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Updated on: 10 September, 2020 12:54 PM IST
Cabbage Cultivation

शीतकालीन सब्जियों में गोभीवर्गीय सब्जियों का महत्वपूर्ण स्थान है. गोभीवर्गीय सब्जियों में पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकोली, गांठ गोभी, ब्रुसेल्स स्प्राउट प्रमुख सब्जियां हैं. भारत में शरद ऋतु में उगाई जाने वाली सब्जियों में पत्तागोभी का प्रमुख स्थान है. देश के मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में पत्तागोभी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. पोषण की दृष्टि से पत्तागोभी काफी महत्त्वपूर्ण सब्जी है.

इसमें 91.9 प्रतिशत नमी, 4.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 1.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा, 0.039 प्रतिशत कैल्शियम, 0.044 प्रतिशत फॉस्फोरस, 0.008 प्रतिशत लोहा एवं साथ ही साथ विटामिन ए, विटामिन बी-1, विटामिन बी-2 तथा विटामिन सी भी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है.

पत्तागोभी की खेती के लिए जलवायु (Climate for Cabbage Cultivation)

पत्तागोभी के लिए ठंडी एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है. शुष्क जलवायु में इसकी पत्तियों में बड़े डंठल विकसित हो जाते हैं तथा गोभी की गुणवत्ता में कमी आ जाती है. तापमान में अधिकता आने पर पत्तागोभी में शीर्ष (सर) अच्छा नहीं बनता तथा शीर्ष बनने के बजाय इसमें से शाखाएं निकलने लगती हैं, जिनमें फूल तथा बीज लगने लगते है. बीज अंकुरण के लिए मृदा तापमान 12.8 से 15 डिग्री सेल्सियस आदर्श रहता है.

पत्तागोभी की खेती के लिए भूमि का चुनाव व तैयारी (Selection and preparation of land for cultivation of cabbage)

भूमि जिसका पी. एच. मान 5.5 से 7.0 के मध्य हो, पत्तागोभी की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है. साधारणतया, पत्तागोभी की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है परंतु अच्छे जल निकास और उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त उपजाऊ रेतीली- दोमट मृदा, सर्वोत्तम होती है. क्यारी की मिट्टी को जोतकर एवं पाटा लगाकर भली-भांति भुरभुरी और समतल कर लेना चाहिए, जिससे पर्याप्त नमी अधिक समय तक ठहर

पत्तागोभी की किस्में (Cabbage Varieties)

अगेती किस्में: गोल्डेन एकड़, प्राइड ऑफ इंडिया, पूसा मुक्ता, पूसा अगेती, अर्ली ड्रमहेड, अर्ली वियाना
पिछेती किस्में: पूसा ड्रमहेड, लेट ड्रमहेड, सलेक्शन-8, हाइब्रिड-10

इसमें 91.9 प्रतिशत नमी, 4.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 1.8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा, 0.039 प्रतिशत कैल्शियम, 0.044 प्रतिशत फॉस्फोरस, 0.008 प्रतिशत लोहा एवं साथ ही साथ विटामिन ए, विटामिन बी-1, विटामिन बी-2 तथा विटामिन सी भी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है.

बीज दर

अच्छी उपज के लिए उत्तम बीज का प्रयोग अनिवार्य है. पत्तागोभी की अगेती एवं पिछेती किस्मों की बीज दर अलग अलग होती है क्योंकि अंकुरण सामान्यतः सामान नहीं होता है.
अगेती: 500-600 ग्राम/हेक्टेयर
पिछेती: 375-400 ग्राम/हेक्टेयर

बुवाई का समय

  • अगेती: अगस्त-सितम्बर

  • पिछेती: अक्टूबर –नवम्बर

पौधशाला तैयार करना

पत्तागोभी की पौध तैयार करने के लिए बीजों की बुवाई उठी हुई क्यारियों में की जाती है. पौधशाला हेतु अच्छे जल निकास वाली भूमि में 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी तथा 15 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियां बना लें तथा दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर स्थान छोड़ें, ताकि वर्षा का पानी नाली से होते हुए बाहर निकल जाये. बुवाई से पूर्व, मृदा सोलेराइजेशन, फफूंदनाशक एवं कीटनाशक के प्रयोग द्वारा मृदा उपचारित करें. पौधशाला में बुवाई से पूर्व प्रति 10 वर्ग मीटर अनुसार ट्राइकोडर्मा हर्जीयानम की 2.5 ग्राम मात्रा को 1 किग्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी प्रकार मिलाकर एक सप्ताह के लिए छोड़ दें तथा बाद में इसे क्यारी में भली-भांति मिला दें. पौधशाला में तना छेदक का प्रकोप होने पर नीम के 5 प्रतिशत सत् का प्रयोग करें.

बीज बुवाई

बीज को बुवाई से पूर्व ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास 6-8 ग्राम/किलो बीज अथवा बाविस्टीन 2 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए. बीज बुवाई के लिए क्यारी की चौड़ाई के सामानांतर 5 सेंटीमीटर की दूरी पर 1-1.5 सेंटीमीटर गहरी पंक्तियाँ बना लेते हैं तथा इन पंक्तियों में बीज लगभग 1 सेंटीमीटर की दूरी पर डालते हैं. बीज बुवाई के बाद बीजों को कम्पोस्ट:मिट्टी:रेत (2:1:1) के मिश्रण की पतली तह से ढकने के बाद क्यारी को पुवाल या सूखी घास पतली तह से ढकें. शरुआत के 5-6 दिनों तक क्यारी की हल्की सिंचाई करें तथा बीज जमने के बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई कर सकते हैं. पौध उखाड़ने के 4 से 5 दिन पूर्व सिंचाई बंद दें, ताकि पौधों में प्रतिकूल वातावरण सहन करने की क्षमता विकसित हो सके. पौध उखाड़ने से पहले हल्की सिंचाई कर दें.

पौधरोपण

पत्तागोभी की पौध 4-6 सप्ताह बाद रोपण योग्य हो जाती है. पौधों की रोपाई से पूर्व ट्राइकोडर्मा हर्जीयानम की 4 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बना लें और पौधों की जड़ों को दस मिनट के लिए घोल में उपचारित करने बाद ही पौधों की रोपाई करें. अगेती किस्मों को 45 x 45 सेंटीमीटर तथा पिछेती किस्मों को 60 x 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. जहाँ तक सम्भव हो पौधरोपण सायंकाल में करें तथा रोपण उपरान्त हल्की सिंचाई कर दें.

खाद एवं उर्वरक

पत्तागोभी की अच्छी पैदावार के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना अत्यंत आवश्यक है. खेत की तैयारी के समय 25 से 30 टन/हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 120 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है. नत्रजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय भूमि में मिला दें. शेष नत्रजन की मात्रा रोपण के एक महीना पश्चात निराई-गुड़ाई के साथ खेत में मिला दें और एक चौथाई भाग शीर्ष बनने की स्थिति में मिट्टी चढ़ाते समय भूमि में मिला दें.

सिंचाई

फसल बढ़वार के समय पूर्ण नमी बनाकर रखें तथा आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें. सिंचाई की मात्रा, भूमि के प्रकार, वर्षा एवं मौसम पर भी निर्भर करती है. शीर्ष परिपक़्वता की अवस्था में अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा शीर्ष फटने की समस्या हो सकती है.

खरपतवार नियंत्रण

पत्तागोभी की फसल के साथ उगे खरपतवारों की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करते रहें. पत्तागोभी उथली जड़ वाली फसल है इसलिए इसकी निराई-गुड़ाई ज्यादा गहरी न करें एवं खरपतवार को उखाड़ कर नष्ट कर दें.

 

तुड़ाई एवं उत्पाद

पत्तागोभी के शीर्ष जब ठोस एवं पूर्ण विकसित हो जाते हैं, उस अवस्था में गोभी तुड़ाई के योग्य मानी जाती है. तुड़ाई के लिए ठोस शीर्ष वाले पौधों को जमीन की सतह से काट लें. खुले पत्तों व तने को शीर्ष से अलग कर दें तथा जैविक खाद बनाने में प्रयोग लाएं. अगेती प्रजातियों की पैदावार 25 से 30 टन तथा पिछेती प्रजातियों की पैदावार 40 से 50 टन तक हो जाती है.

प्रमुख रोग एवं कीट प्रबंधन (Major Diseases and Pest Management)

1) आर्द्रगलन रोग

इस फफूंद जनित रोग का प्रकोप गोभी में नर्सरी अवस्था में होता है. इस रोग में पौधे का तना सतह के पास से गलने लगता है और पौध मर जाती है

नियंत्रण: रोग नियंत्रण के लिए बीज को बुवाई से पहले फफूंदनाशी बावस्टीन 2 ग्राम/किग्रा की दर से उपचारित करें तथा ट्राइकोडर्मा 25 ग्राम/10 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद को नर्सरी (100 वर्गमीटर) में भली प्रकार मिलायें.

2) काला विगलन

इस रोग की शुरुआत पत्तियां पीली पड़ने से होती है. इसके उपरांत शिराएं काली होने लगती हैं तथा अंग्रेजी के "v " अक्षर के समान दिखाई देने लगते हैं. रोग पत्ती के किनारे से फैलना शुरू होता है तथा शिरा की ओर बढ़ता है. रोगी पौधों के तनों का संवहनी बण्डल काला हो जाता है एवं पत्तागोभी का ऊपरी हिस्सा मुलायम तथा काला होकर सड़ने लगता है.

नियंत्रण: बुवाई के लिए स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का प्रयोग करें. बीज को गर्म जल (50 डिग्री सेल्सियस में 20-30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें. संक्रमित पौधों के मलवे को निकलकर नष्ट कर दें.

3) हीरक पतंगा कीट (डायमंड बैक मोथ)

यह गोभीवर्गीय सब्जियों में सबसे ज्यादा नुकसानदायक कीट है. इस कीट का प्रकोप सबसे ज्यादा पत्तागोभी में होता है. इस कीट की सूंडी हानिकारक होती है जो शुरू की अवस्था में हरे पीले रंग की होती है तथा बाद में पत्तियों के रंग की हो जाती है. इस कीट की सूंडियां प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की निचली सतह को खुरच कर पत्तों के हरे पदार्थ को खाती हैं एवं खाई गई जगह पर केवल सफेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छेदों में बदल जाती है.

नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए नीम बीज अर्क (4 प्रतिशत) या बेसिलस थुरेन्जेंसिस (बी. टी.) 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से दो बार छिड़काव करें. पहला छिड़काव रोपण के 25 दिन बाद तथा दूसरा, पहले छिड़काव के 15 दिन बाद करें.

4) गोभी की तितली (कैबेज बटरफ्लाई)

इस कीट का वयस्क सफेद पंखों वाला होता है. तितली पत्तियों पर पीले रंग के समूह में अंडे देती हैं. शुरुआत में शिशु सूंडियां झुण्ड में रहकर पत्तियों को खाती हैं तथा बड़े होने पर अलग-अलग हो कर पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं

नियंत्रण: इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक जैसे नेवॉल्यूरान 10 ई सी का छिड़काव करें या बेसिलस थुरेन्जेंसिस (बी. टी.) 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें.

लेखिका: डॉ. पूजा पंत
सहायक प्राध्यापक,
कृषि संकाय, एस.जी.टी. विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा 

English Summary: Earn double profits by doing scientific cultivation of cabbage!
Published on: 10 September 2020, 01:05 PM IST

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