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Updated on: 7 April, 2023 12:44 PM IST
झूम खेती करने का तरीका

भारत एक कृषि प्रधान देश है और लगभग 60 फीसदी आबादी कृषि पर ही निर्भर है, इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र को लेकर लगातार नए-नए प्रयोग किए जाते हैं. पुराने समय में तो कृषि यानी खेती-बाड़ी कई अलग-अलग तरीकों और पद्धतियों को अपनाकर की जाती थी और इन्हीं में शामिल कई अलग-अलग पद्धतियों को अपनाकर आज भी खेती की जाती है. जिनमें से एक है झूम पद्धति. बता दें झूम कृषि पुरानी कृषि का ही एक प्रकार है  जो आज कल चर्चाओं में है.

हालांकि झूम खेती को देश के कुछ क्षेत्रों में ही किया जा रहा है क्योंकि देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें झूम खेती के बारे ज्यादा जानकारी नहीं है. जानकारी के अभाव में कई लोग इस पद्धति को नहीं अपना पा रहे हैं लेकिन जो किसान झूम खेती के बारे में जानते हैं झूम खेती कर काफी अच्छी कमाई कर रहे हैं. इस बीच जानिए झूम पद्धति से खेती का तरीका और फायदा-नुकसान.

झूम खेती का तरीका- झूम खेती करने का तरीका सबसे अलग है. खेती में जब एक फसल कट जाती है, तो उस जमीन को कुछ सालों के लिए खाली छोड़ देते हैं, इस खाली भूमि पर कुछ सालों में बांस या अन्य जंगली पेड़ उग जाते हैं फिर इस जंगल को गिराकर जला देते हैं, जो बाद में खाद की तरह काम करता है. हालांकि पहले से ही पेड़ या वनस्पति खड़े हैं, तो उन्हें भी जलाकर झूम खेती कर सकते हैं. वहीं जलाए जंगल की सफाई करने के बाद जुताई करके बीज की बुवाई की जाती है. बता दें यह पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर रहती है. अब इस जमीन पर फिर से पेड़-पौधे निकल आते हैं और फिर जमीन साफ करके खेती करते हैं लेकिन यह केवल कुछ साल तक की जाती है. इस तरह यह एक स्थानान्तरणशील कृषि होती है जिसमें कुछ समय के अंतराल में खेत को बदलना पड़ता है. इस खेती को उष्ठकटिबंधीय वन प्रदेशों में किया जाता है.

इन फसलों की कर सकते हैं खेती - सभी फसलें झूम खेती के तहत उगाई जा सकती हैं जिनमें मक्का मिर्च और सब्जियों की फसल मुख्य हैं. इस विधि में ज्यादातर सब्जी और कम अवधि वाली फसलों को अहमियत दी जाती है. फसल से बचे अवशेष और मिट्टी में उगे खरपतवार को मिट्टी में छोड़ा जाता है जो अगली फसल के लिए उर्वरक का काम करती है.

झूम खेती के फायदे- इस तरह की खेती में गहरी जुताई और बुवाई की जरूरत नहीं पड़ती. इसमें खेत की सफाई के बाद सिर्फ मिट्टी की ऊपरी परत को हल्का हटाकर बीज बोने से भी बीज अंकुरण की संभावना रहती है. इसका उपयोग ज्यादातक पिछड़े या पहाड़ी इलाकों में होता है, जो आधुनिक कृषि तकनीक की पहुंच से बहुत दूर हैं या किसानों के लिए एक महंगी प्रक्रिया है.

झूम खेती के नुकसान- मिट्टी में पोषक तत्वों की समाप्ति के बाद दूसरी बार वनस्पति उगने और उसे काटकर जलाने के समय में 15-20 सालों का अंतर होता है, जिसकी वजह से मैदानी इलाकों में इस पद्धति की खेती करना नामुमकिन है साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होता है.

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झूम खेती में खाद्य सुरक्षा- खेती में स्थानांतरित कृषि प्रणाली को अपनाने वाले समुदायों में बढ़ोतरी हुई पर स्थानांतरित कृषि खाद्य सुरक्षा से परिवारों को पर्याप्त नकदी नहीं मिलती. मनरेगा भी लोगों की बढ़ती निर्भरता को स्थानांतरित कृषि से हटाने के लिए प्रभाव डालने का काम कर रही है. नियादी खाद्य पदार्थों और अनाज तक लोगों की व्यापक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार हो रहा है. पहले झूम खेती के कृषक 10-12 साल बाद परती भूमि पर लौटते थे लेकिन अब वह 3-5 साल में ही लौट रहे हैं क्योंकि इसने मिट्टी की गुणवत्ता पर काफी असर डाला है.

English Summary: Have you heard of 'Jhoom' method of farming, know the method of farming and its advantages and disadvantages
Published on: 07 April 2023, 12:55 PM IST

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