Drumstick Varieties: भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां कई तरह की फसलों की खेती की जाती है. इनमें कई औषधीय फसलें भी शामिल हैं. ऐसे ही एक औषधीय फसल है सहजन. जिसे मोरिंगा भी कहा जाता है. सहजन की खेती पिछले कुछ सालों में किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुई है. क्योंकि, इसमें कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि जागरण की इस खबर में हम आपको सहजन की दो ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में बताएंगे, जिससे किसान लाखों का मुनाफ कमा सकते हैं. आइए विस्तार से इनके बारे में जानते हैं.
सहजन क्या है?
जिन लोगों को नहीं पता की सहजन क्या है, उन्हें बता दें कि सहजन (मोरिंगा ओलीफेरा लैम) एक देशी पौधा है, जिसका उपयोग हजारों वर्षों से एशियाई और दक्षिण अफ्रीकी देशों में औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है. भारत सहजन का मुख्य उत्पादक है, अनुकूल जलवायु परिस्थितियों के कारण दक्षिणी राज्य इसमें महत्वपूर्ण योगदान देता है. इसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक/Drumstick कहा जाता है. पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग लोक औषधियों में नेत्रश्लेष्मलाशोथ के इलाज के लिए और आंतों के कीड़ों को हटाने के लिए पुल्टिस के रूप में किया जाता है. दूध उत्पादन में सुधार के लिए गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को ताजी पत्तियों की सिफारिश की जाती है. सहजन को सूजन, संक्रामक रोगों, हृदय, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और हेपेटोरेनल विकारों सहित विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों के लिए एक निवारक और उपचार एजेंट के रूप में पहचाना जाता है.
कई औषधीय गुणों से भरपुर
सहजन कई औषधीय गुणों से भरपुर होता है. इसे स्वास्थ्य के काफी अच्छा माना जाता है. इसका उपयोग कागज, जैव-जल स्पष्टीकरण और जैव-स्नेहक उत्पादन जैसे विभिन्न उद्योगों में भी किया जाता है. 100 ग्राम ताजा मोरिंगा की पत्तियां एक महिला में विटामिन ए और सी की तीन गुना अधिक दैनिक आवश्यकता और कैल्शियम की लगभग आधी दैनिक आवश्यकता, और महत्वपूर्ण मात्रा में आयरन और प्रोटीन को पूरा करती हैं. एक बच्चा 20 ग्राम पत्तियों से सभी आवश्यक विटामिन ए और सी प्राप्त कर सकता है, जबकि पर्याप्त जिंक का सेवन शुक्राणु कोशिका वृद्धि और डीएनए और आरएनए संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है.
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सहजन की उन्नत किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मुताबिक, सहजन की दो उन्नत किस्में थार हर्ष/Thar Harsha और थार तेजस/Thar Tejas किसानों के लिए आत्मनिर्भरता की ओर एक अवसर. इन दोनों किस्मों को वर्षा आधारित अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में मूल्यांकन के बाद आईसीएआर- केंद्रीय बागवानी प्रयोग स्टेशन, गोधरा, गुजरात में एकल पौधे के चयन के माध्यम से विकसित किया गया था.
थार हर्ष/Thar Harsha: थार हर्षा एक वार्षिक प्रजाति है, जिसमें गहरे हरे पत्ते (54.5 सेमी लंबे और 35.2 सेमी चौड़े) घने पत्ते होते हैं. पीकेएम-1 (फरवरी से मार्च) की तुलना में थार हर्ष में फलन देर से (मार्च से मई) शुरू होता है. प्रत्येक पौधा एक वर्ष में लगभग 314 फलियां पैदा करता है और इसकी उपज क्षमता 53-54.7 टन/हेक्टेयर है. इसमें तुलनात्मक रूप से उच्च एंटीऑक्सीडेंट सामग्री दर्ज की गई है. थार हर्षा किस्म में पत्तियों और फलियों में तुलनात्मक रूप से सबसे अधिक शुष्क पदार्थ, प्रोटीन, फास्फोरस पोटेशियम, कैल्शियम, सल्फर, लोहा, मैंगनीज, जस्ता और कॉपर दर्ज किया गया.
थार तेजस/Thar Tejas: थार तेजस के पौधे 265-318 सेमी तक बढ़ते हैं और 261.5 सेमी (पूर्व-पश्चिम) और 287.2 सेमी (उत्तर-दक्षिण) तक फैलते हैं. इसमें 2.74 मीटर पौधे की ऊंचाई, प्रति पौधा 245 फलियां, प्रत्येक फली का वजन 218 ग्राम, फल की लंबाई 45-48 सेमी, और वर्षा आधारित अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में प्रति फली 9-10 बीज दर्ज किए गए. फल जनवरी-मार्च के दौरान पकते हैं. यह तुलनात्मक रूप से जल्दी फूलने वाला पौधा है और जनवरी-मार्च के दौरान फसल जल्दी पक जाती है. थार तेजस की पत्तियों में अन्य किस्मों के मुकाबले एंटीऑक्सीडेंट भी काफी ज्यादा होता है.
इन राज्यों में होती है खेती
थार हर्ष ड्रमस्टिक किस्म ने पिछले आठ वर्षों में गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, झारखंड, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में 375 एकड़ से अधिक क्षेत्र में व्यावसायिक खेती और किचन गार्डन की खेती के माध्यम से किसानों की पोषण सुरक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि की है. गुजरात में 850 से अधिक आदिवासी किसानों को पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए रसोई बागवानी के लिए रोपण सामग्री और बीज प्रदान किए गए.
वैज्ञानिकों ने सहजन तकनीक का प्रदर्शन किया और किसानों को थार हर्ष किस्म की व्यावसायिक खेती का प्रशिक्षण दिया.
लाखों में कमाई
ICAR के मुताबिक, झुंझुनू (राजस्थान) के प्रगतिशील किसान प्रेम कुमार ने जुलाई 2020 में जैविक उत्पादन के लिए व्यावसायिक रूप से फसल लगाई और 1,25000/हेक्टेयर (बीज सहित) की खेती की औसत लागत के साथ 12.24 टन/हेक्टेयर नरम फली (दूसरे वर्ष से) काटी. जिससे उन्हें प्रति हेक्टेयर से 4 लाख रुपये तक की कमाई हुई. इसी प्रकार, इस किस्म की खेती करने वाले किसानों को देश में विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में कमोबेश अच्छी आय प्राप्त हो रही है.