पूरे साल अपने पशुओं के लिए चारे का प्रबंध करना इतना आसान नही है. सर्दियों के दिनों की बात अलग है, लेकिन गर्मियों में पानी की कमी और उच्च तापमान में हरा चारा उगा पाना कठिनाई का काम है. ऐसे में चारा संकट से उबरने के लिए बहुवर्षीय चारों का उपयोग किया जा सकता है. गिनी घास भी इसी तरह की एक चारा फसल है, जिसकी मांग पशु पालकों के बीच खूब है.
मिट्टी एवं पोषक तत्त्व
गिनी घास की खेती में विशेष मेहनत की जरूरत नहीं होती, कम सिंचाई और कम नमी की अवस्था में भी ये तेजी से बढ़ने में सक्षम है. इसकी खेती वैसे तो लगभग सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन दामोट या बलुई मिट्टी इसके विकास में सहायक है. इस घास में पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा होती है और इसके सेवन से दुधारू पशुओं का दूध बढ़ता है. इसकी खेती छायादार जगहों, मेंड़ों या किसी नहर के किनारे आराम से हो सकती है.
नर्सरी की तैयारी
गिनी घास की रोपाई जड़ों द्वारा की जाती है. पौधे से पौधे की दूरी और एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी में समानता होनी चाहिए. बनाए गए क्यारियों में गोबर की कंपोस्ट खाद मिला सकते हैं.
बुवाई का समय
गिनी घास को वैसे तो साल में कभी भी बोया जा सकता है, लेकिन फिर भी ठंड के मौसम में बुवाई से बचना चाहिए. इस काम को करने के लिए बरसात का मौसम सबसे अच्छा है.
सिंचाई
जड़ों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. बारिश न होने पर हर दूसरे सप्ताह सिंचाई करें. गैरजरूरी खरपतवारों को नियमित रूप से साफ करते रहें.
कटाई
फसल रोपे जाने के 2 से 3 माह बाद इसकी कटाई कर सकते हैं. नियमित कटाई 30-45 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए. फसल के 5 फुट के होने के बाद 15 सेंटीमीटर के ऊपर से काटें.
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