Success Story: बीसीए की डिग्री लेकर शुरू किए मछली पालन, अब सालाना कमा रहे 20 लाख रुपये खुशखबरी! पीएम किसान की 18वीं किस्त हुई जारी, करोड़ों किसानों के खाते में पहुंचे पैसे धान के पुआल से होगा कई समस्याओं का समाधान, जानें इसका सर्वोत्तम प्रबंधन कैसे करें? केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक पपीता की फसल को बर्बाद कर सकता है यह खतरनाक रोग, जानें लक्षण और प्रबंधित का तरीका
Updated on: 25 July, 2019 4:55 PM IST

भारत की तेल वाली फसलों में अरंड की फसल का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके तेल का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन व औषधि आदि उद्योगों में बहुतायत में होता है। यह लंबी अवधि की फसल होती है जो भारत में मुख्य रूप से गुजरात व राजस्थान में बोई जाती है। हरियाणा में भी धीरे धीरे इसका क्षेत्रफल बढ़ रहा है। हरियाणा में अरंड की खेती कम सिंचित एवं पूर्ण सिंचित, मरगोजा एवं सरसों में तना गलन प्रभावित क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक ली जा सकती है। इसके तेल का प्रयोग हवाई जहाज के इंजन, मशीनों में चिकनाई, नाइलोन, प्लास्टिक, चमड़ा, विभिन्न रंगों की डाई, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, औषधियों एवं अनेक अन्य उत्पादों में भी होता है। यह अधिक आमदनी और कम जोखिम वाली फसल है। अरंड की अधिक पैदावार के लिए किसान निम्नलिखित उन्नत तकनीकें अपना सकता है:

अरंड की उन्नत किस्में 

बारानी एवं कम सिंचित क्षेत्र में DCH-177 अच्छी पैदावार देती है। यह हाइब्रिड कम पानी व ठंड वाले इलाकों में भी अच्छी पैदावार देती है। इसमें सफ़ेद मक्खी का प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा सिंचित क्षेत्रों में GCH-7, DCH-519 की बीजाई की जा सकती है।

बीजाई का समय

अरंड के हाइब्रिड क़िस्मों की बीजाई का सबसे अच्छा समय जून से मध्य जुलाई तक है। जुलाई अंत तक बीजाई अवश्य पूरी कर लेनी चाहिए। जल्दी बीजाई करने से कीड़ो और खरपतवारों का प्रकोप ज्यादा होता है और देरी से बीजाई करने से सर्दी का प्रभाव भी ज्यादा पड़ता है जिससे उत्पादन कम हो जाता है।

बीज की मात्रा एवं बीजाई

बारानी एवं कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में लाइनों में 90 से.मी. (3 फुट) एवं पौधों में 60 से. मी. (2 फुट) की दूरी रखें। बीज की मात्रा 3-4 किलो प्रति एकड़ रखें । सिंचित क्षेत्रों में लाइनों की दूरी 120-150 से.मी. एवं पौधों की दूरी 90 से.मी. रखें तथा बीज की की मात्रा 1 किलो 600 ग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करें। बीज की गहराई 2-3 इंच सही रहती है। अगर अरंड की फसल के बीच में कोई फसल लेना चाहते हैं तो लाइनों का फासला 5 से 8 फुट तक कर सकते हैं। बीजाई से पहले बीज को 12-24 घंटे पानी में भिगोना चाहिए।

बीज उपचार

बीज से होने वाले रोगों को रोकने के लिए थिरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या 2 ग्राम बावीस्टिन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

उर्वरकों की मात्रा

वर्षा पर आधारित

नाइट्रोजन (किलोग्राम)

फास्फोरस (किलोग्राम)

पोटाश (किलोग्राम)

समय

 

8

16

10-12

बीजाई से पहले

 

8

-

-

बीजाई के 35-40 दिन बाद

 

8

-

-

बीजाई के 65-70 दिन बाद

सिंचित

8

16

-

बीजाई से पहले

 

8

-

-

बीजाई के 35-40 दिन बाद

 

8

-

-

बीजाई के 75-80 दिन बाद

 ज़िंक सल्फेट 10 किलोग्राम और जिप्सम 100 किलोग्राम बीजाई के समय देना चाहिए।

स्त्रोत: खरीफ फसलों की समग्र सिफ़ारिशें, 2018. चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

सिंचाई

शुरुआती अवस्था में अरंड की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती लेकिन लंबी अवधि 20-25 दिन तक शुष्क दशा में सिंचाई की जरूरत होती है। सिंचाई देने से अरंड की खेती में ज्यादा बढ़ोतरी होती है।

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआत में अरंड की तुलना में खरपतवार ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं जिससे अरंड के पौधे की वृद्धि रुक जाती है खरपतवार कीड़ों के आक्रमण में भी वृद्धि करते हैं इसलिए सही समय पर खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है। बीजाई के चौथे व सातवें सप्ताह में निराई गुड़ाई करने से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। कपास की तरह इस फसल में भी ट्रैक्टर, बैल या ऊँट से भी निराई-गुड़ाई की जा सकती है। फसल उगने से पहले बीजाई के तुरंत बाद 800 मी. ली. पैंडिमैथिलीन का छिड़काव करना चाहिए। बाद में उगने वाले खरपतवारों को हाथ से निकाल कर फेंक देना चाहिए।

अरंड के साथ अंत:फसलों की खेती

अरंड में लाइनों को दूरी को 5-8 फुट बढ़ाकर शुरू के 4-5 महीनो में मूंग, ग्वार,कपास,टमाटर,मिर्च,मूली, गाजर आदि की अंत: फसल को सफलतापूर्वक लिया जा सकता है। अरंड की बीजाई उत्तर-दक्षिण धिशा में करनी चाहिए।

समन्वित कीट प्रबंधन

खेतों में और आसपास खरपतवारों को न पनपने दें।

कीड़ों के अंडों को नष्ट कर दें व खेत में पक्षियों के बैठने का समुचित प्रबंध करें।

पहली बारिश के एक महीने तक लाईट ट्रेप का प्रयोग करें।

अरंड के जिन पत्तों पर छोटी सूँडीयां मिलें उन पत्तों को तोड़कर सुंदियों समेत जमीन में दबा दें। एवं बड़ी सूंड्डियों को कुचल कर नष्ट कर दें।

सूँडीयों की ज्यादा समस्या होने पर 500 मी. ली. क्विनल्फोस25 ई. सी. या 200 मी. ली. डाइक्लोरोवोस 76 ई. सी. या 500 मी. ली. मोनोक्रोटोफोस 35 एस. एल. का 250 लिटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

अरंड की फसल का पाले से बचाव

समय पर बीजाई की गई फसल में पाले का नुकसान कम होता है।

अच्छे खरपतवार नियंत्रण वाली फसल में पाले का नुकसान कम होता है। पोटाश की मात्रा पूरी देने से भी पाले का असर कम होता है।

पोटाश की मात्रा पूरी देने से भी पाले का असर कम होता है।

मुनाफ़ा

अरंड की खेती में कुल खर्चा लगभग 8000 रुपए प्रति एकड़ आता है जबकि कुल मुनाफ़ा लगभग 95400 रुपए होता है। अरंड की प्रति एकड़ पैदावार 18 क्विंटल है और बाजार में इसका मूल्य 5000-5500 रूपए प्रति क्विंटल है।

स्त्रोत : किसानों की प्रतिपुष्टि

 लेखक : डॉ. मीनू और डॉ. योगिता बाली

        कृषि विज्ञान केंद्र, भिवानी 

 

सम्बन्धित खबर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

अरंडी की यह किस्म देगी प्रति हेक्टेयर 4 टन उत्पादन...

English Summary: how to Castor farming benefits castor oil price per kg
Published on: 25 July 2019, 05:03 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now