ड्रिप-मल्चिंग तकनीक से हो रही उन्नत खेती, जानें क्या है यह विधि और किन फसलों के लिए है लाभदायक Flowers Tips: पौधों में नहीं आ रहे हैं फूल तो अपनाएं ये सरल टिप्स ICAR-IARI ने कई पदों पर निकाली भर्ती, बिना परीक्षा होगी सीधी भर्ती, वेतन 54,000 रुपये से अधिक, ऐसे करें अप्लाई Small Business Ideas: कम लागत में शुरू करें ये बिजनेस, हर महीने होगी मोटी कमाई! एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 10 April, 2019 5:24 PM IST

जड कवक फंफूद से जैविक नियंत्रण किया जाता है. इसके प्रयोग से पौधा स्फुर एवं जस्ते के तत्व ग्रहण कर मृदा जनित पौध रोग नियंत्रण कर मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाते है. टाइकोडर्मा / माइकोराइजा ऐसी ही जड फंफूद कवक है जो जड़ो के पास अत्यधिक मात्रा में रहकर पोशक तत्व पौधे को प्रदान कर रोग से रक्षा करते है. भूमि में सूक्ष्म जीवों की क्रिया चलती रहती है तथा इस क्रिया को बढाने के लिये इनका प्रयोग किया जाता है.

माइकोराइजा (वैसक्यूलर अरवसकुलर माइकोराइज)

ये फंफूद पौधों की जड़ो के पास सहजीवी संबध बनाकर रहती है. ये फंफूद जमीन मे स्थित स्फुर को ग्रहण कर पौधों को प्रदान करती है. पौधे की शुभकता, अधिक अम्लीयता, क्षारीयता जैसे प्रतिकूल स्थिति का सामना करने के लिए पौधे को सहायता प्रदान करता है. ये बाहर की कोशिकाओं में कोटा बनाकर आवरण तैयार करती है. जिसके कारण कीटाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाते तथा रोग नियंत्रण भी हो जाता है. पौधे में गंधकीय अमीनो अम्ल तथा आरथो डायहाइडों आक्सीफिनांल नामक तत्व के स्तर को बढ़ाती है जो पौधे के लिए एन्टीबायोटिक के रूप में कार्य करता है. इसके प्रति हेक्टर 6-10ग्राम प्रयोग करने से सोयाबीन, चना, गेहूं की फसलों के मृदा जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है.

टाइकोडर्मा

ये भूमि से सड़े गले या मृत पदार्थों से प्राकृतिक में पायी वाली मृत जीवी फंफूद है. भूमि जनित रोग नियंत्रण में  लाभदायक तथा गोबर खाद के साथ इसका प्रयोग करने से इसकी क्रियाओं में वृद्धि की जा सकती है. इनके प्रयोग करने से गेहूं तथा सोयाबीन के तना जड़ तथा कपास के सड़न को नियंत्रित किया जा सकता है.

जैविक विधि में कीट नियंत्रण

कीट नाशकों के अनियंत्रित प्रयोग से तथा अनुशंसा के विपरित उपयोग से अनेक समस्या सामने आ रही है. जैसे-कीटों में प्रतिरोधी शक्ति का विकास, परजीवी, परभक्षी मित्र कीटों का नाश तथा कीटनाशकों के उपयोग से खेती की लागत में वृद्धि होना इसके साथ ही भूमि तथा जल प्रदूषित होने से पर्यावरण को नुकसान भी हुआ है. जैविक विधि से कीट नियंत्रण करने से काश्त लागत व्यय को कम किया जा सकता है तथा किसानों द्वारा इसे अपनाया जा सकता है.

गर्मी में गहरी जुताई

कृषि गत क्रियाओं में फेरबदल कीट पर नियंत्रण रखने का सत्ता सुलभ तरीका है, जिसे किसान आसानी से अपना सकते है. गर्मी में गहरी जुताई करने तथा मिट्टी पलटने से कीटों के अण्डे, इल्लियां, शंखियां व्यस्क कीट जो कि सुप्तावस्था में भूमि में पडे़ रहते है, बाहर आ जाते है तथा गर्मी की तेज धूप तथा पक्षियों द्वारा नष्ट कर दिये जाते है.

मेंढ़ों की साफ सफाई

बहुत से कीट खेतों. मेंढ़ों की खरपतवार पर रहते है. अतः इनकी समय-समय पर सफाई का जानी आवश्यक हैं. इस प्रकार कच्चे गोबर का प्रयोग खेतों में नहीं करें, क्योंकि कच्चे गोबर से दीमक का बहुत अधिक प्रकोप होता है. यदि पौधा, किसी रोग से क्षतिग्रस्त होता है तो उसकी नियमित चुनाई कर जला देना चाहिये.

फसल चक्र अपनाए

खेत में प्रत्येक वर्ष एक ही प्रकार की फसल लेने से कीटों का प्रकोप बढ़ता है. इसलिए खेत में फसल में फेर-बदल करते रहें  ताकि कीट पर नियंत्रण रहे . इसके लिए लंबा फसल चक्र अपनाना चाहिए, जिससे जीवाणु जीवन चक्र पूरा न कर सकें. ऐसे कीट जो अपना जीवन चक्र एक वर्ष में पूर्ण करते हैं, फसल चक्रण होने से पहले ही मर जाते है.

अंतवर्ती फसल व प्रतिरोधी किस्में

अंतवर्ती फसल लेने से खेतों में कीट नियंत्रण में सहायता प्राप्त होती हैं तथा प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करने से प्रकोप को कम अथवा नियंत्रित किया जा सकता है. धान में गंगई से बचाव के लिए गंगई निरोधक जातियां आशा, उषा रूचित सुरेखा आदि का चयन आदि का चयन करें. गधीबग के बचाव के लिए शीध्र पकने वाली धान को बोयें. कपास की देशी जातियों में साहू, सफेद मक्खी तथा बेधक कीटों का प्रकोप कम होता है. धान की बोनी मानसून आरंभ होते ही करें तथा धान की रोपाई 15जून तक पूरी करने पर गंगाई, माहों, तना छेदक का प्रकोप थोड़ा कम किया जा सकता है. ज्वार कि बोनी जून अंत अथवा जुलाई के पहले सप्ताह तक कर लेने से तना छेदक कीट का आक्रमण कम होता है. इस तरह सोयाबीन की बोनी जुलाई में करने पर तना छेदक कीट का प्रकोप कम होता है. कटाई के समय में हेर-फेर कर नियंत्रण किया जा सकता है.

प्रमाणित बीज का उपयोग

कपास में गुलाबी छेदक कीट के आक्रमण से बचने के लिए प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें, क्योंकि कई कीट बीज में ही छुपे रहते है.

संतुलित रासायनिक खाद का उपयोग

हमेशा संतुलित रासायनिक खाद का ही उपयोग करें. नाइट्रोजन गन्ने में अधिक देने पर पायरिल्ला कीट का प्रकोप अधिक होता हैं और यदि कम उर्वरक दिया जाए तब सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ जाता है. धान में नत्रजन अधिक देने पर सफेद/भूरी माहू तथा तना छेदक का प्रकोप ज्यादा होता है. खेत में कीट व्याधि होने पर नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करें तथा पोटाश खाद की अतिरिक्त मात्रा एक बार अवश्य डालने से कीट व्याधि कम की जा सकती है.

उचित जल प्रबंधन से कीट नियंत्रण

पानी भरें खेत में कीट प्रकोप अधिक होता है. कपास/भिण्डी में जैसिड से बचने के लिए आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें. धान मे पानी कि निकासी सही होना चाहिए. निकासी सही नहीं होने पर गालमिज, सफेद प्लांट हापर आदि कीटों का प्रकोप अधिक होने कि संभावना रहती है. गेहूं,चना अन्य फसलों में दीमक पानी कि कमी से होता है. सिंचाई करने से प्रकोप कम होता है. चने की इन्नी,चना कटुआ इल्ली का प्रकोप कम करने के लिये सिंचाई आवश्यक है, क्योंकि भूमि में इनके अण्डे और कोष मिलते हैं. सिंचाई से इन पर विपरित असर पडता है. मिट्टी के ढेलों में लाल भृंग पिस्सू भृंग छुपे रहते है. सिंचाई करने पर ये बाहर आ जाते है जिसे रसायन से मारा जा सकता है. धान व ज्वार में ट्रिडडे के अण्डे गर्मी में जमीन पर छुपे रहते है. जून-जुलाई के मानसून के समय नमी प्राप्त होने पर अण्डों से फूटकर शिशु बाहर आ जाते है. सूखे मौसम मे ट्रिडडे की संख्या कम रहती है. इसी प्रकार ज्यादा वर्षा माहू कीटों की संख्या कम कर देती है.

फिरोमैन ट्रेप का उपयोग

किसी भी वयस्क कीट के शरीर से बाहरी वातावरण में जो रासायनिक पदार्थ छोड़ा जाता है. उसकी की पहचान कृषि वैज्ञानिकों ने करते हुए इसको संश्लेषित कर रबर के टुकड़ों में समावेश किया हैं जिसे ल्योर कहते है. यह वातावरण में घुलनशील होती है तथा इसी समूह के नर मादा कीटों को आकर्षित करती है. इसी ल्योर को प्रपंच में रख कर कीटों को आकर्षित कर फंसाया जाता है. इसे फिरोमेन टेृप कहते है. इसके प्रयोग से चने की इल्ली कपास की चित्तेदार इल्ली व गुलाबी इल्ली को आसानी से नष्ट किया जा सकता है. इसक फोया (ल्योर) चार सप्ताह तक क्रियाशील रहता है. विभिन्न प्रकार के कीट के लिए अलग-अलग ल्योर होते है. टेप को खेतों पर बांस के सहारे इस प्रकार लगाना चाहिए ताकि आंधी इत्यादि में सुरक्षित रहे. प्रति हेक्टर 10 टेप लगाए जाने से कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है.

प्रकाश प्रपंच

प्रकाश प्रपंच से कीट इसकी ओर आकर्षित होते है, जिन्हें आसानी से नष्ट किया जा सकता है. यह सरल एवं प्रभावी तरीका है. जिससे चने की हरी, इल्ली कटुआ, कीट, विविध तना छेदक,पत्ती खाने वाले व सुरंग बनाने वाले रस चूसने वाले कीट तथा हरे मच्छर को नियंत्रित किया जा सकता है.

चिपचपे बोर्ड

इस प्रकार के बोर्ड खेत में लगाने से हरा मच्छर,सफेद मक्खी आदि पर नियंत्रण हेतु पीले चिपचिपे बोर्ड अधिक लाभदायक हैं.

टाइकोगामा

यह चित्र कीट हैं किन्तु कीटनाशक औषधि के प्रयोग से इसका विनाश हुआ है जिससे कींटो पर प्राकृतिक नियंत्रण खतरे में पेड़ गया है. किन्तु कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों से इसका उत्पादन एवं पालन कर टाइकोगामा कार्डस् के माध्यम से खेतों पर चिपकाकर छोड़ा जाता है.प्रति हेक्टर पांच कार्ड पर्याप्त होते है तथा प्रत्येक कार्ड पर 20 हजार के लगभग टाइकोगामा रहते है तथा इस कार्ड के टुकड़े कर गोंद या पिन से खेत की फसलों में चिपकाने पर टाइकोगामा मित्र कीट शंखियों से बाहर निकलकर शत्रु कीट हेलियोथिस,चित्तेदार इल्ली गन्ने को छेदने वाली सूडी के अण्डों को खाना शुरू कर देता है, जिससे शत्रु कीट पर नियंत्रण संभव हो जाता है. इसका प्रयोग करने पर कीटनाशक औषधि का उपयोग नहीं करना चाहिए तथा आवश्यकता पडने पर मैलाथियान का प्रयोग किया जा सकता है.

काडसोपिडिस

माहू,सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए क्राइसोपरला कीट से नियंत्रण किया जा सकता है . वयस्क क्राइसोपायरिला कारनिया प्रजाति पीला,हरा जालीदार पंखों वाला शिकारी कीट है. यह हानिकारक कीटों को नष्ट करता है. इसका जीवन चक्र 27 व 30 दिन में पूर्ण होता है सामान्यतः 2 हजार से 5 हजार अण्डे प्रति हेक्टर खेत में देना होता है. यह नियंत्रण के लिए लाभदायक है.

एन.पी.वायरस

 न्यूक्लियर पाली हाइड्रोसिस वायरस को तरल पदार्थ में घोलकर कीटनाशक के समान खेत में छिड़काव करने पर इल्लियां हेयरी केटरपिलर मर जाती हैं इसका प्रयोग प्रति हेक्टर 250 लाबों (1मि.ली.बराबर) की मात्रा पर्याप्त है.

नीम रसायन

प्राकृतिक रूप से नीम की निबोली को सुखाकर इसका पाउडर तैयार कर कीटनाशक में प्रयोग किया जा सकता है तथा निबोली के अर्क से निकाला गया नीम रसायन प्रभावी कीटनाशक है. इसकी गंध से कीट भागते है. 3-5ली. प्रति हेक्टर की दर से इसका छिड़काव किया जाता है.

भुनेश दिवाकर, मनोज चन्द्राकर, सोनू दिवाकर ,आशुतोष अनन्त

सैम हिग्गिनबाँटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय(इलाहाबाद)

English Summary: how to control pest Disease by biological experimentation
Published on: 10 April 2019, 05:39 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now