चिचिंडा और तोरई हमारे देश के सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक हैं. यह दोनों दिखने में लगभग एक जैसी ही होती हैं. कभी-कभी इनमें फर्क समझ पाना मुश्किल होता है. ऐसे में आज हम दोनों सब्जियों में क्या फर्क है, इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं. बता दें कि चिचिंडा और तरोई दो अलग-अलग सब्जियां हैं जिनकी भिन्न-भिन्न विशेषताएं हैं. तो आइए जानें दोनों में से किस सब्जी की खेती से किसान मालामाल बन सकते हैं.
ऐसा होता है टेस्ट
चिचिंडा घुमावदार आकार की सब्जी होती है. यह बिल्कुल सांप जैसी दिखती है, इसलिए इसे स्नेक गॉर्ड के नाम से भी जाना जाता है. इनकी त्वचा हल्के से गहरे हरे रंग की होती हैं. वहीं, तुरई भी लंबी और पतली होती है लेकिन इसका आकार सीधा होता है. इसकी त्वचा चिकनी व हरी होती है. स्नेक लौकी का उपयोग आमतौर पर एशियाई व्यंजनों में किया जाता है. इसे अक्सर तलकर, करी या सूप के रूप बनाकर उपयोग किया जाता है. स्नेक गॉर्ड का टेस्ट कुरकुरा और हल्का मीठा होता है. वहीं, तुरई का उपयोग भी भारतीय और एशियाई व्यंजनों में व्यापक रूप से किया जाता है. यह एक बहुमुखी सब्जी है जिसका स्वाद हल्का और थोड़ा कड़वा होता है.
इस तरह से यह सब्जी सहायक
स्नेक लौकी में कैलोरी कम होती है लेकिन फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है, जो पाचन में सहायता करता है. यह स्वस्थ पाचन तंत्र को बढ़ावा देने में मदद करता है. इसमें विटामिन ए, सी और कैल्शियम-आयरन जैसे विभिन्न खनिज भी होते हैं. इसके अलावा तुरई में कैलोरी भी कम होती है. इसमें भी फाइबर का अच्छा स्रोत है. इसमें विटामिन सी, आयरन और अन्य आवश्यक पोषक तत्व होते हैं. तुरई अपने ठंडे गुणों के लिए जानी जाती है और इसे अक्सर गर्मियों के भोजन में शामिल किया जाता है.
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इन सब्जियों में औषधीय गुण
चिचिंडा को औषधीय गुणों वाला माना जाता है. इसका उपयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है. इसे मूत्रवर्धक और सूजनरोधी माना जाता है और इसमें एंटीऑक्सीडेंट के भी प्रभाव हो सकते हैं. वहीं, तुरई अपने संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए जानी जाती है. इसे लीवर से संबंधित समस्या के लिए सबसे सही माना जाता है. यह वजन घटाने में सहायता करती है. कुल मिलाकर, स्नेक गॉर्ड और तुरई में पकाने का तरीका एक जैसा हो सकता है. लेकिन इसके स्वाद और संभावित औषधीय गुण भिन्न हो सकते हैं.
इन राज्यों में होती है दोनों की खेती
चिचिंडा भारत के विभिन्न राज्यों में पाया जाता है. यह विशेष रूप से उत्तर भारतीय राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है. चिचिंडा जंगली क्षेत्रों में पाया जाता है. वहीं, तोरई भी भारत में बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली सब्जी है. तोरी को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र में उगाया जाता है. यह ध्यान देने योग्य है कि चिचिंडा और तोरी दोनों जंगली स्थानों में पाए जाते हैं और उन्हें खेती के माध्यम से भी उत्पादित किया जाता है.
इतना मिलता है भाव
चिचिंडा और तुरई से कमाई बाजार की मांग, खेती के तरीकों, भौगोलिक स्थिति और प्रचलित बाजार कीमतों जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर होती है. किसान गोपाल प्रसाद बताते हैं कि बाजार में चिचिंडा का भाव थोक के हिसाब से लगभग 30 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाता है. वहीं, अन्य किसान वीर बहादुर बताते हैं कि अगर क्वालिटी सही रही तो तोरई का भाव बाजार में 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है. ऐसे में आप इस बात का निर्णय खुद ले सकते हैं कि तोरई और चिचिंडा में से किसकी खेती करना सही है.
निष्कर्ष- इस स्टोरी में चिचिंडा व तोरई में फर्क बताया गया है. इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि किसकी खेती से कितना फायदा हो सकता है. हालांकि, जो चिचिंडा व तोरई के जो रेट बताएं गए हैं. वह विभिन्न इलाकों में अलग-अलग हो सकते हैं.