धान, फल एवं सब्जी उत्पादन की सफलता की नींव नर्सरी से शुरू होती है. नर्सरी में बीजों के स्वस्थ एवं तेज अंकुरण के साथ-साथ नवजात पौधों को कीटों और बीमारियों से बचाना अत्यंत आवश्यक है. यही उद्देश्य बीज उपचार तकनीकों से प्राप्त किया जा सकता है, जो वर्तमान में पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर अत्याधुनिक एवं समन्वित विधियों का रूप ले चुकी हैं.
1. रासायनिक बीज उपचार: परंपरा और प्रभावशीलता का समन्वय
कवकनाशी उपचार
धार्मिक रूप से अपनाए जाने वाले कवकनाशक जैसे कार्बेंडाज़िम, थिरम और ट्राईसाइक्लाज़ोल नर्सरी में बीज एवं मिट्टी जनित रोगों से सुरक्षा प्रदान करते हैं. विशेषकर धान की नर्सरी में ये फफूंदनाशक ब्लास्ट, शीथ ब्लाइट, और जड़ सड़न जैसी समस्याओं को रोकने में सक्षम हैं.
कीटनाशी उपचार
बीजों को इमिडाक्लोप्रिड और फिप्रोनिल जैसे कीटनाशकों से उपचारित कर आरंभिक अवस्था में लीफहॉपर, प्लांटहॉपर और दीमक जैसे कीटों से सुरक्षा दी जाती है. यह प्रारंभिक सुरक्षा पौध की स्थिरता और उत्पादकता सुनिश्चित करती है.
2. जैविक बीज उपचार: प्रकृति के मित्र सूक्ष्मजीव
जैव-कवकनाशी और जैव-कीटनाशी
ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस जैसे सूक्ष्मजीव बीज और मिट्टी में उपस्थित रोगजनकों को नियंत्रित करते हैं. ये न केवल रोग नियंत्रण करते हैं, बल्कि पौध वृद्धि को भी बढ़ावा देते हैं.
पादप वृद्धि प्रवर्तक राइजोबैक्टीरिया (PGPR)
एज़ोस्पिरिलम और बैसिलस सबटिलिस जैसे PGPR सूक्ष्मजीव पोषण उपलब्धता बढ़ाकर और जैविक हार्मोनों के स्राव द्वारा बीज अंकुरण को गति प्रदान करते हैं.
3. भौतिक बीज उपचार: बिना रसायन के रोग नियंत्रण
गर्म जल उपचार और ऊष्मीय उपचार जैसे भौतिक तरीकों से बीजों को बिना किसी रासायनिक अवशेष के रोगजनकों से मुक्त किया जा सकता है. यह विधि जैविक खेती हेतु विशेष रूप से उपयुक्त है.
4. प्राइमिंग तकनीकें: बीज की ऊर्जा का पूर्व-सक्रियकरण
हाइड्रोप्राइमिंग
साधारण जल में बीज को भिगोने से अंकुरण समान और तेज होता है.
ऑस्मोप्राइमिंग
पीईजी जैसे घोलों का प्रयोग कर बीजों की जल शोषण क्षमता और तनाव सहनशीलता बढ़ाई जाती है.
न्यूट्रीप्राइमिंग
जिंक, बोरान, मैग्नीशियम आदि पोषक तत्वों के घोल में बीजों को भिगोकर पौध की पोषण आवश्यकता पहले ही पूरी की जा सकती है.
5. बीज कोटिंग और पेलेटिंग: आधुनिक कृषि की परिकल्पना
पॉलीमर कोटिंग से बीजों को संभालना आसान होता है और यह पोषक तत्वों या रसायनों को नियंत्रित रूप से छोड़ने में सहायक होता है. वहीं पेलेटिंग द्वारा बीजों का आकार एकरूप बनाकर सटीक रोपण संभव होता है.
6. नैनो-आधारित बीज उपचार: भविष्य की तकनीक
नैनो-उर्वरक एवं नैनो-पेस्टीसाइड्स अत्यल्प मात्रा में अधिक प्रभावशीलता प्रदान करते हैं. नैनो-प्राइमिंग बीजों की आंतरिक शक्ति को सक्रिय करता है, जिससे अंकुरण दर और प्रारंभिक वृद्धि बेहतर होती है.
7. जैव-उत्तेजक आधारित उपचार: प्राकृतिक शक्ति का दोहन
समुद्री शैवाल अर्क, ह्यूमिक और फुल्विक एसिड जैसे बायोस्टिमुलेंट्स बीजों को प्राकृतिक वृद्धि हार्मोन एवं पोषक तत्व प्रदान कर पौधों को प्रारंभ से ही सक्षम बनाते हैं.
8. विद्युतचुंबकीय एवं अल्ट्रासोनिक उपचार: नवाचार की दिशा में कदम
विद्युतचुंबकीय तरंगों और अल्ट्रासोनिक तरंगों से बीजों को उपचारित कर अंकुरण को बढ़ाया जा सकता है. ये तकनीकें पर्यावरण के अनुकूल एवं गैर-रासायनिक हैं.
9. एकीकृत बीज उपचार तकनीक: समन्वित सफलता का मार्ग
रासायनिक, जैविक, भौतिक एवं तकनीकी विधियों का समन्वय करके बीजों को बहुआयामी लाभ मिल सकते हैं. उदाहरणस्वरूप, बीजों को पहले कवकनाशी से उपचारित कर जैव-प्राइमिंग और फिर पोषक तत्वों की कोटिंग से समग्र सुरक्षा और वृद्धि मिलती है.
व्यावहारिक सुझाव: सफल बीज उपचार के लिए ध्यान योग्य बातें
बीज की गुणवत्ता: उपचार के लिए स्वच्छ, परिपक्व और रोगमुक्त बीजों का चयन करें.
संगतता: जैविक और रासायनिक उपचारों में परस्पर विरोध से बचें.
पर्यावरणीय प्रभाव: पर्यावरण के अनुकूल विधियों को प्राथमिकता दें.
लागत-लाभ: किसानों के लिए सस्ता, प्रभावी और व्यावसायिक रूप से संभव विकल्प अपनाएं.
नियामक अनुपालन: उपचार में प्रयुक्त रसायनों की अनुमोदित सूची का पालन करें.