खेती किसानी आज के इस बदलते दौर में एक अच्छा उद्योग बनकर उभर रहा है. गेहूं-चावल के अलावा सब्जियों से लेकर मसालों की भी नए-नए तरीकों से खेती की जा रही है. अलग-अलग किस्म को उगाया जा रहा है. ऐसे में बात करें जीरे की, तो जीरा मसालों में अपनी एक अलग पहचान रखता है. जीरे के बिना किसी भी मसाले का स्वाद फीका है. जीरा सिर्फ स्वाद ही नहीं बढ़ाता बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इसकी उन्नत तरीके से खेती की जाए तो बेहतर उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. आइये जानते हैं जीरे की उन्नत खेती का तरीका और कैसे रखें ध्यान.
जीरे की विशेषता
जीरे का ज्यादा इस्तेमाल होने से जीरे की खेती मुनाफेमंद होती है. इसका पौधा 30-50 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ता है. यह वार्षिक फसल वाला मुलायम एवं चिकनी त्वचा वाला हर्बेशियस पौधा है. इसके तने में कई शाखाएं होती हैं और पौधा 20-30 सेमी ऊंचा होता है. हर शाखा की 2-3 उपशाखाएं होती हैं एवं सभी शाखाएँ समान ऊंचाई लेती हैं जिनसे ये छतरीनुमा आकार ले लेती हैं. इसका तना गहरे रंग का सलेटी आभा लिए हुए होता है. इन पर 5-10 सेमी की धागे जैसे आकार की मुलायम पत्तियां होती हैं. आगे श्वेत या हल्के गुलाबी वर्ण के छोटे-छोटे फूल अम्बेल आकार के होते हैं. हर अम्बेल में 5-7 अम्बलेट होती हैं.
जीरे से मिलता विटामिन और पोषक तत्व
संस्कृत में इसे जीरक कहा जाता है, जिसका अर्थ है, अन्न के जीर्ण होने में (पचने में) सहायता करने वाला जीरा एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट है साथ ही यह सूजन को कम करने और माशपेशियों को आराम पहुंचाने में कारगर है. इसमें फाइबर भी होता है और यह आयरन, कॉपर,कैल्शियम, पौटेशियम, मैगनीज, जिंक और मैगनीशियम जैसे मिनरल्स का अच्छा सोर्स भी है. इससे विटामिन ई.ए.सी और बी- कॉम्पलैक्स जैसे विटामिन भी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. इसलिए इसका उपयोग आयुर्वेद में स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम बताया जाता है.
जीरे की उन्नत किस्में
आर जेड-19
यह किस्म 120-125 दिन में बनती है, इसमें 9-11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन होता है. इस किस्म में उखटा, छाछिया वा झुलसा रोग कम लगता है.
आर जेड-209
यह किस्म भी 120-125 दिन में बनती है, इसके दाने मोटे होते हैं. इसमें 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज होती है, इसमें भी छाछिया वा झुलसा रोग कम लगता है.
जीसी -4
यह किस्म 105-110 दिन में बनती है, इसके दाने मोटे होते हैं. बीज बड़े आकार के होते हैं. इसके 7-9 क्विंटल की उपज होती है. जो उखटा रोग के लिए संवेदनशील है.
आर जेड-223
यह किस्म 110-115 दिन में बनती है. 6-8 क्विंटल उपज होती है. जो उखटा रोग के प्रति रोधक है. बीज में तेल की मात्रा 3.25 प्रतिशत होती है.
खेती के लिए जरूरी बातें-
01.उपयुक्त समय नवंबर के मध्य का होता है. एक से लेकर 25 नवंबर के बीच बुवाई करनी चाहिए.
02.जीरे की बुवाई छिड़काव विधि से नहीं करते हुए कल्टीवेटर से 30 सेमी. के अंतराल में पत्तियां बनाकर करनी चाहिए. ऐसा करने से जीरे की फसल में सिंचाई और खरपतवार निकलने की समस्या नहीं होती.
03.शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. बीज पकने की अवस्था पर अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क मौसम जीरे की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक है.
04.वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियम से ज्यादा और 10 डिग्री सेल्सियम से कम होने पर जीरे के अंकुरण पर वितरीत प्रभाव पड़ता है.
05.अधिक नमी के कारण फसल पर छाछ्या और झुलसा रोगों का प्रकोप होने के कारण ज्यादा वायुमण्डलीय नमी वाले क्षेत्र खेती के लिए अनुपयुक्त रहते हैं.
06.ज्यादा पालाग्रस्त क्षेत्रों में जीरे की फसल अच्छी नहीं होती है.
07.वैसे तो जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन रेतीली चिकनी बलुई या दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थों की अधिकता व उचित जल निकास हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है.
08.जीरे की सिंचाई में फव्वारा विधि का उपयोग सबसे अच्छा रहता है. इससे जीरे की फसल को आवश्यकतानुसार समान मात्रा में पानी पहुंचता है.
09.दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीच हल्का बनता है.
10. गत वर्ष जिस खेत में जीरे की बुवाई की हो, उस खेत में जीरा नहीं बोए अन्यथा रोगों का प्रकोप ज्यादा होगा.
जीरे की खेती का तरीका
जीरे की खेती के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी करें, इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई और देशी हल या हैरो से 2-3 उथली जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. इसके बाद 5 से 8 फीट की क्यारी बनाएं. ध्यान रहे समान आकार की क्यारियां बननी चाहिए, जिससे बुवाई और सिंचाई करने में आसानी हो. फिर 2 किलो बीच प्रति बीघा के हिसाब से लेकर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो बीच को उपचारित करके ही बुवाई करें. बुवाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 30 सेमी रखें.
खाद व उर्वरक
बुवाई के 2-3 सप्ताह पहले गोबर खाद को भूमि में मिलाना लाभदायक रहता है. यदि खेत में कीटों की समस्या है तो फसल की बुवाई के पहले इसके रोकथाम के लिए अंतिम जुलाई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है. ध्यान रहे यदि खरीफ की फसल में 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली गई हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं है. अन्यथा 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की खाद खेत में बिखेर कर मिला देनी चाहिए. इसके अतिरिक्त जीरे की फसल को 30 किलो नत्रजन 20 किलो फॉस्फोरस और 15 किलो पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर की दर से दें. फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा एवं आधी नत्रजन की मात्रा बुवाई के पहले आखिरी जुलाई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए. शेष नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई के साथ दें.
कब-कब करें सिंचाई
जीरे की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. जीरे की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी एक हल्की सिंचाई दे. जिसमें जीरे का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए. इसके बाद जरुरत हो तो 8-10 दिन बाद फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है. इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिए.
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खरपतवार नियत्रंण के उपाय
जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमेथेलीन खरपतवार नाशक दवा 1.0 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करना चाहिए. इसके 20 दिन बाद जब फसल 25-30 दिन की हो जाए तो एक गुड़ाई कर देनी चाहिए.
फसल चक्र
जीरे के बेहतर उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है. इसके लिए एक ही खेत में बार-बार जीरे की फसल नहीं बोनी चाहिए, इसमें उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है. इसके लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए. इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं-बाजरा-जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाया जा सकता है.