स्वस्थ रहने के लिए लोग हरी सब्जियां ज्यादा खाते हैं. इसलिए हरी सब्जियों की डिमांड भी है. ऐसे में सब्जियां उगाना मुनाफेमंद साबित हो रहा है. फ्रेंच बीन का सब्जियों में एक प्रमुख स्थान है, जो कई तरह की सब्जियों के साथ बनती है. इसलिए मंडी में बिकती भी अच्छे भाव में है. उन्नत तरीके से फ्रेंच बीन की खेती करने से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आइये जानते हैं उन्नत किस्म और खेती के बारे में.
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु-
फ्रेंचबीन सम जलवायु की फसल है. इसकी अच्छी बढ़वार और उपज के लिए 18- 20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त है. 16 डिग्री सेन्टीग्रेड से कम और 22 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापक्रम का फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की फसल पाला और अधिक गर्मी के प्रति संवेदनशील है.
खेती के लिए भूमि चयन-
खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में होती है. अच्छी जल निकास वाली जीवांशयुक्त बलुई-दोमट से लेकर दोमट मिट्टी उपयुक्त है. ph मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए. जल ठहराव की अवस्था फसल के लिए बहुत हानिकारक है.
खेत की तैयारी-
सबसे पहले खेत में मौजूद अन्य फसलों के अवशेषों को हटाएं, खेत की गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ें. फिर खेत में पुरानी गोबर की खाद डालकर अच्छे से मिट्टी में मिलाएं. फिर खेत का पलेव करें. पलेव करने के 3-4 दिन बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं. फिर खेत को पाटा लगाकर समतल बनाएं.
खेती की उन्नत किस्में-
बीन्स की कई तरह की किस्में हैं. जिन्हें उनकी पैदावार, आदर्श वातावरण और पौधों के आधार पर अलग-अलग प्रजातियों में बांटा गया है.
झाड़ीदार किस्में- इस तरह के पौधे झाड़ी के रूप में उगते हैं, जिनको ज्यादातर पर्वतीय भागों में उगाते हैं. जैसे स्वर्ण प्रिया, अर्का संपूर्णा, आर्क समृद्धि, अर्का जय, पन्त अनुपमा, पूसा पार्वती, एच.ए.एफ.बी. – 2
बेलदार किस्मे- बेलदार किस्मों के पौधे बेल के रूप में बढ़ते हैं. जिनकी खेती ज्यादातर मैदानी भागों में होती है. जैसे स्वर्ण लता, अर्का कृष्णा, अर्का प्रसिद्धि, पूसा हिमलता, सी. एच. पी. बी. – 1820 इसके अलावा भी कई किस्में हैं. जिन्हें उनकी उपज के आधार पर उगाते हैं. जिनमें वाईसीडी 1, प्रीमियर, अर्का सुमन, दीपाली, कंकन बुशन, दसारा और फुले गौरी जैसी किस्में शामिल हैं.
फ्रेंचबीन की बीज की मात्रा-
फ्रेंचबीन की बौनी (झाड़ीनुमा) किस्मों के लिए 70-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और लता वाली किस्मों के लिए 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.
बीज रोपण का तरीका और समय-
रोपण हाथ और ड्रिल के माध्यम से होता है. ड्रिल के माध्यम से रोपाई अधिक पैदावार देती है. बीज को खेत में लगाने से पहले उपचारित करना चाहिए. फिर कार्बेन्डाजिम, थीरम या गोमूत्र का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर में बीजों की रोपाई के लिए 80-100 किलो बीज काफी है. बीज की रोपाई समतल होती है. रोपाई के दौरान हर पंक्तियों के बीच की दूरी एक से डेढ़ फीट रखें. जबकि पंक्तियों में बीज की रोपाई आपस में 10- 15 सेंटीमीटर की दूरी पर होनी चाहिए. बारिश में होने वाली खेती के लिए बीज को खेत में मेड़ बनाकर उगाना चाहिए.
पौधों की सिंचाई-
फसल मिट्टी की नमी के प्रति अति संवेदनशील होती है. खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, नहीं तो पौधे मुरझाते हैं. जिससे उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए मिट्टी की नमी को ध्यान में रखते हुए नियमित अन्तराल पर सिंचाई करें.
खेती में खरपतवार नियंत्रण-
खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक तरीके से होता है. रासयनिक तरीके से पेन्डीमेथलीन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के बाद करें. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की निराई-गुड़ाई होती है. इसके लिए पौधों की शुरुआत में पहली गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 20 दिन बाद हल्के रूप में करनी चाहिए. खेती में दो गुड़ाई काफी होती है. दूसरी गुड़ाई, पहली गुड़ाई के लगभग 15-20 दिन बाद करनी चाहिए.
कीट एवं रोकथाम-
ग्रीन हाउस और पॉली हाउस में कीट और रोगों का प्रभाव कम होता है लेकिन खुले में खेती से कुछ कीट और रोगों का प्रकोप होने की संभावनाएं होती हैं.
फ्रेंचबीन फलियों की तुड़ाई-
फलियों को पकने से पहले तोड़ना चाहिए. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50-60 दिन बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. फलियों की तुड़ाई बाजार की मांग के आधार पर करनी चाहिए. फलियों की तुड़ाई के बाद उन्हें पानी से साफ़ कर बाज़ार में बेचने के लिए भेजना चाहिए.
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फ्रेंचबीन की पैदावार-
फसल से पैदावार किस्म चयन, खाद और उर्वरक की मात्रा, फसल देखभाल और अन्य कृषि परिस्थितियों पर निर्भर करती है. लेकिन सामान्यः उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर फ्रेंचबीन की झाड़ीनुमा (बौनी) किस्मों से हरी फलियों की उपज 80-230 क्विंटल और लता वाली (बेल) किस्मों की 80-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. सूखे दानों की औसत उपज 10 से 21 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है.