एक ओर जहां आज देशा वैश्विक महामारी कोरोना वायरस कोविड-19 से चपेट में आ गया है. वहीं इसके चलते कृषि श्रमिकों का पलायन भी जारी है. ऐसे में किसानों के लिए चिंता का विषय है कि कृषि श्रमिकों के अभाव में धान का रोपण कार्य कैसे हो सकेगा. इसके लिए पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की सीधी बुवाई का विकल्प किसानों को सुझाया है.
धान की खेती आमतौर पर रोपण विधि से की जाती है जिसमें कृषि श्रमिकों की अधिक आवश्यकता होती है. अभी कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉकडाउन हो रहा है और श्रमिक सब अपने-अपने घरों को चले गए हैं. ऐसे में धान उत्पादन की सीधी बुवाई तकनीक किसानों के लिए कारगर सिद्व होगी जिससे पानी की बचत व कम श्रमिकों के उपयोग के साथ वही उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जो रोपण विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.
विश्वविद्यालय के फसल अनुसंधान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि धान की सीधी बुवाई से प्रक्षेत्र में खरपतवार की सघनता ज्यादा होती है. जिसे शाकनाशियों का प्रयोग कर निजात पाई जा सकती है. सीधी बुवाई करने से न तो नर्सरी का लफड़ा, ना कदेड़ और रोपाई की भी आवश्यकता पड़ती है.
इस विधि में गेहूं की तरह ही खेत तैयार कर कुछ ही समय में बड़े प्रक्षेत्र की बुवाई की जा सकती है. यही नहीं सीधी बुवाई करने से 25-30 प्रतिशत पानी का भी कम उपयोग होता है. कम श्रमिक, कम डीजल एवं कम पानी के साथ अच्छा उत्पादन प्राप्त हो जाता है. अतः वर्तमान में कृषि श्रमिकों के पलायन को ध्यान में रखते हुए किसानों को धान की सीधी बुवाई तकनीक को अपनाना अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होगा. यदि सीधी बुवाई विधि वैज्ञानिक तौर तरीकों से की जाती है तो 3-5 प्रतिशत उपज भी अधिक प्राप्त होगी, यही नहीं इस तकनीक से फसल भी 8-10 दिन पहले ही परिपक्व हो जाती है.
यह है सीधी बुवाई तकनीक (This is the direct sowing technique)
पंतनगर फसल अनुसंधान केन्द्र के संयुक्त निदेशक डा. वीरेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि धान की सीधी बुवाई के लिए खेत समतल होना चाहिए ताकि सीडड्रिल समान रुप से बीज एवं खाद गिराए व खेत की सतह पर पानी सामान रूप से वितरित हो. बुवाई जून के मध्य में करें ताकि बारिश प्रारंभ होने तक पौधा पूर्ण रूप से स्थापित हो जाए. अच्छे जमाव के लिए भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है. बीज 2-3 सेमी गहराई पर ही बोना चाहिए अधिक गहराई में जमाव कम होता है.
बुवाई के तुरंत बाद या 2-3 दिन के अंदर जब खेत में नमी अच्छी हो, खरपतवारों के बीजों के जमाव पूर्व भूमि सतह पर खरपतवारनाशी का छिड़काव अवश्य करें. यदि खेत में चौड़ी पत्ती व मोथा वर्गीय एवं अन्य घास कुल के खरपतवार उग आएं तो बुवाई के 3-5 पत्ती अवस्था पर उन शाकनाशियों का प्रयोग करें जो सभी प्रकार के खरपतवारों को समूल नष्ट कर सकें. यदि जमाव समान न हो व खेत में खाली जगह हो तो 3-4 सप्ताह बाद सिंचाई या बारिश के बाद उसी खेत से कुछ पौधे उखाड़कर रिक्त स्थानों पर रोपाई कर देनी चाहिए. जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट में 2.0 प्रतिशत यूरिया का घोल बनाकर पानी के साथ खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए.