हरित क्रांति के बाद से भारतीय कृषि में देश के किसानों का एकमात्र ध्यान खाद्य फसलों के उत्पादन बढ़ाने की तरफ है. लेकिन ये कृषि परिदृश्य की जैव विविधता को कम कर रहा है. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि हरित क्रांति से ही भारत के कृषि क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई और कृषि में हुए सुधार की वजह से देश में फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ी है.
लेकिन इसके लिए किसानों द्वारा अत्यधिक मात्रा में कृषि रसायन जैसे सिंथेटिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक और फफूंदनाशी का उपयोग करने से मिट्टी और पानी में पोषक तत्वों की कमी को कोई नकार नहीं सकता है. इसके साथ ही निरंतर एक ही रसायन से कीट व खरपतवार में धीरे- धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है. इस तरह फसल की उपज की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसे में ये कहने की जरूरत नहीं है कि इसका सेवन करने वालों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं ये किसानों की लागत को तो बढ़ाने का काम करता ही है. साथ ही ये किसानों की आय को भी सीमित करता है.
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की साल 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर भोजन के लिए उगाई जाने वाली 6,000 पौधों की प्रजातियों में से 66 प्रतिशत सिर्फ 9 प्रजातियों से आती हैं. इनमें गन्ना, मक्का, चावल, गेहूं, आलू, सोयाबीन आदि शामिल हैं. इस रिपोर्ट पर नजर डाले तो इससे साफ पता चलता है कि बड़े पैमाने पर खाद्य फसलों की अधिक उत्पादन कृषि क्षेत्र में जैव विविधता को खत्म या कम कर रहा है. ये जैव विविधता से समझौता हमारे जलवायु और पर्यावारण के साथ भी मेलजोल नहीं रखती है.
ऐसे में अब समय आ गया है कि किसान अपनी पारंपरागत खेती से अलग ‘फसल विविधीकरण खेती’ की ओर ज्यादा रुख करें. जैसा की बड़े पैमाने पर उत्पादन में सहायता के लिए हरित क्रांति के दौरान इन प्रथाओं को काफी हद तक छोड़ दिया गया था, लेकिन हमें उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए एक ठोस प्रयास करना चाहिए. इसके लिए सरकार भी अपनी तरफ से योगदान दे रही है. फसल विविधीकरण खेती अपनाकर किसान की आय सीमित नहीं रह जायेगी. किसानों के अलावा इसके पर्यावरणीय फायदें भी हैं. ऐसे में आइये इस लेख में फसल विविधीकरण के हर पहलू पर बात करते हैं.
फसल विविधीकरण खेती क्या है?
फसल विविधीकरण, विभिन्न प्रकार की फसल अथवा एक ही फसल की अनेक किस्में लगाकर खेती करने की एक पद्धति है, जिसमें किसान कुछ अंतराल के बाद एक फसल को किसी अन्य फसल से बदलकर फसल विविधता के आयाम को बनाये रखने का काम करते हैं. आसान शब्दों में कहें, तो खेती की इस खास विधि से किसान एक ही खेत में अलग-अलग फसलों की खेती कर सकते हैं.
फसल विविधीकरण से किसानों की बढ़ेगी आय
एक साथ कई फसलों को बोने से पानी, श्रम और पैसों की बचत होती है.फसल विविधीकरण खेती से किसानों की आय बढ़ सकती है. एक ही खेत में कम जगह में ही अलग-अलग फसलों का उत्पादन भी मिल जाता है, जिससे किसानों को डबल-ट्रीपल फायदा मिलता है.
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सबसे कारगर
फसल विविधीकरण मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी कारगर है. फसल विविधीकरण से तात्पर्य फसल को बदलकर बोने से हैं. जैसा की लगातार खेत में हर साल एक ही फसल बोने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति नष्ट हो जाती है, जिससे फसल की पैदावार भी घटती है और किसानों को मुनाफा भी कम होता है. ऐसे में मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए फसल विविधीकरण अपनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. अगर मिट्टी की सेहत सुधरती है, तो इससे खेत जल्दी बंजर नहीं होंगे और उस भूमि पर लंबे समय तक खेती किया जा सकेगा.
फसल विविधीकरण पर्यावरण अनुकूल
इससे पर्यावरण में भी सुधार होगा और पानी की बचत भी होगी. फसल विविधीकरण को अपनाने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी होता है, जैसे कि चावल-गेहूं की फसलों के साथ फलियां लगाना, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के साथ ही वायुमंडलीय नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ाने में मदद करता है.
मौसमी सब्जियों की खेती से मिलेगा ज्यादा मुनाफा
फसल विविधीकरण में मिश्रित मौसमी सब्जियों की खेती विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है.
सरकार कर रही इन किसानों को प्रोत्साहित
फसल विविधीकरण के इन्हीं फायदों को देखते हुए सरकार 2 हेक्टेयर या उससे कम जमीन वाले छोटे किसानों को इसे अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर रही है, ताकि किसान भाई कम जमीन में ही अलग-अलग फसल लगाकर अधिक पैदावार लेकर अपनी आमदनी बढ़ाने का काम कर सकें.
‘फसल विविधिकरण खेती’ में किसान कैसे करें फसल प्रबंधन?
आज के समय में किसानों के लिए फसल विविधिकरण खेती बेहतर कृषि प्रणाली साबित हो रही है, लेकिन कई बार किसानों की फसलें मौसम संबंधी जोखिम, कीट और रोगों की वजह से खराब हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. ऐसे में आइये इन जोखिम को कम करने का आसान तरीका जानते हैं...
अपने क्षेत्र की जलवायु को देखते हुए फसलों का चयन करें.
फसलों की उन्नत किस्मों का चयन करें और प्रमाणित सेंटर से ही बीज खरीदें.
फसलों का चयन मिट्टी की जांच के आधार पर ही करें.
फसल विविधिकरण खेती करने वक्त ये जरूर ध्यान रखें कि एक फसल की समस्य़ा दूसरे फसल तक ना पहुंचे. इसके लिए इस विधि से खेती करने वक्त मेड़ या फेंसिंग के जरिये अलग-अलग फसलों में पार्टिशन कर सकते हैं. इससे एक फसल की समस्या हवा या पानी के जरिये दूसरे फसलों तक नहीं पहुंच पाएगी.
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