पिंक बॉलवार्म कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है. इसके तहत किसानों को पिछले कुछ सालों से काफी समस्या का सामना करना पड़ा है| मुख्य रूप से भारत में गुजरात, महाराष्ट्र , पंजाब, मध्यप्रदेश के आलावा जिन राज्यों में कपास कि खेती हो रही वहां के किसानों के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या है.
किसी भी देसी या संकर किस्मों के साथ बीटी कपास भी इससे अछूता नहीं रहा है और उसे बाजार में पिछले कुछ दशकों से बीज तो बेच रही है पर उन किसानों को भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है जो जेनेटिक मॉडिफाइड बीजों का प्रयोग कर रहे हैं उनको भी पिंक बॉलवार्म के अटैक का खतरा सता रहा है पिछले कुछ सालों में भारत के कई राज्यों में इसका जबरदस्त प्रकोप देखा गया है.
क्या है पिंक बॉलवार्म
पिंक बॉलवार्म एक प्रकार का कीट है जो कपास के पौधों को नुकसान पहुंचाता है इसका वैज्ञानिक नाम पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला है इस कीट के अंडे से लार्वा जब बाहर निकलता है तब इसका रंग गुलाबी होता है
इसलिए इसे पिंक बॉलवार्म बोलते हैं इस कीट का जन्म स्थान एशिया महाद्वीप ही है. पर धीरे धीरे ये कपास की खेती करने वाले अन्य देशों में भी अपने पैर पसार चुका है कपास की होने वाली फसल को नुकसान पहुँचाने लगे हैं | वयस्क अवस्था में यह पतले पंख वाले गहरे भूरे रंग का कीट होता है इसकी मादा कीट अपने अंडे देती है तब इसके लार्वा गहरे गुलाबी रंग के होते है और इसके आठ पैर होते हैं.
इसके लार्वा कि लम्बाई लगभग आधे इंच कि होती है एक मादा पिंक बॉलवार्म कीट वयस्क पौधों कि पत्तियों पर एक बार में 125 अंडे देती है और अण्डों से पूरे लार्वा को विकसित होने में लगभग 20 से 25 दिनों का वक्त लगता है.
कैसे पहुंचाते हैं नुकसान
पिंक बॉल वार्म के लार्वा थोड़े वयस्क होने के बाद जल्दी से फूल या कपास के टिंडे में प्रवेश करना शुरू कर देती हैं और अंदर से उसे बीज बनाने वाले फाइबर को खोखला करना शुरू कर देती है. और फिर पौधों के फूलों के साथ टिंडे को भी छेद कर नुकसान पहुंचाती है |यह कीट पौधों के बढ़वार के समय जब इसमें फूल आने वाले होते हैं तभी इसका प्रकोप शुरू हो जाता है और पौधों के साथ साथ फूल एवं फलों को भी
नुकसान पहुंचता है सबसे पहले यह कीट पत्तों पर अपने अंडो को जन्म देती है तो ये अंडो से बाहर निकलने के बाद यह फूलों में घुस कर होने वाले कपास के बीज को भी नुकसान पहुंचती है इस प्रकार कपास की फसल का उत्पादन करने वाले किसान को दोतरफ़ा नुकसान होता है क्योँकि कपास के बीज का प्रयोग तेल एवं पशुओं को खिलाने वाली खली के निर्माण में किया जाता है
किसानों की मुख्य समस्या
गुलाबी कीटों के अटैक से भारत के कई राज्यों में किसानों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें की मुख्य रूप से अगर देखा जाए तो मध्यम वर्गीय किसान जिनके पास जमीन कम है जो अच्छे उत्पादन की उम्मीद तो करते हैं पर उनको ही इस कीट का प्रकोप जैसी मुख्य समस्या का सामना करना पड़ा है जिससे तय समय पर उत्पादन न मिल पाने की वजह से कर्ज एवं कई निजी समस्या का सामना करना पड़ता है ऐसे में तो कई किसानों ने आत्महत्या तक कर ली है तो उन किसानों को भी हो रही समस्या से कैसे बचाया जा सके
गुलाबी कीटों से बचाव
गुलाबी कीटों से बचाव के लिए अनुसंधान एवं जाँच में कई कृषि वैज्ञानिक लगे हुए हैं और इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे पौधों को नुकसान न हो और पिंक बॉलवार्म के प्रकोप को रोका जा सके | इस कीट से बचाव के लिए किसान भाई खेत में फैरोमॉन ट्रैप (चमकीले रंग की पट्टी जिसमें गोंद लगे होते हैं) का उपयोग कर सकते हैं जिससे नर कीटों को अपने तरफ आकर्षित किया जा सके और नर कीट इस पट्टी के चमकदार होने की वजह से इसके ओर खींचे चले आते है इसमें चिपक कर मर जाते हैं और मादा कीट को प्रजनन करने का मौका नहीं मिलता और किसान भाई पहले से इस समस्या से पीड़ित हैं तो उन पौधों को उखाड़ कर जला दें जिससे इन कीटों के लार्वा के भी जीवाश्म नष्ट हो जाएँ और दुबारा फिर से रोपाई करने के बाद उगे हुए पौधों को कोई नुकसान न पहुंचे | किसी भी किट के पौधों को नुकसान पहुंचने का कारण उसके लार्वा का संरक्षण और उसके विकास पर निर्भर करता है
रासायनिक नियंत्रण
पिंक बॉल वार्म के ऊपर रासायनिक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है इस कीट से पौधों के बचाव के लिए सही समय पर कीटनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए तभी इसका असर कीटों के ऊपर हो सकता है और पौधों को बचाया जा सके इसके लिए निम्नलिखित रासायनिक दवाइयां कारगर हैं प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 2 मिली / ली या थायोडिकार्ब 1 ग्रा / ली जैसे कीटनाशकों का नियमित मात्रा में प्रयोग करने से पौधों का सही बचाव हो सकेगा| इस कीट का आक्रमण पौधों के बढ़वार के समय होता है
इस पिंक बॉलवार्म ने कुछ सालों से भारत में किसानों के लिए जिस प्रकार की चुनौती उभार कर सामने खड़ी कर दी है उससे देश में आने वाले समय में कपास के उत्पादन पर एक बड़ा संकट बनकर सामने आ सकता है और देश में इसके लिए बीटी कॉटन या देसी कपास की खेती करना एक बड़ी चुनौती बन कर सामने आ रहा है इस समस्या से किसानों को बाहर निकलने के लिए नियमित समय पर दवाइयों का प्रयोग कर सकते हैं| कपास के बीज का विपणन करने वाली करने वाली कंपनियों को भी इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने होंगे और बीटी कपास या देसी कपास की खेती करने वाले किसानों को अच्छे उत्पादन का लाभ मिल सके