती है.
जुकिनी (Zucchini)
जुकिनी एक खीरा वर्गीय विदेशी सब्जी है. इसकी फसल 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है. यह दिखने में ककड़ी के आकार की गहरे हरे, हल्के हरे, भूरे और पीले रंग की होती है. इसका झाड़ीनुमा पौधा आमतौर पर 75-90 से.मी. ऊंचा होता है तथा पत्तों में लगभग 45-60 से.मी. का घेराव होता है. जुकिनी के फूल तने पर लगते हैं जिससे इन फलों की कटाई आसान हो जाती है. फल की लंबाई लगभग 14-16 से.मी. के बीच एवं वजन 180-200 ग्राम तक होता है. जुकिनी की फसल गर्म एवं समशीतोष्ण जलवायु में सफलतापूर्वक लगाई जा सकती है. फलों की बेहतर पैदावार के लिए जुकिनी को चौकोर क्यारियों में लगाया जाता है. फसल को ड्रिप द्वारा सिंचाई एवं घुलनशील उर्वरक प्रदान करना लाभदायक साबित होता है. जुकिनी की अधिकतर किस्में बुवाई के 40 से 50 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं. बरसात के मौसम में जुकिनी की उपज प्रति एकड़ 8-10 मीट्रिक टन मिलती है. अन्य मौसमों में यह पैदावार 6-8 मीट्रिक टन तक मिल सकती है. 500 वर्ग मीटर आकार के ग्रीन हाउस से जुकिनी की उपज औसतन 2 मीट्रिक टन तक मिल जाती है.