Rabi And Horticultural Crops: दिसंबर 2024 का महीना रबी फसलों यथा गेहूं, सरसों, फूलगोभी, पत्ता गोभी आलू, टमाटर के साथ साथ आम एवं लीची के लिए ठीक नहीं था क्योंकि वातावरण में भारी उतार चढ़ाव देखा जा रहा था लेकिन जनवरी का महीना तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है बिहार में जनवरी के महीने में कृषि जलवायु रबी फसलों और बागवानी फसलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है. निम्नलिखित प्रभाव देखे जा सकते हैं जैसे...
1. रबी फसलें (जैसे गेहूं और सरसों)
ठंड का प्रभाव: जनवरी में ठंडी और शीतलहर (cold wave) का प्रभाव रहता है, जो गेहूं और सरसों की फसलों के लिए अनुकूल हो सकता है, क्योंकि यह कल्लों (tillering) और पुष्पण (flowering) के लिए उपयुक्त परिस्थितियां प्रदान करता है.
पाला (Frost): यदि तापमान 4°C से नीचे गिरता है, तो पाला लगने का खतरा होता है, जो सरसों और गेहूं की फूलों और पत्तियों को नुकसान पहुंचा सकता है.
सिंचाई की आवश्यकता: जनवरी में आंशिक सूखा प्रभाव पड़ सकता है. यदि वर्षा नहीं होती, तो सिंचाई की आवश्यकता होती है.
लेकिन सर्दियों के मौसम में अत्यधिक ठंडक यानि जब तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाने की वजह से गेंहू के खेत में भी माइक्रोबियल गतिविधि कम हो जाती है, जिसके कारण से नाइट्रोजन का उठाव (Uptake) कम होता है, गेंहू के पौधे अपने अंदर के नाइट्रोजन को उपलब्ध रूप में नाइट्रेट में बदल देता है. नाइट्रोजन अत्यधिक गतिशील होने के कारण निचली पत्तियों से ऊपरी पत्तियों की ओर चला जाता है, इसलिए निचली पत्तियां पीली हो जाती हैं. संतोष की बात यह है की यह कोई बीमारी नहीं है ये पौधे समय के साथ ठीक हो जाएंगे. यदि समस्या गंभीर हो तो 2 प्रतिशत यूरिया (20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें) का छिड़काव करने की सलाह दिया जा सकता है.
अत्यधिक ठंढक से गेंहू एवम अन्य फसलों को बचाने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए, यथासंभव खेतों के किनारे (मेड़) आदि पर धुआं करें. इससे पाला का असर काफी कम पड़ेगा. पौधे का पत्ता यदि झड़ रहे हो या पत्तों पर धब्बा दिखाई दे तो डायथेन एम-45 नामक फफूंदनाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से पाला का असर कम हो जाता है. इससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है.
2. आलू और टमाटर
आलू: ठंडा तापमान आलू की कंद वृद्धि (tuberization) के लिए अनुकूल है, लेकिन अधिक ठंड और पाले से कंद खराब हो सकते हैं.
जलभराव से कंद सड़न (tuber rot) हो सकती है, इसलिए उचित जल निकासी आवश्यक है.
टमाटर: जनवरी में इस समय पड़ रही ठंड और शीतलहर टमाटर के लिए अच्छा है लेकिन यदि तापक्रम इसके नीचे जाता है तो फूल झड़ने (flower drop) का कारण बन सकती है. पाला लगने से पौधे की पत्तियाँ और फल खराब हो सकते हैं.
आलू एवं टमाटर की फसल में देर से झुलसा (Late blight) रोग का खतरा बढ़ जाता है. किसान को इसके लिए तैयार रहना चाहिए
पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन
जब तक आलू एवं टमाटर के खेत में इस रोग के लक्षण नही दिखाई देता है, तब तक मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं, लेकिन एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैंकोजेब नामक देने का कोई असर नहीं होगा इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. मेटालैक्सिल एवं मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है. एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी. छिड़काव करते समय पैकेट पर लिखे सभी निर्देशों का अक्षरशः पालन करें.
3. आम एवं लीची (बागवानी फसलें)
आम (Mango): जनवरी में आम के लिए 'मंजर' (flowering) की शुरुआत होती है. ठंडी और शुष्क जलवायु फूलों के विकास के लिए अनुकूल होती है.
लीची (Litchi): लीची के लिए शीतल जलवायु पुष्पन (flowering) को बढ़ावा देती है. पाला और अत्यधिक ठंड से नई कोंपलों (new flushes) को नुकसान हो सकता है.
4. कीट एवं रोग
ठंड के कारण कीटों की सक्रियता कम हो जाती है, लेकिन कुछ रोग, जैसे: गेहूं में पत्ती धब्बा रोग और जंग रोग (Rust) एवं सरसों में अल्टरनेरिया ब्लाइट; आलू और टमाटर में लेट ब्लाइट के खतरों के प्रति किसान को सतर्क रहना चाहिए. इसके लिए अपने नजदीकी केवीके के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहना अत्यावश्यक है.
5. अन्य प्रभाव
जनवरी में यदि धुंध (fog) अधिक रहती है, तो प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) प्रभावित होता है, जिससे फसलों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. मौसम की अनिश्चितता (जैसे अचानक बारिश या ओलावृष्टि) रबी फसलों और बागवानी फसलों को क्षति पहुंचा सकती है.
समाधान: फसल सुरक्षा के लिए पाले से बचाव (सिंचाई, मल्चिंग) करें. रोग प्रबंधन के लिए जैविक एवं रासायनिक उपाय अपनाएं. मौसम आधारित कृषि सलाह का पालन करें.