हम सभी जानते हैं कि भारत के विकास में कृषि का अहम योगदान है ऐसे में अब भारत में किसानों को अब गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के साथ मोटे अनाजों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. देश के साथ विदेश में भी मोटे अनाज को ज्यादा अहमियत दी जा रही है. अभी तक आपने ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, कोदो आदि मोटे अनाजों का नाम सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गेहूं, चावल और ज्वार से ज्यादा फायदेमंद एक पोषक अनाज भी है, जिसका नाम राजगिरा है. जिसकी खेती भारत के उत्तरी और हिमालयी इलाकों में की जाती है, आइये जानते हैं राजगिरा की खासियत और खेती के बारे में.
बता दें रेडीमेड फूड के साथ-साथ बिस्कुट, केक, पेस्ट्री जैसे बेकरी उत्पादों में राजगिरा का काफी इस्तेमाल होता है. इतना ही नहीं, व्रत उपवास में भी राजगिरा के लड्डू बाजार में खूब बिकते हैं. राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई किसान राजगिरा की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. यह फसल किस्मों के अनुसार 80 से लेकर 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है, इसलिए कम समय में यह किसानों को काफी अच्छा मुनाफा दे सकती है.
जलवायु
राजगिरा एक सर्द और नम जलवायु में उपजने वाली फसल है, हालांकि सूखे की स्थिति में भी राजगिरा की खेती से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. वहीं, जल भराव और तेज हवा वाले इलाकों में फसल लगाने से नुकसान होता है. 1500-3000 मीटर तक की ऊंचाई वाले पर्वतीय इलाकों के लिए किसानों के लिए राजगिरा की खेती किसी वरदान से कम नहीं होती. इसकी खेती से बेहतर उत्पादन लेने के लिए मिट्टी की जांच जरूर करनी चाहिए.
उपयुक्त मिट्टी
राजगिरा की खेती के लिए किसान चाहें 6-7.5 PH मान वाली बलुई दोमट मिट्टी में जैविक खेती करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसकी फसल को खरपतवार मुक्त बनाने के लिए गहरी जुताईयां करके मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाता है और खरपतवारनाशी दवा मिलाकर खेत तैयार करते हैं.
बुवाई का सही समय
पहाड़ी पर्वतीय इलाकों में राजगिरा की खेती लगभग 12 महीने की जाती है, लेकिन मैदानी इलाकों में राजगिरा की बुवाई के लिए अक्टूबर से लेकर नवंबर का समय सबसे उपयुक्त रहता है.
राजगिरा की बुवाई-
इसका बीज महीन और हल्का होता है. कतारों में लगाने पर प्रति हेक्टेयर 2 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. वहीं छिटकवां विधि से बुवाई की जाती है तो 3 किलो बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लेना चाहिए. कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और बीज की गहराई सेंटीमीटर रखना चाहिए. किसान चाहें को इसकी उन्नत किस्मों-
आरएमए 4 और आरएमए 7 से बुवाई कर सकते हैं.
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सिंचाई-
राजगिरा की फसल मात्र 4-5 सिंचाइयों में पककर तैयार हो जाती है. सबसे पहले बुवाई के 5 से 7 दिनों बाद सिंचाई की जाती है. वहीं हर 15 से 20 दिनों के अंतराल पर बाकी सिंचाईयां कर सकते हैं. वैसे तो ये फसल कम पानी में ही पककर तैयार हो जाती है, इसलिये किसान मिट्टी की जरूरत के अनुसार ही फसल में पानी लगायें.