Foxtail millet: कंगनी की खेती राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में की जाती है. इसे कान या काकुन आदि के नाम से भी जाना जाता है. यह कम उपजाऊ, असिंचित भूमि तथा अरावली पर्वतमाला की ढलाऊ जमीन पर सफलतापूर्वक उगाई जाती है. तो आइये जानते है इसकी खेती का तरीका और फायदे...
भूमि
कंगनी की खेती के लिए भूमि को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2 से 3 बार देशी हल जोत लेना चाहिये. खेत में दीमक की रोकथाम के लिये दीमक नियंत्रण कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए. खेत की जुताई के पश्चात् उस पर पाटा चला दें, जिससे भूमि भुरभुरी तथा समतल हो जाये.
बीजोपचार
आप बीजों को दो प्रतिशत नमक के घोल में डालकर अच्छी तरह हिलायें, इससे खराब बीज घोल के ऊपर तैरन लगेगें. हल्के हाथों से बीजों को निकाल दें और नीचे बैठे बीजों को साफ पानी से धोकर सुखा लें. इस फसल की बुवाई जून के अन्तिम सप्ताह से मध्य जुलाई के बीच पर्याप्त नमी में की जाती है. आपको पर एकड़ 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी.
बोने की विधि
बीज को छिड़क कर या बिखेरकर बोया जाता है, परन्तु अधिक उपज के लिये इन फसलों को 25 सें.मी. दूरी पर कतारों में बोना चाहिये. बीज को लगभग 3 सेंटीमीटर की गइराई में बोना चाहिए.
सिंचाई
कंगनी की अच्छी पैदावार के लिये खेत में जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिय. आप समतल खेतों में 40 से 45 मीटर की दूरी पर गहरी नालियाँ बना लें, जिससे वर्षा का अतिरिक्त जल नालियों द्वारा खेत से बाहर निकल जाए.
निराई एवं गुड़ाई
अनाज की अच्छी पैदावार के लिए फसलों में बुवाई के 30-40 दिन बाद कम से कम एक-दो बार निराई-गुड़ाई तथा छंटाई अवश्य कर लें.
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कंगनी के फायदे
• आसानी से पचने के कारण इसे गर्भवती महिलाओं के लिए एक अच्छा भोजन माना जाता है और यह पेट के दर्द से भी राहत देता है.
• यह मूत्र विसर्जन के समय होने वाली जलन से छुटकारा प्रदान करता है और यह अतिसार के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
• कंगनी में प्रोटीन और आयरन की मात्रा अधिक होती है, जो रक्तहीन मरीजों के लिए फायदेमंद होता है. यह जोड़ों के दर्द को दूर करने में मदद करता है.
• यह मोटे आनाज की श्रेणी में आता है, इनमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है जो हमारे मोटापे को नियंत्रित करता है.
• कंगनी में एंटीऑक्सीडेंट तत्व होते हैं, जो फ्री रेडिकल्स के प्रभाव को कम करते हैं, जिससे हमारी त्वचा स्वस्थ रहती है.